14 मार्च 2010

अंधाधुंध लालच में भागने का दुष्परिणाम है ये सब

बाबा और महिलाएँ, मौलाना और महिलाएँ, धर्मगुरु और स्त्रियाँ.... ये किसी तरह का समीकरण नहीं वरन् वर्तमान में समाज में व्याप्त स्थिति है। पिछले कुछ दिनों से किसी ढोंगी बाबा और उसके चंगुल में फँसी अनेक लड़कियों की कहानी, किसी धर्मगुरु द्वारा महिलाओं को बच्चे ही पैदा करने की सलाह देना....ये सब मीडिया में बड़ी ही तेजी से आ रहा है।



इस तरह की स्थितियाँ आज ही समाज में सामने नहीं आई हैं बल्कि देखा जाये तो इस तरह की हरकतें हमेशा से किसी न किसी रूप में हमारे आसपास घटित होती रही हैं। किसी लड़की को नौकरी का झाँसा देकर भगाने की घटना, किसी युवती को शादी का लालच देकर उसका शारीरिक शोषण करने की घटना, किसी को रोजगार का लालच दिखाकर उसके साथ छल करना आदि-आदि हमें आये दिन देखने को मिलता रहा है।

इस तरह की घटनाओं के घटित हो जाने के बाद हम और हमारा समाज उसका पोस्टमार्टम करने में लग जाता है। इन घटनाओं में अपराध करने वाले को ही सबसे अधिक जिम्मेवार ठहराया जाता है। क्या वाकई सिर्फ और सिर्फ अपराध करने वाला अथवा इस तरह की हरकतों को अंजाम देने वाला ही जिम्मेवार होता है?

हमें यह देखना होगा कि घटना किसके साथ घटित हो रही है। यदि कोई नादान है अथवा समझदार नहीं है तब तो इस तरह की घटनाओं के लिए अपराध करने वाले को अपराधी करार दिया जाये किन्तु यदि जिसके साथ इस तरह की घटनाएँ घटित हों और वो पूर्ण रूप से समझदार हो तब?

इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि आये दिन हम देखते हैं कि किसी न किसी बाबा के द्वारा महिलाओं को ठग कर उनका शारीरिक शोषण कर लिया जाता है। जैसे वर्तमान में एक ढोंगी बाबा के सेक्स रैकेट में 2000 लड़कियों के शामिल होने की आशंका जताई गई है। आप स्वयं आकलन करिए कि क्या किसी भी बाबा के लिए इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं को बरगलाया जा सकता है? किसी प्रकार की जोरजबदस्ती से सेक्स के लिए मजबूर किया जा सकता है? हाँ, इस तरह की लड़कियों की संख्या कुछ दहाई के अंकों में हो तो आसानी से समझ में आता है किन्तु 2000 की संख्या....!!!

इसी तरह नौकरी का लालच अथवा शादी का झाँसा देना क्या वाकई बहुत ही आसान है? यदि किसी के द्वारा इस प्रकार के प्रलोभन दिये जाने की घटनाओं से कोई लड़का अथवा लड़की फँस रहे हैं तो सबसे अधिक अपराधी वही लड़के-लड़कियाँ हैं। ऐसी शिक्षा से क्या फायदा जो किसी के झाँसे में फँसने को मजबूर कर दे?

समझना होगा कि समाज का ढाँचा कैसा है और हम कैसा बनाना चाहते हैं? समाज में ढोंग के द्वारा पढ़े-लिखे लोगों को अपना शिकार बना लेने की घटनाएँ साबित करती हैं कि हम साक्षर भले ही हो गये हों किन्तु अभी भी शिक्षित नहीं हो सके हैं।

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चित्र गूगल छवियों से साभार

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