03 अप्रैल 2010

हे भगवान्! हमें किस पुरातन युग में पैदा कर दिया था



हाय रे! हम किस समय में पैदा हो गये थे? हाय रे! हमारे समय में खुशबू जैसी कोई हीरोइन क्यों नहीं हुई? हे भगवान! हमारे समय में अदालतों ने ऐसे क्रांतिकारी निर्णय क्यों नहीं दिये? हाय राम!, हाय रे! हे भगवान!.......और कितना चिल्लायें, कोई अब तो सुन लो।




जबसे अदालत का फैसला सुना कि विवाहपूर्व यौन सम्बन्ध बनाने और सहजीवन में कोई अपराध जैसा नहीं, कानूनी मान्यता है तबसे दिल पर साँप लोट गया। कई बार भगवान से भी शिकायत कर चुके हैं कि क्या बिगड़ जाता जो उसने हमें ऐसे वर्ष में पैदा किया होता कि आज हम 22-24 वर्ष के ही हुए होते। नहीं भगवान को भी उस समय पैदा करना था जब परिवार में संस्कार दिया जाना प्रमुखता में शामिल था। अपने घर की तो छोड़ो, मोहल्ले की, आसपड़ोस की लड़कियों तक को बहिन मानने की शिक्षा दी जाती थी। साथ में पढ़ने वाली लड़कियाँ भी राखी बाँध दिया करतीं थीं।

कितनी
तंग मानसिकता में जीने का पाठ पढ़ाया जाता था हमें। कितनी संकुचित मानसिकता में जीना सिखाया था हमारे माता-पिता ने हमें। कोई दूसरा रिश्ता ही नहीं, बस भाई-बहिन, बहुत हुए तो ऐसे दोस्त जिसके ऊपर माताजी की, दीदी की, बड़े भैया की पैनी निगाह बनी ही रहती थी। इनसे बचे तो पता चला कि पिताजी के दोस्तों की निगाहें पीछा कर रहीं हैं, भैया के दोस्तों ने जासूसी लगा रखी है। कितनी संकुचित मानसिकता रही थी उस समय घर वालों की, घर वालों के सहयोगियों की। उफ! खुद तो लम्बे वैवाहिक जीवन में बस एक के साथ गठजोड़ करके बने रहे और हमें भी शिक्षा देते रहे।

वाह
! आह!...... आह तो अपना अतीत याद करके निकल पड़ी, वैसे वाह! ही निकलनी है अबके समय को देखकर। क्या जमाना है, खुली छूट है, स्वतन्त्रता है, स्वच्छन्दता है, क्या नहीं है, जो पर्दे के पीछे था अब खुलेआम है। कोई रोक कर तो दिखाये, कानून साथ है, समाज के आधुनिकता समर्थक साथ हैं। मजा तो अब है जिन्दगी का। चाहे जैसे रहो, चाहे जिसके साथ रहो। खुल्लमखुल्ला रहो, बिंदास रहो मौका लगे तो ‘‘कंडोम, बिन्दास बोल’’ का नारा भी धमक दो। देखें कौन क्या कहता है, क्या करता है।



हमें
तो लगता है कि हमने कुछ किया ही नहीं। बस टुकुर-टुकुर देख लिया और रातों में जाग-जागकर कविता करने लगे। स्वयं को कवि समझने लगे। हाय! डर भी लगा रहता था कि कोई देख न ले, कोई परेशान न करे, कोई घर पर न बता दे। अब काहे का डर, उँह, हो जिसमें हिम्मत वो सामने आकर तो दिखाये, न पकड़वा दिया पुलिस से। अब बाप घबराते घूम रहे हैं कहीं किसी रेस्टोरेंट में, पार्क में, सड़क चलते सुपुत्र या सुपुत्री मिल न जायें किसी और के गले में बाँहे डाले। किसी और में अब तो कोई भी होने का डर लगा रहता है, पिताओं को,माताओं को।

माता
-पिता सिसियाए से घूम रहे हैं और बेटा-बेटी पूरी धमक और हनक के साथ अपने गुलछर्रों में मगन हैं। लगता है कि कैसी किस्मत है उन माता-पिताओं की जो अपनी युवावस्था में अपने माता-पिता से डरकर अपनी आँखों-आँखों में चलती प्रेम कहानी को कागजों तक सीमित रख पाये। न उसे दे सके और न उसे बता सके, साथ में मार खाने के डर से छिपते भी रहे, बचते भी रहे। और अब जबकि उनके बेटे-बेटी युवा हैं तो माता-पिता को उनसे फिर डरना पड़ रहा है, उनके सम्बन्धों के ज्वार से, नये रिश्तों के उभार से। डरो-डरो, डरना सीखो क्योंकि तुमको सिखाया यही गया है जबकि आज की पीढ़ी कहती है ‘‘डरना मना है।’’



अरे
! हम कहाँ माता-पिता, बेटा-बेटी में भटक गये। अपना दुख भुलाकर दूसरों के दुख का बखान करने लगे। काश, हमारा समय भी ऐसा होता तो हम भी कुछ धमाल कर जाते। किसी पार्क में, मॉल में, रेस्टोरेंट में अपनी उनको कुछ खिलाते, कुछ सिखाते और मौका ताड़ किसी दिन किसी और को बाँहों में झुलाते। हाय! अब क्या हो? संस्कारों के मारे हम अब तो ले चुके सात फेरे उनके साथ, कसम खाई है कि नहीं छूटेगा सात जन्मों का साथ। कितना अच्छा है आज का समय जहाँ सात जन्मों तक की कौन कसम खाये, सात दिन का भी ठौर नहीं। एक के साथ कौन सात चक्कर खाये, सात-सात से एक बार में चक्कर चलाये। क्यों विवाह जैसे मुश्किल भरे माहौल में अपने कदम फँसाये, अपनी गर्दन फँसाये जबकि विवाहपूर्व ही सभी सुविधाएँ कानूनी रूप से मुहैया हों।

हे
भगवान! यदि तुम सत्य के साँचे हो तो हमारी सुन लो, जैसे सबकी पीढ़ा हरते हो वैसी ही हमारी भी हर लो, जैसी सबकी बिगड़ी बनाते हो वैसी हमारी भी बना दो। हमें भी हमारे संस्कारों से मुक्ति दिला दो। हमें भी हमारी शिक्षाओं से मुक्ति दिला दो। हमें भी सात जन्मों वाले हमारे रिश्ते निभाने की कसम से छूट दिला दो।

भगवान
तुम्हें अपने अस्तित्व को बचाना है तो हमारी सुन लो, नहीं तो अदालत है हमारी बात सुनने के लिए। संस्कारों और रिश्तों की मर्यादा को तुम अपने पास ही रखो, शायद किसी और युग में फिर इसकी जरूरत पड़े। इस युग में तो अभी किसी को इनकी जरूरत नहीं।






(सभी चित्र गूगल छवियों से साभार लिए गए हैं)