यह हमारी चार सौवीं पोस्ट है, आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन हमें लगातार मिलता रहा साथ ही कुछ आलोचना भी मिलती रही। किसी के भी विकास में उसके आलोचकों का बहुत बड़ा योगदान रहता है बशर्ते आलोचना स्वस्थ्य और सकरात्मक रूप में हो।
आज की पोस्ट के बारे में सुबह से विचार कर रहे थे कि क्या लिखा जाये और किस विषय पर लिखा जाये? गद्य में लिखा जाये या पद्य में? कभी विचार आता कि भाषा में आती जा रही अश्लीलता के बारे में लिखा जाये फिर लगता कि अश्लीलता तो अब हमारे चरित्र में ही समाहित हो गई है। इस कारण इस पर किसी को कुछ भी समझाना स्वयं को चरित्रहीन सिद्ध करने जैसा है।
बहरहाल बहुत सोच विचार कर दो निर्णय लिए। एक तो आज की पोस्ट से सम्बन्धित, यह पोस्ट समर्पित कर रहे हैं एक ऐसे युवा कवि हेमन्त को, जिसका जन्म 23 मई 1977 को उज्जैन में देश की प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती संतोष श्रीवास्तव के घर हुआ। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में शिक्षा प्राप्त करने वाले हेमन्त ने 15 वर्ष की आयु से ही कविता लेखन करना शुरू कर दिया था। हिन्दी, उर्दू, मराठी, अंग्रेजी भाषा में सिद्धहस्त हेमन्त जैसा प्रतिभाशाली युवा 05 अगस्त 2000 की शाम को एक दुर्घटना का शिकार होकर हम सबसे बहुत-बहुत दूर चला गया। जाने के बाद भी वह अपने परिपक्व विचारों को कविताओं के रूप में छोड़ गया था। उनके कविता संग्रह ‘‘मेरे रहते’’ की एक कविता ‘मेरे रहते’ हमारी 400 वीं पोस्ट के रूप में आपके सामने प्रस्तुत है। आशा है आपको पसंद आयेगी---
ऐसा कुछ भी नहीं होगा मेरे बाद,
जो न था मेरे रहते।
वही भोर के धुँधलके में लगेंगी डुबकियाँ,
दोहराये जायेंगे मंत्र, श्लोक।
वही ऐन सिर पर धूप के चढ़ जाने पर
बुझे चेहरे और चमकते कपड़ों में
भागेंगे लोग दफ्तरों की ओर।
वहीं द्वार पर चौक पूरे जायेंगे
और छौंकी जाएगी सौंधी दाल।
वही काम से निपटकर,
बतियाएँगीं पड़ोसिनें सुख-दुख की बातें।
वहीं दफ्तर से लौटती थकीं महिलाएँ
जूझेंगीं आठ आने के लिए सब्जीवाले से
वही शादी-ब्याह, पढ़ाई-कर्ज और
बीमारी के तनाव से जूझेगा आम आदमी
वही घोटालों की भेंट चढ़ेगी राजनीति
सट्टा, शेयर, दलाली, हेरा-फेरी में डूबा रहेगा
खास आदमी।
गुनगुनाएँगीं किशोरियाँ प्रेम के गीत
वेलेंटाइन डे के खास मौके पर
गुलाबों के साथ प्रेम का प्रस्ताव लिये
ढूँढ़ेंगे किशोर मन का मीत।
सब कुछ वैसे ही होगा...जैसा अभी है
मेरे रहते।
हाँ तब ये अजूबा जरूर होगा
कि मेरी तस्वीर पर होगी चंदन की माला
और सामने अगरबत्ती
जो नहीं जली मेरे रहते!
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दूसरा निर्णय बार-बार हमारे अपनों की नसीहतों और सुझावों के बाद लिया जा रहा है। हालांकि यह निर्णय कुछ डरते-डरते लिया जा रहा है पर...................।
इस पोस्ट के साथ ही टिप्पणी की सुविधा फिर शुरू की जा रही है। निर्णय इसके साथ कि हम अभी भी टिप्पणी के आदान-प्रदान के खेल से बाहर रहे हैं और बाहर ही रहेंगे।
(चित्र गूगल छवियों से साभार)
कविता पूर्वाभास सी।
जवाब देंहटाएं@ सब कुछ वैसे ही होगा...जैसा अभी है
मेरे रहते।
हाँ तब ये अजूबा जरूर होगा
कि मेरी तस्वीर पर होगी चंदन की माला
और सामने अगरबत्ती
जो नहीं जली मेरे रहते!
करुणा, बस करुणा- भिगो गई।
बहुत बेहतरीन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं४०० वीं पोस्ट की बधाई..
हेमन्त को श्रृद्धांजलि!!
bahut dukhad hai.. chacha ji aapka aabhar Hemant ji ko yaad karne ke liye. sach kaha ye kavita ek poorvabhas si hai.
जवाब देंहटाएं400 वी पोस्ट की हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरे रहते……………………।ज़िन्दगी की सच्चाई दर्शाती बहुत ही मार्मिक कविता………………॥हेमन्त जी को भावभीनी श्रद्धंजलि।
ye ekdam sahi kiya, khush raho.....
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 20 अगस्त 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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