नोएडा की दो बहनों की घटना तो सभी को पता चल ही गई होगी। ये घटना क्या दर्शाती है, यह भी बताने की आवश्यकता नहीं है। इस तरह की घटनायें समाज में क्या संदेश दे रहीं हैं या कहें कि किस तरह के समाज का निर्माण हम कर रहे हैं?
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चित्र गूगल छवियों से साभार
मीडिया के द्वारा अब हमें अपने आसपास की घटनाओं का, परिवारों का पता लग पाता है। छह-सात माह से घर में बन्द दो बहनों के प्रति उसके पड़ोस वाले उतने ही संवेदनशील रहे जितने कि एक बड़े शहर में हो सकते हैं। मीडिया के सामने अब वे कहते दिख रहे हैं कि उन्होंने तो बराबर उन बहनों की जरूरत के बारे में पूछा किन्तु उन्हीं बहनों ने हमेशा मना कर दिया। ऐसे में विचार करने योग्य यह है कि क्या सिर्फ जरूरत को पूछ लेना और मना करने पर शान्त होकर बैठ जाना ही एक अच्छे पड़ोसी का दायित्व बनकर रह गया है?
आज जो पड़ोसी और संस्था जागरूक होकर उन बहनों को बाहर निकालने की कोशिश करते देखे गये क्या वे इस बात की पहल कुछ महीनों पहले नहीं कर सकते थे? इन जागरूक पड़ोसियों को क्या इस बात का अंदाजा नहीं था कि किसी भी घर में कितने दिनों का राशन हो सकता है? क्या वे नहीं जानते हैं कि एक घर में कितने दिनों तक रसोई गैस, सब्जी, दालें आदि रह सकती हैं?
अब भी इन बहनों की मानसिक स्थिति को देखा-परखा जा रहा है। किसी ने कभी भी उनकी इस जानकारी को लेने की जरूरत नहीं समझी कि कैसे और किन कारणों से एक सी0 ए0 का काम कर रही बहिन ने नौकरी छोड़कर खुद को घर में कैद कर लिया। क्यों सम्पन्न घर की दो लड़कियां खुद को समाज से छिपाकर घर में ही कैद किये रहीं? क्यों कैद में रखने के बाद भी वे अपने आपको भोजन-पानी से दूर रखे रहीं?
हालांकि अब इन सवालों के साथ-साथ इस बात की भी जानकारी करने की आवश्यकता है कि क्या समाज अब इसी तरह से संकुचित दायरे में कैद रहेगा? क्या परिवार के नाम पर पति-पत्नी-बच्चे ही शामिल माने जायेंगे? हम कब तक स्वयं को भौतिकवादी जाल में फंसाये रहेंगे और आने वाली पीढ़ी के लिए, अपने बच्चों के लिए खतरनाक समाज का निर्माण करते रहेंगे? घटना को याद रखिये और कम से कम आने वाली पीढ़ी के लिए ही सुन्दर, स्वस्थ, सहज, सरल, विश्वासपरक समाज की नींव तैयार करें।
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