27 सितंबर 2010

अब खेल ग्राम दुरुस्त है -- मीडिया को हड्डी का टुकड़ा मिल गया होगा




इधर कॉमनवेल्थ गेम्स की खबरें अच्छी आने लगी हैं। खेलग्राम भी अच्छा बन गया है और खिलाड़ियों को भी कोई शिकायत नहीं रह गई है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि मीडिया ऐसा कह रहा है। यह वही मीडिया है जो एक दिन पहले तक इन सबको लेकर सरकार की खिंचाई करने में लगा था वही अब काम की तारीफ सा करते दिख रहा है।

चित्र गूगल छवियों से साभार

इन बातों को देखकर लगता है कि मीडिया को सरकार की तरफ से हड्डी का टुकड़ा डाल दिया गया है। हड्डी का टुकड़ा से मतलब समझते हैं आप? विज्ञापन अथवा कुछ सुविधा शुल्क जैसी स्थिति।

जी हां ये वो स्थिति है जिसके लिए मीडिया लालच के साथ घूमता रहता है। स्थानीय स्तर पर भी देखने में आया है कि विज्ञापन मिलने की स्थिति में मीडिया के द्वारा इस तरह खाल उतारी जाती है कि बस पूछिये नहीं।

जब एक छोटी सी जगह और छोटी सी स्थितियों में मीडिया की यह हालत है तो समझा जा सकता है कि जहां करोड़ों-अरबों का खेल हो रहा हो वहां मीडिया की दुम हिलाउ स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है।

बहरहाल इस विषय पर बहुत कुछ नहीं लिखना है। सवाल मन में यही उठ रहा है कि एक दिन पहले जिस खेल ग्राम की हालत बद से बदतर थी वह मात्र एक दिन में कैसे सही हो गई?

सवाल और भी हैं पर यही सारे सवाल आप सभी के मन में हैं। आप भी विचार कीजिए और मीडिया की हरकतों को और गौर से देखिये तथा परखिये।

खेलग्राम अब पूरी तरह से तैयार है। वाह रे मीडिया!

8 टिप्‍पणियां:

  1. बदले बदले मेरे सरकार नजर आते हैं (आप नहीं मीडिय वाले) :)

    -दाल में कहीं तो कुछ काला है.

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  2. इन्‍हें केवल हड्डी ही नहीं चाहिए इन्‍हें तो भरपूर गोश्‍त भी चाहिए। बीबीसी के एक तस्‍वीर न जाने कहाँ की खेच की दिखा दी और लगे हैं सभी उन तस्‍वीरों को दिखाने में। अपने देश को बदनाम करते इन्‍हें जरा सी भी शर्म नहीं आती। इस देश का कलंक हैं ये मीडिया।

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  3. आपकी बात से सहमत हूं. असल में आज मिडिया या आप चाहे जो कहले..उसमें सच्चाई इमानदारी, सेवा कर्तव्य...जैसे शब्द कोई मायने नही रखते. बल्कि आज अखबार, टीवी चैनल ये सब धंधे के अंतर्गत चलाये जाते हैं. और धंधे का उसूल है कि सामने वाले को जितना निचोडोगे उतना ही तेल निकलेगा. तो अब बताईये इसमे इनकी क्या गल्ती है? धंधा करने बैठे हैं या समाज सेवा? तय आपको करना है. ताऊ टीवी तो ऐसे ही करेगा.:)

    रामराम.

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  4. मर्म की बात को आप तो समझ गए पर हमारे कुछ मित्र नहीं समझ पा रहे ।

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  5. उफ़ , आज पूरे दिन में बहुत कम लेख मिले जिनका उद्देश्य समझ में आया है
    इस लेख से जागरूक करने के लिए आभार

    वैसे इस बारे में मेरी अपनी राय है पर आप से ये पूछना चाहता हूँ की
    १. क्या सबकुछ एक दम से सामान्य हो जाना सही था या मीडिया सच में इस बार देश को आइना दिखाकर ही ब्लेकमेल कर रहा था ??
    २ .क्या हमारा सुधर जाना हमारी सच्ची देश भक्ति [मीडिया को कोसना छोड़ कर ] नहीं बन सकता जो मीडिया के खिलाफ काम करे ??

    ये मैं आपसे पूछ रहा हूँ केवल जिज्ञासा वश मैं लेख पर सवाल नहीं उठा रहा हूँ

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  6. ख़बरें देखकर हमें भी यही लगा कि आखिर हड्ड़ी की खेंप मिडिया तक पहुँच गई !!

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  7. .

    मुंह में हड्डी, हाथ में लोलीपोप !...कलम घूम गयी मालिकों की खिदमत में।

    .

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  8. ऊपर तस्वीर ही सब बयान कर रही है.. :)

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