आज कुछ मौका मिला तो कम्प्यूटर खोलकर आप सबके साथ आ गया। कुछ ब्लॉग पर जाकर टिप्पणी भी की और इसी दौरान दिमाग ने अपना रंग दिखाना शुरू किया। बस टिप्पणी करना बंद और आ गये कुछ लिखने के लिए।
इन दिनों अपने विधान परिषद के चुनाव में व्यस्त होने के कारण अपने क्षेत्र में बराबर रहना पड़ रहा है। शिक्षकों के मध्य जाकर उनके विचारों को सुनना और फिर उसी के अनुसार अपनी बात को स्पष्ट करना पड़ रहा है। राजनीति की इच्छा तो बहुत पहले से मन में थी किन्तु सही समय का इंतजार था। शिक्षक विधायक के रूप में मौका भी सही लगा तो उतर आये मैदान में।
अब लग रहा है कि अभी इस क्षेत्र में तो स्वयं से ही सभी की लड़ाई जारी है। देश को दिशा देने वाला शिक्षक ही बहुत बार दिग्भ्रमित दिखाई पड़ता है। उसे स्वयं इस बात का भान नहीं है कि उसके पास वोट करने की ताकत है। वह तो अभी भी स्वयं को दीन-हीन दशा में खड़ा करना पसंद करता है।
चित्र गूगल छवियों से साभार
यह देश की विद्रूपता भरी स्थिति कही जायेगी कि देश में राजनीतिज्ञ, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, अधिकारी पैदा करने वाला शिक्षक ही दीन-हीन दशा में दिख रहा है। उसे इस स्थिति में यदि कुछ हद तक स्वयं उसने खड़ा किया है तो उसके नाम पर राजनीति करने वालों ने भी उसे इस हालात तक पहुंचाया है।शिक्षकों में गुटों के आधार पर राजनीति का होना इस बात का सूचक है कि शिक्षकों को एक हथियार के रूप में पेश करके कुछ नेतागण अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। इसके साथ ही इस बात पर भी हंसी आती है कि कैसे एक शिक्षक बिना सोचे समझे पिछलग्गू की तरह से चल देता है।
इन चुनावों में आकर लगा कि अब वो समय है जब शिक्षक वर्ग को सह बताना होगा कि यदि वह समाज को दिशा दे सकता है तो वह देश में लगातार गंदी होती जा रही राजनीति को भी सुधार कर दिशा दे सकता है। यही सोच समझ कर लगता है कि अभी इस क्षेत्र में लड़ाई तो स्वयं से ही है।
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MLC हेतु मतदान 10 नवम्बर को है तथा मतगणना 12 नवम्बर को है। पूरी तरह से उसी के बाद फुर्सत मिलेगी। तब तक यूं ही किश्तों में मुलाक़ात रहेगी।
चुनाव के लिए शुभकामनाएँ. जागरुकता की जरुरत है. आपसे उम्मीदें हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत ...शिक्षक सच ही एक नयी और सही दिशा दे सकता है ..
जवाब देंहटाएंदेश का हर व्यक्ति अपनी अपनी जिम्मेदारी समझें .. तो देश को बदलने में समय नहीं लगेगा .. रास्ता दिखाना तो शिक्षकों को ही काम है !!
जवाब देंहटाएंजब तक हम आत्मसम्मान का पाठ नहीं पढेंगे तब तक ऐसे ही हीनभावना से ग्रसित रहेंगे। शिक्षक भी आजकल कहाँ ज्ञानवान रह गए हैं? वे भी तो केवल अर्थोपार्जन कर रहे हैं तब बिना ज्ञान के कैसे आत्मसम्मान जागृत होगा? आपको शुभकामनाएं।
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