09 अप्रैल 2010

एक साथ कई विषय पर संक्षिप्त रूप में -- एक नया प्रयोग


कुछ विषयों का समवेत स्वर किन्तु संक्षिप्त रूप में--- शायद आपको पसंद आये?
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अब साफ हुआ सानिया की शादी का रास्ता। खबर है कि आयशा को शोएब ने तलाक दिया। मीडिया का एक मुद्दा सरक कर दूसरा मुद्दा मिला। अब चिन्ता करें जागरूक भारतीय कि सानिया किस देश की तरफ से खेलेगी? चलो, सोचना बाद में पहले निकाह तो हो जाने दो।





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सरकार, कुछ तो करो अब! सरकार कोई भी हो, केन्द्र की या फिर राज्य की, नक्सलवादियों के सफाये के लिए कुछ तो करना होगा। इतनी बड़ी संख्या में जवानों को मारने वाले अपने हक के लिए नहीं अब अपने कब्जे की राजनीति के लिए और वर्चस्व के हलए लड़ रहे हैं। आतंक के सहारे अपनी बात को कबूल करवाने वालों के साथ कोई हमदर्दी नहीं, भले ही वे कितने भी सही अधिकारों के लिए लड़ रहे हों।



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देश के बच्चों को यदि वाकई शिक्षा देनी है तो सबसे पहले मिड डे मील जैसी प्रधानों की हित-साधक योजना को बन्द किया जाये। इस योजना से अध्यापकों का सारा समय केवल और केवल खाना बनवाने में लगता है। इससे तो अच्छा है कि बच्चों को किसी होटल में पढ़ने की व्यवस्था करवाई जाये। इससे कम से कम अध्यापक पढ़ाने पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित कर पायेंगे।


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आयकर के नाम पर देश के किसी भी व्यक्ति को पकड़ने वाले आयकर विभाग के पास क्या आई0पी0एल0 से सम्बन्धित लोगों के लिए कोई जाँच का प्रावधान नहीं है? करोड़ों की लागत से चलने वाले इस आयोजन में टीम के मालिकों के करोड़ों रुपये के दाँव पर भी कोई जाँच नहीं होती है जबकि आम आदमी यदि कोई मँहगी कार भी खरीदता है तो विभाग सवाल-जवाब करने को उतारू हो जाता है। बेचारा आय और व्यय का हिसाब देने में ही अपनी कार को भूल जाता है या बेच खाता है।


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आरक्षण के नाम पर राजनीति करते नेताओं के पास देश की युवा पीढ़ी के विकास के लिए कोई एजेंडा है भी या नहीं? करोड़ों रुपये सिर्फ इसी बात पर खर्च हो जाते हैं कि किस कमेटी ने किसके लिए आरक्षण की और कितने प्रतिशत आरक्षण का सिफारिश की है। इसके बाद भी आरक्षण का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है जिनको इसकी आवश्यकता है। इससे अच्छा हो कि इस आरक्षण व्यवस्था को सही रूप से लागू किया जाये या फिर बन्द ही कर दिया जाये। इसके साथ ही उभरता है तुष्टिकरण का, वोट-बैंक का सवाल तो......यह ऐसे ही चलेगा।





(सभी चित्र गूगल छवियों से साभार)