29 अप्रैल 2014

व्यवस्था परिवर्तन अनिवार्य है, अब अपने लिए जागो




मोदी लहर के बीच उनके अनेक विरोधी इसे नकारने में लगे हैं. सवाल ये है कि जब कोई लहर नहीं है तो फिर हर दल के नेता द्वारा मोदी की चर्चा क्यों? हर राजनीतिज्ञ द्वारा मोदी पर हमला क्यों? मोदी विरोध में राजनैतिक दलों के लोगों के अलावा वे सामान्य समर्थक भी जुटे हुए हैं जिनका काम सिर्फ मतदान करना है. चलिए एक पल को इस बात पर विचार कर भी लिया जाए कि भाजपा को केंद्र में नहीं आना चाहिए, तो फिर इसका विकल्प क्या है? केंद्र में विराजमान वही सरकार जो विगत दस वर्षों से देश को खोखला करने में लगी है? तीसरा मोर्चा नामक वो विकल्प जो प्रत्येक चुनाव के पहले दिखाई देता है और फिर चुनाव परिणाम आते-आते अपने आप ही फुस्स हो जाता है? या फिर अपने-अपने राज्यों में जातिगत वोटों के आधार पर हनक स्थापित करने वाले क्षेत्रीय दलों को इसके योग्य समझा जाए जो पैकेज के लालच में, घोटालों की जांच से बचने के लिए केंद्र सरकार को आँख मूँद कर समर्थन देते रहते हैं?
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भाजपा की तरह एक पल को ये भी मान लिया जाए कि मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए, तो सवाल उठता है कि क्यों? और फिर दूसरे दलों में कौन है जिसे इस पद पर बैठाकर देश को विकास की राह ले जाया जा सकता है? मीडिया-घोषित युवराज को, जिनके पास एक मंत्रालय का क्षणांश अनुभव भी नहीं है? देश के अहम् मुद्दों से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं है, बयानों में हास्यास्पद स्थिति पैदा कर देने वाले युवराज को कैसे ये पद दे दिया जाये? घोटाला-पसंद सरकार में कोई ऐसा नहीं है जिसके सर पर घोटाले का ताज न सजा हो, ऐसे में कैसे विश्वास किया जाये कि वो प्रधानमंत्री पद पर बैठने के बाद घोटाला-मुक्त रहेगा? क्या उन नेता जी को प्रधानमंत्री बनवा दिया जाये जो धर्म के नाम पर सेना को बांटने से भी नहीं चूके? क्या उन्हें सिर्फ इस कारण इस पद पर बैठा दिया जाये कि वे कारसेवकों पर गोली चलवाए जाने को गर्व से बताते हैं? क्या इस कारण देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचा दिया जाये क्योंकि इनकी तुष्टिकरण की नीति के चलते पर्याप्त अराजकता देखने को मिलती है? फिर किसे, क्या बहिन जी को, जिनके पास विकास के नाम पर पत्थरों की नुमाइश है? मूर्तियों, पार्कों की दौलत है जो सैकड़ों हरे-भरे पेड़ों के काटने से उपजी है? क्या इन्हें भी इस कारण इस पद के योग्य माना जाए क्योंकि इनके मन में भी पिछड़ों के लिए, दलितों के लिए वोट-बैंक भरा प्रेम है? शोषित समाज को आगे लाने के बजाय सवर्णों के लिए अवरोधक बनने की इनकी कला के चलते क्या इनको ही इसके लिए सही माना जाये? ऐसे ही बहुत से नाम हैं, जिनके क्रियाकलाप स्पष्ट करते हैं कि इनके द्वारा स्व-विकास के अलावा और कुछ नहीं होने वाला.
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कभी दंगा, कभी एनकाउंटर, कभी जासूसी, कभी धर्म, कभी टोपी, कभी मंदिर, कभी मुस्लिम, कभी विनाश आदि के नाम पर कटघरे में खड़े किये जा रहे मोदी के पास एक दशक से अधिक का अनुभव है. यदि वे राज्य में असफलता के सूचक होते तो गुजरात की जनता उन्हें बार-बार नहीं चुनती. धोखा एक बार खाया जा सकता है और चुनाव एक ऐसा मौका है जहाँ दोबारा धोखा नहीं दिया जा सकता है. वर्तमान चुनाव में मतदाताओं को किसी दल के लिए नहीं, किसी व्यक्ति के लिए नहीं वरन अपने लिए वोट करने की जरूरत है. विगत दस वर्षों की मंहगाई, घोटाले, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी आदि ने आम इन्सान का जीना मुश्किल कर दिया है. ऐसे में परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार को बाहर का रास्ता दिखाया जाना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है. सम्पूर्ण देश को, समूची लोकतान्त्रिक व्यवस्था को एक परिवार की बपौती बनाकर रख देने वाले दल को विपक्ष में बैठने की जरूरत है. मौन साधक के नाम पर सरकार चलाने वाले परिवार को अति-विशिष्ट से आम परिवार बनने की आवश्यकता है. मतदाताओं को याद रखना होगा कि ये सब आवश्यक नहीं अनिवार्य है. देश के लिए, खुद व्यक्ति के लिए.

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