पाकिस्तान
के साथ सम्बन्ध सुधारने की कवायद तबसे चलनी शुरू हो गई थी, जबसे
उसका जन्म हुआ था. आये दिन किसी न किसी कदम के द्वारा ऐसा होता दिखता है. सम्बन्ध सुधार
के दौर में पाकिस्तान की तरफ से बारम्बार इसको बाधित करने का उपक्रम भी चलाया जाता
रहा है. एक तरह शांति-वार्ताएं चलती हैं तो दूसरी तरफ अशांति की हरकतें की जाने लगती
हैं. पाकिस्तान का अपना इतिहास रहा है नित्य ही भारत के लिए समस्याएँ पैदा करने का.
कभी युद्ध के द्वारा, कभी घुसपैठ के द्वारा, कभी आतंकी हमलों के द्वारा, कभी संयुक्त राष्ट्र में
बेवजह कश्मीर के मुद्दे को उठाने के द्वारा.
पाकिस्तान
की बात ही क्या की जाये, यदि अपने देश के इन नेताओं की,
जिम्मेवार लोगों की ही बात की जाये तो ताजा घटनाक्रम में ही भारत-पाकिस्तान
के बीच क्रिकेट मैच को ही लिया जा सकता है. दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध सहज हों,
मधुर हों इसको स्वीकार करने वाले पर्याप्त संख्या में हमारे देश में
मौजूद हैं. इसके साथ ही ऐसे लोग भी बहुत हैं जो खेलों के द्वारा, सांस्कृतिक वातावरण के द्वारा, साहित्य-कला के द्वारा
दोनों देशों के संबंधों-रिश्तों को सुधारने की वकालत करते हैं. हालाँकि समस्त देशवासी
ऐसा शत-प्रतिशत रूप से नहीं स्वीकारते हैं. बहुत से नागरिकों ने दोनों देशों के बीच
क्रिकेट मैच का एकसुर से विरोध किया है. सोचने की बात है कि एक तरफ देश में सैनिकों
के साथ-साथ अनेक मासूम, निर्दोष नागरिकों को पाकिस्तानी आतंक
के चलते अपनी जान गँवानी पड़ रही है वहीं दूसरी तरफ सम्बन्ध सुधारने की कवायद में मगन
रहने वाले मैच खेलने में लगे हुए हैं. ये अत्यंत शर्मनाक स्थिति तो है ही साथ ही अत्यंत
अपमानजनक भी है. ये अपमान उन तमाम शहीदों का है जो आतंकी हमले का शिकार हुए;
ये अपमान उन सैनिकों का है जो आये दिन सीमा पर पाकिस्तानी आतंकियों का,
पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ का सामना करते हैं.
आज
सम्पूर्ण विश्व इस बात को स्वीकारने लगा है कि भारत देश में आतंकी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान
का हाथ है और इससे भी कोई इंकार नहीं करता है कि भारतीय सेना महज इस कारण खामोश रही
है कि हमारे देश की सरकारों ने सदैव शांति-वार्ताओं के द्वारा हल निकालना चाहा है.
सेना की ख़ामोशी को कमजोरी समझने की भूल न तो पाकिस्तान को करनी चाहिए और न ही भारत
में बैठे पाकिस्तान-प्रेमियों को ऐसा करने की छूट है. क्रिकेट हो या फिर कोई और मसला
सभी में देश की अखंडता का, देश की सेना के मनोबल का, देशवासियों की भावनाओं का सम्मान किया जाना अनिवार्य होना चाहिए.
अंत
में अपनी बात क्योंकि मैच तो रद्द होने से रहा. क्रिकेट का स्व-घोषित महामुकाबला
होने वाला है. बहरहाल मैच का परिणाम कुछ भी हो, हमें एक
बात का विशेष ध्यान रखना है कि जीतने अथवा हारने वाला देश नहीं होगा बल्कि किसी
देश की क्रिकेट टीम जीतेगी और किसी देश की टीम मैच हारेगी. यह सुनना स्वयं में कितना
खराब लगता है कि भारत हारा. हालांकि इस तरह की गलती स्वयं हमसे भी हो जाती है पर हमें
ही इस बात का ध्यान रखना है कि गलती बार-बार न हो. आप स्वयं देखिये कई बार हमारी टीम
बहुत बुरी तरह से हारी है तो मीडिया ने लिख दिया कि फलां देश ने भारत को बुरी तरह से
रौंदा. हमारी क्रिकेट टीम हार सकती है, जीत भी सकती है पर हमारा
देश भारत कभी नहीं हार सकता, उसे तो बस जीतना है और जीतना ही
है.
एक
अन्तिम बात कि हमें तो डर लग रहा है कि कहीं पाकिस्तान से दोस्ती दिखाने
के चक्कर में हमारी टीम उनको जीत का तोहफा न दे डाले. दोनों देशों के इतने बड़े-बड़े
हुक्मरान बैठे होंगे और हमारे देश में वैसे भी पाकिस्तान के सम्बन्ध में बहुत ही कोमल
दिल रहता है. कहीं इसी कोमलता के, सहिष्णुता के दर्शन मैच में न हो जायें?
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