30 अक्तूबर 2011

चुनाव सुधारों हेतु आप भी सक्रिय हों


चुनावों की सुगबुगाहट शुरू होते ही तमाम राजनैतिक दलों में सरगर्मियां बढ़ जाती हैं वहीं चुनाव आयोग भी अपनी सक्रियता दिखाने लगता है। इधर आगामी वर्षों में कई राज्यों में विधानसभाओं और फिर लोकसभा के चुनावों के होने के कारण चुनाव आयोग ने अपनी सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। मतदाता सूचियों में नाम शामिल करने, नामों को हटाने के साथ-साथ मतदाताओं की गलत सूचनाओं को सही करने का काम बहुत तेजी से चल रहा है। इसी के साथ-साथ मतदाता पहचान-पत्र के बनाने का कार्य भी जारी है। इन कार्यों के सफलता पूर्वक चलने के लिए चुनाव आयोग आये दिन जनता से सहयोग की अपील करता रहता है।

इन सब कार्यों के अतिरिक्त चुनाव आयोग समय-समय पर जनता से सुझाव भी मांगता रहता है और इन सुझावों के आधार पर चुनाव प्रणाली को, चुनावी व्यवस्था को सुधारने का दावा भी चुनाव आयोग करता रहता है। चुनाव आयोग की आवाज में जनता के कुछ जागरूक लोग अपनी आवाज को मिलाते रहते हैं तो कई गैर-सरकारी संगठन भी अपना सहयोग देने का दम भरते दिखाई देते हैं। कुछ स्वनामधन्य लोग तो सिर्फ चुनाव सुधारों को आधार बनाकर ही अपनी सांगठनिक क्षमता को प्रदर्शित करने में लगे रहते हैं। उनके प्रत्येक कार्य, प्रत्येक कदम चुनाव सुधारों को लेकर ही आधारित रहते हैं।

चुनाव आयोग द्वारा सुझावों की मांग करना और उसके बाद उन पर अमल करते न दिखाई देना उसकी निष्क्रियता का परिचायक ही है। विगत कुछ वर्षों से देखने में आ रहा है कि चुनावों में अत्यधिक धन-बल का प्रयोग होने लगा है और अब यह किसी तरह से चोरी-छिपे नहीं बल्कि खुलेआम होने लगा है। इसके बाद भी चुनाव आयोग की ओर से किसी तरह के अंकुश लगाये जाने की बजाय लगभग प्रत्येक चुनावों में चुनावी खर्च-सीमा को बढ़ा देने का कदम उठा लिया जाता है। 25 से लेकर 40 लाख तक की चुनावी खर्च-सीमा में कोई साधारण व्यक्ति किस प्रकार चुनाव में उतरने की सोच सकता है?

एक ओर हमारा संवैधानिक ढांचा प्रत्येक व्यक्ति की चुनावों में, लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भागीदारी को सुनिश्चित करने की बात करता है तो दूसरी ओर चुनाव आयोग की ओर से एक प्रकार से उसे चुनावों में अपनी सहभागिता से वंचित सा किया जाता है। यदि वाकई चुनाव आयोग का मन्तव्य चुनावों को निष्पक्ष बनाना, कम खर्चीला बनाना, सकारात्मक सहभागिता करवाना है तो उसे कुछ सुझावों को सकारात्मक रूप से स्वीकार करके अमल में लाना ही होगा। ख्यालीपुलाव सा पकाने से, आये दिन जनता के बीच अपनी डुगडुगी सी पिटवाने से, सुझावों को एकत्र करने का नाटक करने से बेहतर है कि जो सुझाव जनता से आ रहे हैं उन पर ठोस रूप में कोई नीति बनाकर उनको अमल में लाया जाये।

कुछ सुझावों पर पिछले एक लम्बे समय से हमारे मित्र और सहयोगीजन बराबर चुनाव आयोग को लिखने में लगे हैं और आम जनता के बीच भी इनको ले जाने का कार्य कर रहे हैं किन्तु चुनाव आयोग की बिना किसी सकारात्मक रणनीति के ये सुझाव क्रियान्वित होते नहीं दिखाई देते हैं। हमारा आप सभी से निवेदन यह है कि आप भी अब अपनी निष्क्रियता को त्याग कर अपने-अपने सुझावों को चुनाव आयोग तक बराबर और बड़ी संख्या में भिजवाते रहें ताकि एक न एक दिन चुनाव आयोग की निद्रा टूटे और सम्भवतः देश की सशक्त लोकतान्त्रिक प्रणाली के विकास के लिए वह कुछ कदम उठा सके। इन सुझावों में कुछ सुझावों को संक्षिप्त रूप में बिन्दुवार निम्न प्रकार से समझा जा सकता है--

1- प्रत्याशियों के चुनावों में अपनी जातियों को लिखने से रोका जाये, जिससे जातिगत समीकरणों में कुछ अंकुश लग सकता है।

2- चुनावी खर्च-सीमा को कम किया जाये ताकि अधिक से अधिक लोगों की चुनावों में सहभागिता हो सके और सही व्यक्ति का चुनाव करने में आसानी हो सके।

3- रैलियों, प्रचार आदि में वाहनों की निश्चित संख्या तो कर दी गई है, इसके बावजूद इनका दुरुपयोग लगातार हो रहा है। चुनाव प्रचार में बड़ी मंहगी, लक्जरी गाड़ियों के उपयोग पर रोक के अलावा किसी भी नेता के हैलीकॉप्टर आदि के प्रयोग पर भी चुनाव आयोग को रोक लगानी चाहिए।

4- समाचार-पत्रों, टी0वी0 आदि में भी विज्ञापन पर रोक हो। इनमें विज्ञापनों से धन की हानि तो होती ही है साथ ही मतदाता को भ्रमित भी कर दिया जाता है।

5- चुनावों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग तो होने लगी है किन्तु इसके बाद भी मतदाताओं में रुचि कम है। अब चुनाव आयोग को ई-वोटिंग की ओर भी बढ़ना होगा और इसके लिए एन0आई0सी0 की मदद भी ली जा सकती है।

6- मतदाताओं की संख्या को प्रत्येक बूथ पर कम किया जाये और बूथों को बढ़ाया जाये। अभी मतदाताओं की संख्या और मतदान समय में सही अनुपात नहीं है।

इन सुझावों पर विस्तार से आगामी पोस्ट में चर्चा की जायेगी...अभी आपसे निवेदन है कि आप भी सुझावों को ज्यादा से ज्यादा और लगातार चुनाव आयोग को भेजकर अपनी सहभागिता को सुनिश्चित करें।


चित्र गूगल छवियों से साभार

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