11 नवंबर 2013

मानसिक दीवालियेपन का परिचायक




जब मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हेतु भाजपा द्वारा घोषित किया गया था तब कांग्रेस को इतना तो विश्वास था कि वे अपने हिंदुत्व, राम मंदिर के मुद्दे के कारण आराम से हाशिये पर हो जायेंगे. इस कांग्रेसी मानसिकता को तब अवश्य ही आघात लगा होगा जब मोदी को भरपूर समर्थन मिलने लगा. इस आघात पर कोढ़ में खाज का काम उनके उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के गिरते जनाधार ने किया. मोदी को मिलता व्यापक जनसमर्थन और राहुल के प्रति लोगों का व्यापक रुझान न होना कांग्रेस और उसके पदाधिकारियों को चिंताग्रस्त कर गया. इस स्थिति से कांग्रेसी खुद को उबारने के बजाय अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठे.
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राजनैतिक हलकों में भाजपा, मोदी को सांप्रदायिक बताया जाता रहा है. जबकि कांग्रेस ने खुद को धर्मनिरपेक्षता की एकमात्र अगुआ बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अपने आपको विकास के प्रति समर्पित बताकर राहुल गाँधी के लिए राजनैतिक राह आसान बनाने की कोशिश की जाती रही है. इतना सब होने के बाद भी मोदी द्वारा मंचों से सिर्फ विकास की चर्चा की गई, हिन्दू-मुस्लिमों को एकजुट होकर मंहगाई से लड़ने का आह्वान किया गया, आतंकी ताकतों को समाप्त कर देने की हुँकार भरी गई. इसके उलट स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष कांग्रेसीजन आये दिन सामाजिकता को प्रभावित करने वाली बयानबाज़ी करने लगे. खुद उनके उपाध्यक्ष द्वारा हालिया दंगों के पीड़ित मुस्लिम युवकों का आतंकी संगठन से संपर्क रखने वाला बयान हो या फिर अन्य पदाधिकारियों द्वारा मोदी को हत्यारा, दानव, शैतान आदि जैसे असंसदीय शब्दों से संबोधित करना हो, सब उनकी हताशा को दर्शाता है.
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इसके अतिरिक्त कांग्रेस द्वारा आये दिन गुजरात दंगों की चर्चा कर पुराने ज़ख्मों को कुरेदने का कार्य किया जाता रहता है. अभी तक की जांच से जिन दंगों के लिए मोदी आरोपी सिद्ध नहीं हुए हैं, उनके लिए उन्हें आरोपी बताया जाता है. जबकि गुजरात दंगे को बार-बार सामने लाने वाले कांग्रेसी भक्त भूल जाते हैं कि उनके कुछ नेता १९८४ नरसंहार के आरोपी घोषित किये जा चुके हैं.  कांग्रेस ऐसे बयानों के द्वारा जानबूझ कर सामाजिक माहौल बिगाड़ना चाहती है, साम्प्रदायिकता फैलाना चाहती है और इसका पूरा दोषारोपण वो मोदी, भाजपा पर करके उसका राजनैतिक लाभ लेना चाहती है. मोदी को नापसंद करना, उनका वैचारिक विरोध करना किसी भी राजनैतिक  दल की, राजनैतिक व्यक्ति की अपनी मजबूरी हो सकती है किन्तु हताशा में, अपने आपको धर्मनिरपेक्ष सिद्ध करने के चक्कर में अनर्गल प्रलाप करना कतई सही नहीं है. ऐसा करना कांग्रेस, कांग्रेसी पदाधिकारियों, उनके समर्थकों के मानसिक दीवालियेपन को ही दर्शाता है.
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1 टिप्पणी:

  1. Yes you are right अपने आपको धर्मनिरपेक्ष सिद्ध करने के चक्कर में अनर्गल प्रलाप करना कतई सही नहीं है - See more at: http://www.kumarendra.com/2013/11/blog-post_11.html#sthash.eUvGZVtK.dpuf

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