ओ अध्यापक, अब तुम्हारे दिन चले गये। अरे जब बच्चों को जन्मने वाले माता-पिता की कोई औकात नहीं रही तो मास्टर की क्या बिसात? चुपचाप स्कूल में आओ, पढ़ाओ और अपने घर जाओ। बच्चे स्कूल में क्या कर रहे हैं, पढ़ रहे हैं अथवा नहीं, मेहनत कर रहे हैं अथवा नहीं यह सब जाँचना-परखना अब तुम्हारा काम नहीं है।
क्या तुम अभी तक अपना वही समय मानकर चल रहे थे जब बच्चे के माता-पिता कहते थे कि खाल-खाल तुम्हारी और हड्डी हमारी? अरे छोड़ो उस समय को, अब बच्चे को मारना तो दूर आँख दिखाने की भी हिम्मत नहीं कर सकते हो।
आजकल के समय में बच्चे अब वे बच्चे नहीं रह गये जो अध्यापक के बारे में धारणा रखते थे कि गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागों पाँव, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये। अब तो बच्चे कहते हैं कि उस अध्यापक की बलिहारी (बलि) हो जिसने हमारे बारे में हमारे बापों (गोविन्द) को शिकायत कर दी।
अब बच्चों में जागरूकता है, वे जानते हैं कि अध्यापक कुछ भी नहीं सिखा रहे हैं। सिखाने के लिए पड़ोस के दीदी और भैया हैं जो रात को छत पर खुद सीखते हैं और शाम को पार्क में बच्चों को सिखाते हैं। सिखाने के लिए टी0वी0 है, इंटरनेट है जो बिना डाँट-फटकार के सब सिखा रहा है और सब दिखा भी रहा है।
अध्यापको तुमने तो बच्चों को मारना ही सीखा है, पढ़ाना तुम्हें तो तब आता जबकि तुम खुद पढ़ पाते। अरे तुम पढ़े होते तो मास्टरी करते कहीं मल्टीनेशनल कम्पनी में अपना खून चुसवा रहे होते और साल के लाखों के पैकेज पर कामगार मजदूर की तरह काम कर रहे होते। पहले पढ़ो तब बच्चों को पढ़ाने की हिम्मत करो।
नहीं माने न तुम मास्टर हमारी बातें तो भुगतो। दो दिनों में दो बच्चों ने स्कूल की इमारत से कूद कर तुमको चुनौती तो दे ही दी। अरे क्या हुआ जो दोनो बच्चों के दोनों पैरों में फ्रैक्चर हो गया है, क्या हुआ जो दोनों बच्चों को परेशानी हो गई है पर तुम मास्टर तो सही हो गये। बच्चों को उनके माता-पिता ने तो डाँटा नहीं और तुम्हारी हिम्मत हो गई कि उनको डाँट लगाओ। अरे मास्टर हो तो मास्टर ही रहो, बाप बनने की कोशिश न करो।
कोशिश करी बाप बनने की अब घूमो पुलिस के चक्कर में। उनके स्कुल की इमारत से कूदने की घटना से प्रशासन तुम्हारी नहीं सुनेगा मास्टरो, वह तो उन बच्चों के माता-पिता की सुन रहा है जो कह रहे हैं कि स्कूल के अध्यापक बच्चों पर ज्यादती करते हैं। इसी डर से बच्चे ने छलांग लगा दी। तुम क्या समझते थे कि उन बच्चों के माता-पिता तुम्हारा पक्ष लेंगे, अरे, बच्चे तो अपने माता-पिता के दत्तक माँ-बाप हैं, तो.....।
अरे मास्टरो, अब तो चेत जाओ, अब तो जाग जाओ। अब न जागे, अब न चेते तो स्कूल के बच्चे खुद छलांग मारने के तुम मास्टरों की उठापटक कर देंगे। तुम मास्टरों को उठाकर छत से फेंक देंगे। जागो ग्राहक जागो कीतरह याद रखो, जागो मास्टर जागो, चेतो मास्टर चेतो।
क्या तुम अभी तक अपना वही समय मानकर चल रहे थे जब बच्चे के माता-पिता कहते थे कि खाल-खाल तुम्हारी और हड्डी हमारी? अरे छोड़ो उस समय को, अब बच्चे को मारना तो दूर आँख दिखाने की भी हिम्मत नहीं कर सकते हो।
आजकल के समय में बच्चे अब वे बच्चे नहीं रह गये जो अध्यापक के बारे में धारणा रखते थे कि गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागों पाँव, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये। अब तो बच्चे कहते हैं कि उस अध्यापक की बलिहारी (बलि) हो जिसने हमारे बारे में हमारे बापों (गोविन्द) को शिकायत कर दी।
अब बच्चों में जागरूकता है, वे जानते हैं कि अध्यापक कुछ भी नहीं सिखा रहे हैं। सिखाने के लिए पड़ोस के दीदी और भैया हैं जो रात को छत पर खुद सीखते हैं और शाम को पार्क में बच्चों को सिखाते हैं। सिखाने के लिए टी0वी0 है, इंटरनेट है जो बिना डाँट-फटकार के सब सिखा रहा है और सब दिखा भी रहा है।
अध्यापको तुमने तो बच्चों को मारना ही सीखा है, पढ़ाना तुम्हें तो तब आता जबकि तुम खुद पढ़ पाते। अरे तुम पढ़े होते तो मास्टरी करते कहीं मल्टीनेशनल कम्पनी में अपना खून चुसवा रहे होते और साल के लाखों के पैकेज पर कामगार मजदूर की तरह काम कर रहे होते। पहले पढ़ो तब बच्चों को पढ़ाने की हिम्मत करो।
नहीं माने न तुम मास्टर हमारी बातें तो भुगतो। दो दिनों में दो बच्चों ने स्कूल की इमारत से कूद कर तुमको चुनौती तो दे ही दी। अरे क्या हुआ जो दोनो बच्चों के दोनों पैरों में फ्रैक्चर हो गया है, क्या हुआ जो दोनों बच्चों को परेशानी हो गई है पर तुम मास्टर तो सही हो गये। बच्चों को उनके माता-पिता ने तो डाँटा नहीं और तुम्हारी हिम्मत हो गई कि उनको डाँट लगाओ। अरे मास्टर हो तो मास्टर ही रहो, बाप बनने की कोशिश न करो।
कोशिश करी बाप बनने की अब घूमो पुलिस के चक्कर में। उनके स्कुल की इमारत से कूदने की घटना से प्रशासन तुम्हारी नहीं सुनेगा मास्टरो, वह तो उन बच्चों के माता-पिता की सुन रहा है जो कह रहे हैं कि स्कूल के अध्यापक बच्चों पर ज्यादती करते हैं। इसी डर से बच्चे ने छलांग लगा दी। तुम क्या समझते थे कि उन बच्चों के माता-पिता तुम्हारा पक्ष लेंगे, अरे, बच्चे तो अपने माता-पिता के दत्तक माँ-बाप हैं, तो.....।
अरे मास्टरो, अब तो चेत जाओ, अब तो जाग जाओ। अब न जागे, अब न चेते तो स्कूल के बच्चे खुद छलांग मारने के तुम मास्टरों की उठापटक कर देंगे। तुम मास्टरों को उठाकर छत से फेंक देंगे। जागो ग्राहक जागो कीतरह याद रखो, जागो मास्टर जागो, चेतो मास्टर चेतो।
achchha hai, master ab bachchon ke nishane par hain.
जवाब देंहटाएंachchha hai, master ab bachchon ke nishane par hain.
जवाब देंहटाएंbahut sahi, teachers ki ijjat ab bachi kahn hai? students, parents, management sabhi to teachers ko pareshan karne men lage hain. koi agli post sabhi ko aadhar bana kar likho. aapki kalam sahi kahti hai.
जवाब देंहटाएंrakesh kumar
kanpur
(aapko mail kiya hai, kripya blog banane ka tareeka batayen. dhanyavad)
bahut sahi, teachers ki ijjat ab bachi kahn hai? students, parents, management sabhi to teachers ko pareshan karne men lage hain. koi agli post sabhi ko aadhar bana kar likho. aapki kalam sahi kahti hai.
जवाब देंहटाएंrakesh kumar
kanpur
(aapko mail kiya hai, kripya blog banane ka tareeka batayen. dhanyavad)
Post sochne ko majboor karti hai.
जवाब देंहटाएंG A Z A B !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आपने
जवाब देंहटाएंकई बार मास्टरों की ज्यादती बच्चों पर भारी पड़ती ही है.
बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आपने
जवाब देंहटाएंकई बार मास्टरों की ज्यादती बच्चों पर भारी पड़ती ही है.
ऐ मास्टर होश में आओ, पढ़ाने की बजाय मध्यान्ह भोजन पर ध्यान दो, बच्चों को फ़टकारने की बजाय जनगणना करो… :)
जवाब देंहटाएंऔर सुन मास्टर, "भारत महान" के बच्चे भी तो पिछड़े हुए हैं इसलिये अपने छिछोरे बाप से तुम्हें पिटवाते हैं, यदि ब्रिटेन की तरह अगड़े होते तो तेरा MMS बनाते… समझे मास्टर!!! :) :)
आपने पिछले दिनों बच्चों के स्कूल से कूदने की घटना को आधार बना कर अच्छा लिखा है. आजकल बच्चे और अध्यापक के बीच का रिश्ता गरिमामय न रह जाने के कारण ऐसा हो रहा है.
जवाब देंहटाएंये सच है कि आजकल के बच्छे कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो गए हैं ... थोड़ी सी दांत पड़ी कि नहीं ख़ुदकुशी करने का सोचते हैं ... एक अजीब दौर है ...
जवाब देंहटाएंऔर एक हम जैसे लोग हैं ... ये सोचते हैं कि माँ-बाप की मार पड़ी तभी कुछ बन पाए ...
जमाना बदल गया है ..और उसके साथ हर इंसान के मायने भी.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आपका एक और चेताता लेख पढ़ा चाचा जी.. व्यंग्य के लहजे में खरी बात कही फिर से..
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