सुरक्षा का सवाल और पहरेदारों का दगाबाजी करना....ये स्थिति कोई आज की नहीं पुरातन काल से चली आ रही है। राजा-महाराजाओं के दौर में भी कुछ व्यक्ति जासूसी के लिए रखे जाते थे और कुछ महिलायें भी अपनी सौन्दर्य-क्षमता से शत्रु राजाओं के भेद लेने की कोशिश में लगी रहतीं थीं।
आज भी यही सब हो रहा है, भले ही राजाओं-महाराजाओं के दौर समाप्त हो गये हों किन्तु सत्ता है, सरकार है और सियासत भी है। इन सबके लिए उन भेदियों की जरूरत होती है जो आसानी से सूचनाएँ, गोपनीय दस्तावेज़ इधर से उधर कर सकें।
जरूरत हमेशा हम किसी को हर किसी की रही है पर जरूरत की इस आवश्यकता के दौर में यह भुला दिया जाता है कि देश को हमारी कितनी जरूरत है? शायद आज देश पर जान देने वालों की संख्या से ज्यादा न सही तो कम भी ऐसे लोग नहीं होंगे जो देश की अस्मिता, सुरक्षा का सौदा आसानी से कर सकते हैं। इन्हीं कुछ लोगों में पिछले दो दिनों में शामिल लोगों के नाम मीडिया के द्वारा सामने लाये गये हैं।
देश की सर्वोच्च संस्था और उसके कर्मचारियों का ऐसा कदम सोचने को मजबूर करता है पर सोचने के अलावा और किया ही क्या जा सकता है?
कानून की ढीली-ढाली स्थिति और उस पर लम्बी चलती अदालती प्रक्रिया से अपराधियों के मन में किसी तरह का खौफ नहीं रह गया है। यदि ऐसा हो कि अपराध करने वाले के विरुद्ध कड़े से कड़ा कदम उठाया जाये तो सम्भव है कि अपराधी आसानी से गलत कार्यों को करने का विचार भी न बनायें।
अभी तो चिन्ता इसी बात की है कि देश की सुरक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ का यह एक हिस्सा ही पकड़ में आया होगा, तब क्या होगा जब इसके तार कहीं अधिक दूर तक अधिक गहराई तक जुड़े होंगे? सोचिये-सोचिये....हम भी सोच ही रहे हैं।
तेरी गठरी में लगा चोर मुसाफिर जाग ज़रा !
जवाब देंहटाएंहैरानी होती है ऐसी खबरें सुनकर, माधुरी वाली news सुनी तो लगा जब रक्षक ही भक्षक हो रहे है तो क्या होगा. सही, ये बहुत सोचने वाला विषय है
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है भाई... हैरानी तब और हुई जब मालूम पडा की इन्होने प्रेम के वशीभूत होकर ऐसा किया । भाई जो प्रेम देश द्रोह करवा दे वह तो ना मालूम किस श्रेणी में आएगा...
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