किसी को मारने का सबसे आसान तरीका क्या है? घबराइये नहीं, किसी की हत्या करने अथवा करवाने का मन नहीं है, बस मन आया तो पूछ लिया। पहले कभी सुन रखा था कि किसी को मारना हो (जान से या फिर धन से) तो उसको चुनाव लड़वा दो। हो सकता है कि किसी समय में यह बात अपने आपमें सही साबित होती हो किन्तु आज इस मरने-मारने का फार्मूला बदल गया है।
आज यदि किसी को मारना हो तो उसे ऐसे स्थान पर कुछ दिनों के लिए भेज दो जहाँ बिजली संकट अपने चरम पर हो। जी हाँ, यह वह हथियार है जिसका कोई काट नहीं है।
हमारे शहर उरई का ही हाल ले लीजिए, पिछले छह दिनों से हालत यह है कि रात को बिजली दिख भर जाये बस, यही उसका आना मान लिया जाता है। सारी रात मच्छरों से बचने की कोशिश करते रहिये नहीं तो वे उठाकर किसी पड़ोसी के घर में पटक दें और सुबह मुहल्ले में कुछ और ही कहानी बन जाये। वैसे भी मीडिया से जानपहचान होने के बाद भी उनकी खिंचाई किये रहते हैं तो और नमक-मिर्च लगाकर किस्सा सुनाया जायेगा।
अब सारी रात जागने और दिन में अपने काम में व्यस्त रहने के बाद किस माई के लाल का मानसिक संतुलन इतना मजबूत होगा कि स्थिर बना रहे? हमारा बिगड़ा तो नहीं पर बिगड़ने की कगार पर ही है। गनीमत है कि शायद बिजली वालों को पता चल गया होगा कि ये बिना मानसिक संतुलन बिगाड़े तो दम लिये है कहीं संतुलन बिगड़ गया तो बस.............!!! अभी तक तो बिजली आ रही है, अगले पल का वही लोग जानें।
मन में इसी उथलपुथल के दौरान विचार भी बहुत आते हैं। एक विचार आ रहा था कि ऐसा तो नहीं कि सरकार की मंशा हम सभी को अपने अतीत की ओर ले जाने की हो? बुतों, पार्कों में तो चमाचम, चकाचक बिजली आ रही है और इंसान जूझ रहा है, ऐसे में यदि शहरों में भी गाँवों जैसी संस्कृति देखने को मिलने लगे तो क्या कहने। शहर-गाँव सब एक समान। (देखा आपने मानसिक असंतुलन का नजारा, कहने क्या चले थे और कहने क्या लगे।) अब बंद।
बुतों और पार्कों पर एक बात याद आ गई वो बताते चलें फिर उसी पर कल विस्तार से। इंसान तो आये दिन मौत के मुँह में जा रहा है और बुतों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाबल बनाया जा रहा है।
जय भीम, जय भारत। कोऊ हमाओ का उखारत।।
आज यदि किसी को मारना हो तो उसे ऐसे स्थान पर कुछ दिनों के लिए भेज दो जहाँ बिजली संकट अपने चरम पर हो। जी हाँ, यह वह हथियार है जिसका कोई काट नहीं है।
हमारे शहर उरई का ही हाल ले लीजिए, पिछले छह दिनों से हालत यह है कि रात को बिजली दिख भर जाये बस, यही उसका आना मान लिया जाता है। सारी रात मच्छरों से बचने की कोशिश करते रहिये नहीं तो वे उठाकर किसी पड़ोसी के घर में पटक दें और सुबह मुहल्ले में कुछ और ही कहानी बन जाये। वैसे भी मीडिया से जानपहचान होने के बाद भी उनकी खिंचाई किये रहते हैं तो और नमक-मिर्च लगाकर किस्सा सुनाया जायेगा।
अब सारी रात जागने और दिन में अपने काम में व्यस्त रहने के बाद किस माई के लाल का मानसिक संतुलन इतना मजबूत होगा कि स्थिर बना रहे? हमारा बिगड़ा तो नहीं पर बिगड़ने की कगार पर ही है। गनीमत है कि शायद बिजली वालों को पता चल गया होगा कि ये बिना मानसिक संतुलन बिगाड़े तो दम लिये है कहीं संतुलन बिगड़ गया तो बस.............!!! अभी तक तो बिजली आ रही है, अगले पल का वही लोग जानें।
मन में इसी उथलपुथल के दौरान विचार भी बहुत आते हैं। एक विचार आ रहा था कि ऐसा तो नहीं कि सरकार की मंशा हम सभी को अपने अतीत की ओर ले जाने की हो? बुतों, पार्कों में तो चमाचम, चकाचक बिजली आ रही है और इंसान जूझ रहा है, ऐसे में यदि शहरों में भी गाँवों जैसी संस्कृति देखने को मिलने लगे तो क्या कहने। शहर-गाँव सब एक समान। (देखा आपने मानसिक असंतुलन का नजारा, कहने क्या चले थे और कहने क्या लगे।) अब बंद।
बुतों और पार्कों पर एक बात याद आ गई वो बताते चलें फिर उसी पर कल विस्तार से। इंसान तो आये दिन मौत के मुँह में जा रहा है और बुतों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाबल बनाया जा रहा है।
जय भीम, जय भारत। कोऊ हमाओ का उखारत।।
हमारे यहाँ भी 10-10 घंटे के बिजली कट चल रहे है कहने को तो हम राष्ट्रिय राजधानी क्षेत्र में रह रहे है पर बिजली के मामले में गांवों से भी बुरा हाल है |
जवाब देंहटाएंजा सरकार रात और दिन में फर्क नईं मानत है. जब बिजली आहे तो घरन और सड़कन सब पे बराबर जल है नईं तो सब घुप्प. दिन में काम करो और रात में मछरा मारो. चोरन से बचे और बेकारी की शिकायतऊ दूर.
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