आषाड़ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा
के नाम से जाना जाता है. कृष्ण द्वैपायन व्यास जी का जन्म इसी दिन हुआ था. उनके
द्वारा महाभारत की रचना की गई थी. वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और ऐसा माना
जाता है कि चारों वेदों की रचना उन्हीं के द्वारा की गई थी. इसी कारण से उनको
वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय संस्कृति, गुरु-शिष्य परंपरा में उनको
आदिगुरु माना जाता है और उन्हीं के सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम
से भी जाना जाता है. गुरुपूर्णिमा को गुरु पूजन का विधान है. देश में गुरुपूर्णिमा
का पर्व बड़ी ही श्रद्धा-भक्ति और धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि प्राचीनकाल
में जब शिष्य अपने गुरु से पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर लेता था, उसके बाद वो शिष्य श्रद्धा
भाव से प्रेरित होकर इसी दिन अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी सामर्थ्यानुसार दक्षिणा
देकर कृतकृत्य होता था. वर्तमान में प्राचीन गुरुकुल पद्धति चलन में न होने के बाद
भी गुरुपूर्णिमा का महत्व कम नहीं हुआ है. आज भले ही शैक्षिणक संस्थानों में पारंपरिक
रूप से शिक्षा दी जा रही हो किन्तु इनमें आज भी इस दिन गुरुजनों को सम्मानित किया
जाता है.
‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात्
परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः॥’
के साथ-साथ ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो
बताय॥’ को प्रत्येक व्यक्ति बचपन से सुनता चला आ रहा है. इनको न केवल वो सुनता आ रहा है
वरन आत्मसात भी करता रहा है. इसके बाद भी वर्तमान में समाज भटकाव की स्थिति में है.
भटकाव इस कदर है कि बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों को भी समझ नहीं आ रहा है कि वे
क्या कर रहे हैं. ये भटकाव ही कहा जायेगा कि आज देश में सेना के समर्थन के लिए मुहिम
छेड़नी पड़ रही है. ‘सपोर्ट टू इंडियन आर्मी’
के द्वारा ये जताना पड़ रहा है कि देश सेना के साथ है. इसे सामाजिक
विसंगति ही कही जाएगी कि गुरुपूर्णिमा का आयोजन करने वाले देश में गुरुओं द्वारा दी
गई शिक्षा को विस्मृत कर दिया गया है. आम आदमी से लेकर सेना तक को पूर्वाग्रह से ग्रसित
होकर देखा जाने लगा है. देश का एक-एक व्यक्ति जिस आज़ादी की बात करता है, जिस स्वतंत्रता
से सरकार को गरिया लेता है,
जिस उन्मुक्तता के साथ सेना की बुराई कर लेता है, जिस बेफिक्री
के साथ मौज-मस्ती कर लेता है वो कहीं न कहीं भारतीय सेना की देन है. अपनी मौज-मस्ती, अपनी उन्मुक्तता, अपनी स्वच्छंदता
को एक पल के लिए रोककर विचार करिए कि जिस समय आप ये सब कर रहे होते हैं, ठीक उसी
समय सैनिक किसी आतंकी से लोहा ले रहा होता है. किसी उपद्रवी के ईंट-पत्थर को सह रहा
होता है. कहीं बर्फीली चट्टान पर मुस्तैद खड़ा होता है. अपने परिवार से कहीं बहुत दूर
अकेले देश की रक्षा के लिए,
हम सबकी सुरक्षा के लिए तैनात होता है. आज उसी भारतीय सेना के
लिए समर्थन करने जैसी मुहिम चलाना अपने आपमें शर्म का विषय है.
वैसे शर्म हम नागरिकों को क्यों आने लगी? आम
नागरिकों ने अपनी शर्म को सोशल मीडिया के द्वारा समाप्त कर लिया है. गुरुपूर्णिमा
हो, शिक्षक दिवस हो, स्वतंत्रता दिवस हो अथवा कोई अन्य राष्ट्रीय महत्त्व का दिन,
सभी कुछ तो आजकल सोशल मीडिया पर मना लिए जाते हैं. गुरुजनों को विस्मृत किया जाने
लगा है, इसके बाद भी शर्म है कि आती नहीं. देखा जाये तो शर्म उन
शहीदों को आ रही होगी जिन्होंने एक पल सोचे बिना अपनी जान इस देश पर न्योछावर कर दी.
शर्म उन सैनिकों को आ रही होगी जिन्होंने शहादत देकर देश को आज़ादी दिलवाई. शर्म जंगे-आज़ादी
के उस प्रथम यौद्धा मंगल पांडे को भी आ रही होगी जिनकी १८९वीं जयंती इस बार
गुरुपूर्णिमा के दिन पड़ी मगर सूनी-सूनी सी निकल गई. आइये, अपने शहीदों
को शर्मसार होने से बचाने के लिए आगे बढ़ें. अपनी भारतीय सेना को ये दिखाने के लिए कि
हम उसके साथ हर पल हैं,
उसके परिवार के साथ हर क्षण हैं आगे चलें. अपने गुरुओं के सम्मान
की खातिर, उनकी शिक्षाओं पर अमल करने की खातिर आगे बढ़ें.
चित्र गूगल छवियों से साभार लिया गया है
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