मतदाता जागरूकता को लेकर तमाम सारी संस्थायें, व्यक्ति कार्य करते दिखाई दे रहे हैं। मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों का और चुनाव आयोग की सख्ती का, सकारात्मक सक्रियता का परिणाम यह रहा कि मतदान प्रतिशत पिछले बार की अपेक्षा अधिक रहा है। इसी जागरूकता के बीच मतदाताओं में प्रत्याशियों को नकारने का भी अभियान भी अपना जोर पकड़ता दिख रहा है। इस नकार के लिए मतदाता निर्वाचन सम्बन्धी विभिन्न नियमों में से ‘49 ओ’ (जिसे आम बोलचाल की भाषा में फॉर्म 49 ओ के नाम से जाना जा रहा है) का प्रयोग करना चाहते हैं।
इस नियम के उपयोग को लेकर कई तरह की भ्रान्तियाँ मतदाताओं के बीच दिख रही हैं और इसका समाधान प्रशासनिक स्तर पर भी होते नहीं दिखा। हमें स्वयं ही कई अवसरों पर प्रशासनिक मशीनरी से इस सम्बन्ध में तर्क-वितर्क का सामना करना पड़ा। इधर इस अधिकार के उपयोग को लेकर जनपद के अधिसंख्यक मतदाताओं द्वारा दिखाई गई सक्रियता के बाद लगा कि ‘49 ओ’ को लेकर हो रही असमंजस की स्थिति को दूर करने की आवश्यकता है। असमंजस का कारण ‘49 ओ’ के साथ ‘फॉर्म 17 ए’ शब्द का चलन में आना भी रहा है।
प्रशासनिक मशीनरी से लगातार सम्पर्क करने, अपने पुराने सम्पर्क-सूत्रों से जानकारी ज्ञात करने पर तथा विगत चरणों के चुनावों में कार्य कर चुके लोगों से सम्पर्क करने पर ‘फॉर्म 17 ए’ तथा ‘49 ओ’ के बारे में सही और पर्याप्त जानकारी मिली। इसके साथ ही इसके प्रयोग करने का सही तरीका भी ज्ञात हुआ।
सत्यता यह है कि मतदान स्थल पर मतदानकर्मियों द्वारा उपस्थित मतदाताओं की जानकारी भरने के लिए जिस रजिस्टर का प्रयोग किया जाता है उसे ही ‘फॉर्म 17 ए’ के नाम से जाना जाता है। इसमें क्रम संख्या, मतदाता संख्या, उसके हस्ताक्षर और टिप्पणी कॉलम बने होते हैं। इसमें उन सभी मतदाताओं की जानकारी अंकित की जाती है जो मतदान स्थल पर अपने मताधिकार का प्रयोग करने जाते हैं। इसी रजिस्टर में मतदाता की जानकारी (उसका मतदाता क्रमांक, उसके द्वारा दिखाया गया परिचय-पत्र और मतदाता के हस्ताक्षर) भरने तथा मतदाता की उँगली में स्याही का निशान लगाने के बाद ही मतदाता अपने मत का प्रयोग करता है।
अब माना कि कोई मतदाता ‘49 ओ’ का प्रयोग करना चाहता है तो वह उक्त प्रक्रिया को पूर्ण करने के बाद पीठासीन अधिकारी को बतायेगा कि वह अपने मत का प्रयोग नहीं करना चाह रहा है। वह ‘49 ओ’ के अन्तर्गत किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान न करके सभी को नकारने जैसा कदम उठायेगा। ऐसी स्थिति में पीठासीन अधिकारी के निर्देशानुसार इसी रजिस्टर पर मतदानकर्मी लिख देगा कि ‘‘मतदान करने से इंकार किया’’ इसके बाद मतदाता को पुनः अपने हस्ताक्षर वहाँ इस लिखी इबारत के सामने करने होंगे। इसी को कहा जाता है ‘49 ओ’ और यह भी मत के रूप में कार्य करता है तथा इनकी भी गणना की जाती है। दरअसल ‘49 ओ’ निर्वाचन सम्बन्धी नियमावली 1961 की एक धारा (नियम) है और ‘फॉर्म 17 ए’ वह दस्तावेज (रजिस्टर) है जिसमें मताधिकार का प्रयोग करने वाले मतदाताओं का विवरण दर्ज किया जाता है तथा नियम ‘49 ओ’ का प्रयोग करने पर लिखा जाये कि मतदाता ने मतदान करने से इंकार किया।
इस सम्बन्ध में एक जानकारी और भी प्राप्त हुई है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि ‘49 ओ’ के प्रयोग किये गये मतों की संख्या उन मतों की संख्या से अधिक हो जाती है, जितने मतों के अंतर से प्रत्याशी विजयी हुआ है तो वह चुनाव रद्द कर दिया जायेगा और उस क्षेत्र में पुनर्निर्वाचन होता है। (उदाहरण के लिए कोई प्रत्याशी 2000 मतों से विजयी होता है और ‘49 ओ’ का प्रयोग किये गये लोगों की संख्या भी 2000 से अधिक होती है तो उस क्षेत्र का चुनाव रद्द कर दिया जायेगा और पुनर्निर्वाचन करवाया जायेगा) पुनर्निर्वाचन होने की स्थिति में इन पुराने प्रत्याशियों में से किसी को भी चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होता है....आखिर मतदाताओं ने उन सभी को नकारने का कार्य किया था।
भले ही हाल-फिलहाल में इस नियम के उपयोग की सार्थकता नहीं दिखाई दे रही हो किन्तु यदि इसके प्रति मतदाताओं में रुझान और आकर्षण बढ़ता गया तो यकीनन प्रत्याशियों में इस नियम ‘49 ओ’ के प्रति खौफ पैदा होगा और सम्भव है कि आयोग द्वारा मतदाता मशीन में सभी को नकारने सम्बन्धी कोई नया बटन ही बना दिया जाये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें