भ्रूण लिंग जाँच और अवैध गर्भपात
को रोकने के लिए पीसीपीएनडीटी एक्ट होने के बाद भी ऐसा कुकृत्य करने वालों में
किसी प्रकार का भय व्याप्त नहीं है. सरकार द्वारा, विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाओं
द्वारा लगातार जागरूकता कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं किन्तु आज आवश्यकता
जागरूकता कार्यक्रमों की कम क्रियान्वयन कार्यक्रमों की अधिक है. देखा जाये तो
समाज में शहरी क्षेत्र हो अथवा ग्रामीण क्षेत्र, सभी को भली-भांति मालूम है कि
भ्रूण लिंग जाँच करवाना गैर-कानूनी है, ये सभी को ज्ञात है कि ऐसे मामलों में
गर्भपात करवाना भी गैर-कानूनी है, सबको इसकी भी जानकारी है कि ऐसा कृत्य करने पर कानूनी
रूप से सजा का प्रावधान है. यदि भ्रूण लिंग जाँच में अथवा भ्रूण हत्या में संलिप्त
लोगों को उक्त जानकारियाँ नहीं होती तो वे ऐसे कृत्य खुलेआम करने-करवाने का कार्य
कर रहे होते, जबकि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. ऐसे कार्य गोपनीय तरीके से किये-करवाए
जा रहे हैं. ये अपने आपमें शर्मनाक है कि आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता की संकल्पना
रचने वाले समाज में भ्रूण लिंग जाँच/हत्या में लोगों की संलिप्तता आज भी है. इससे भी
अधिक शर्मनाक ये है कि इस तरह के कुकृत्यों में वो चिकित्सक भी सम्मिलित हैं जिनको
समाज में भगवान का स्थान प्राप्त है. कमोवेश ये स्थिति अकेले किसी एक स्थान विशेष
की नहीं वरन देश के बहुतायत भागों की है. ऐसे में सवाल उठता है कि इनको रोका कैसे जाए?
इनके अपराध पर अंकुश कैसे लगाया जाये?
इस कुप्रवृत्ति को समाप्त कैसे किया जाये? ऐसे सवालों का जवाब
कई बार खुद ऐसे हालात ही बन जाते हैं. स्पष्ट है कि यदि कानून का ही डर होता तो देश
भर में लिंगानुपात में भयंकर गिरावट देखने को न मिल रही होती. वर्ष 2011 की जनगणना में भले ही वर्ष 2001 की जनगणना के मुकाबले लिंगानुपात में किंचित मात्र सुधार होता दिखा है किन्तु
ये भी संतुष्ट करने वाला नहीं कहा जायेगा क्योंकि इसी अवधि में शिशु लिंगानुपात में
व्यापक कमी आई है.
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ऐसी स्थिति में जबकि लिंगानुपात में लगातार गिरावट देखने को
मिल रही है, सरकारें बेटी बचाओ अभियान के द्वारा जागरूकता लाने में लगी हुई हैं,
गैर-सरकारी संगठन और अनेक व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर बेटियों
के हितार्थ कार्य करने में लगे हैं इसके बाद भी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
इसका उदाहरण इससे लगाया जा सकता है कि आये दिन कहीं नालियों में, कहीं झाड़ियों
में, कहीं कूड़े के ढेरों पर नवजात शिशु, भ्रूण आदि मिलने की खबरें सामने आती हैं. ऐसी
घटनाओं के लगातार बढ़ने से आशंका इसकी भी बलबती है कि संभव हो कि विविध
चिकित्सालयों में कार्य करने वाले व्यक्तियों द्वारा, दाइयों द्वारा, अथवा सरकारी
चिकित्सा सेवा में संलग्न विभिन्न कर्मियों द्वारा अवैध रूप से ऐसे कार्यों को
अंजाम दिया जा रहा हो? ये आशंका इस कारण से उठती है कि यदि एक सुविधा-संपन्न
चिकित्सालय, नर्सिंग होम ऐसे कार्य को अंजाम देता है तो उसके पास भ्रूण को पूर्णतः
नष्ट करने के साधन उपलब्ध रहते हैं. संभव है कि ऐसे कुकृत्य प्रशिक्षित अथवा
अप्रशिक्षित व्यक्तियों की देखरेख में किसी अवैध स्थान पर किये जा रहे हों.
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वर्तमान में लगातार ऐसी घटनाओं के सामने आने से जनसहयोग के साथ-साथ
प्रशासन को सख्ती से कार्य करने की जरूरत है. सरकारी,
गैर-सरकारी चिकित्सालयों में इस बात की व्यवस्था की जाये कि
प्रत्येक गर्भवती का रिकॉर्ड बनाया जाये और उसे समय-समय पर प्रशासन को उपलब्ध करवाया
जाये. ध्यान देने योग्य ये तथ्य है कि एक महिला जो गर्भवती है,
उसे नौ माह बाद प्रसव होना ही होना है,
यदि कुछ असहज स्थितियाँ उसके साथ उत्पन्न नहीं होती हैं. ऐसे
में यदि नौ माह बाद प्रसव संपन्न नहीं हुआ तो इसकी जाँच हो और सम्पूर्ण तथ्यों,
स्थितियों की पड़ताल की जाये. इसके साथ-साथ निजी रूप से
संचालित अल्ट्रासाउंड सेंटर्स, निजी चिकित्सालयों में, नर्सिंग होम में, निजी
प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सकों के साथ-साथ सरकारी चिकित्सा सेवा के कार्य कर रहे
विभिन्न कर्मियों में से संदिग्ध लोगों को तलाशने का कार्य किया जाए क्योंकि ऐसा
कुकृत्य बिना चिकित्सकीय मदद के संभव नहीं है. यदि किसी भी रूप में भ्रूण हत्या जैसा
आपराधिक कृत्य सामने आता है तो परिवार-डॉक्टर को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए. ऐसे
परिवारों को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ लेने से वंचित कर दिया जाये,
चिकित्सक का लाइसेंस आजीवन के लिए रद्द कर दिया जाये,
ऐसे सेंटर्स तत्काल प्रभाव से बंद करवा दिए जाएँ और दंड का प्रावधान
भी साथ में रखा जाये.
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इतने सालों की जद्दोजहद से ये स्पष्ट हो चुका है कि बेटी होने
पर किसी योजना का लाभ देने का मंतव्य, सरकारी योजनाओं से लाभान्वित किये जाने सम्बन्धी प्रयासों,
कानूनी प्रक्रियाओं आदि से सुधार होने के आसार दिख नहीं रहे
हैं. ऐसे में कुछ समय तक कठोर से कठोर क़दमों की जद्दोजहद किये जाने की जरूरत है. यदि
ऐसा नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब कि धूर्त और कुप्रवृत्ति के चिकित्सकों के
प्रतिनिधि घर-घर जाकर लोगों को भ्रूण लिंग जाँच-कन्या भ्रूण हत्या के लिए प्रेरित/प्रोत्साहित
करेंगे. इसके साथ वह दिन भी दूर नहीं होगा जबकि बेटों के विवाह के लिए बेटियाँ मिलनी
बंद हो जाएँगी और समाज एक तरह की कबीलाई संस्कृति में परिवर्तित हो जायेगा.
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