24 जुलाई 2010

जाति-विभेद दूर करने में भी जातिगत राजनीति




देश की जनगणना में जाति को शामिल करना/न करना का विवाद अपने अलग रंग में है। आये दिन बुद्धिजीवी इसको लेकर प्रदर्शन, धरना आदि में व्यस्त रह रहे हैं। बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया है।

(चित्र गूगल छवियों से साभार)


इधर कुछ दिनों से खबर लगातार मिल रही है कि प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों ने मिड डे मील का खाना खाने से मना किया। इसके पीछे कारण भोजन का दलित महिला से बनवाया जाना बताया जा रहा है। सरकार ने जाति विभेद को दूर करने का यह अनोखा तरीका इजाद किया है कि स्कूलों में भोजन दलित जाति की महिला बनायेगी। इससे विभेद मिट रहा हो या नहीं पर बच्चों के मन में जातिगत संकीर्णता और तेजी से घर कर रही है।

जाति का कारनामा नेताओं की देन है तो समाज के ठेकेदारों की भी देन है। इसके अलावा हम लोग भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जातिगत समस्याओं को हवा देते रहते हैं। अकसर देखने में आया है कि जाति धर्म को लेकर बड़े-बड़े भाषण देने वाले ही जातिगत संकीर्णताओं में बँधे देखे गये हैं।

बहरहाल यह तो समाज का चलन है, जो तब तक जारी रहेगा जब तक कि समाज स्वयं इसको चलन से दूर करने की नहीं ठान लेता। इस पोस्ट के पीछे से सवाल उठाना हमारा मकसद था कि


स्कूलों में दलित महिलाओं के द्वारा भोजन बनवाने से क्या जातिगत विभेद समाप्त हो जायेगा?

होटलों, ढाबों आदि में भोजन करते समय क्या हम भोजन बनाने वालों की अथवा वेटरों की जाति पूछकर वहाँ भोजन करते हैं?

विवाह, समारोहों आदि में भोजन करते समय क्या वहाँ काम कर रहे लोगों से उनकी जाति पूछते हैं?

अपने देवी-देवताओं के लिए प्रसाद लेने के लिए, व्रत-पूजा के लिए मिठाई लेने के पहले क्या हलवाई की अथवा उस मिठाई को बनाने वाले की जाति का पता करते हैं?


जाति का मिटना हमारे हाथ में ही है और उसका बढ़ना भी हमारे हाथ में है। हम भले ही अपनी जाति को न छिपाना चाहें, ठीक है पर कम से कम किसी अन्य को उसकी जाति के कारण छोटा और ही न समझें। किसी को मात्र जाति के कारण ही प्रताड़ना का शिकार न बनायें, भेदभाव का शिकार न होने दें। इस तरह के कदम ही जातिगत विभेद को दूर करने में सहायक होंगे।

समस्या का मूल समझना होगा, इसको ऊपर-ऊपर से दूर करने का प्रयास समाज के लिए घातक ही होगा।

9 टिप्‍पणियां:

  1. सब वोट बैंक पक्का करने के नाटक है ! बढ़िया पोस्ट !

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  2. जाती का असर चुनाव में देख लो. वैसे बच्चों को शामिल करना बहुत बुरी बात है.

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  3. जाती का असर चुनाव में देख लो. वैसे बच्चों को शामिल करना बहुत बुरी बात है.

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  4. mid day meal ka haal bahut kharaab hai, ye yojna to band honi chahiye. ab bachche iske dwara jati kii mansikta men fans gaye hain.

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  5. भाईजी आप इस विषय पर बहुत अच्छा लिख सकते हैं. एक पूरा बड़ा सा लेख लिखिए.

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  6. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!

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