आज 12 जनवरी है, युवा हृदय सम्राट स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती। महाविद्यालयों, स्कूलों को मौका मिलता है किसी भी जयन्ती पर अवकाश घोषित करने का। आज भी हुआ होगा, जहाँ नहीं हुआ वहाँ दबा-छिपा आक्रोश जैसा है।
जब भी देश के महान पुरुषों की चर्चा होती है तो हम उनके आदर्श, सिद्धान्त को अपनाने की बात करते हैं। इसके बाद भी हमारा मानना है कि
विवेकानन्द निर्विवाद रूप से सभी युवाओं के आदर्श हैं। इसी के साथ जब भी युवाओं की बात होती है तो मन में एक प्रश्न बहुत ही तीव्रता से उठता है कि क्या देश में युवा हैं?
यह प्रश्न सभी को परेशान और हैरान कर सकता है किन्तु सत्यता यही है कि आज देश में युवाओं की कमी है। आप हमारे कहे पर नहीं स्वयं अपने आसपास की स्थितियों का अवलोकन करिए और फिर स्वयं निर्णय कीजिए कि क्या वाकई हमारे देश में युवा शक्ति शेष है?
किसी भी आन्दोलन की बात हो तो हिंसा करने में सबसे आगे जो चल रहा हो वही युवा है।
शिक्षा केन्द्रों में नेतागीरी के लक्षण सबसे ज्यादा जिसके अन्दर दिख रहे हों वही युवा है।
बेरोजगारी से जूझते हुए आतंक के रास्ते पर जो चला जाये वही युवा है।
देश की समस्याओं से रूबरू हुए बिना सिर्फ और सिर्फ भौतिक सुखों की तलाश में जो भटकते दिखे वही युवा है।
कहने का आशय यह नहीं कि देश में युवा कुछ कर नहीं रहा है पर आज के युववाओं से जो अपेक्षा है वह उस पर खरा नहीं उतर रहा है।
क्रिकेट खिलाड़ियों के ताबड़तोड़ रनों को बटोरने के साथ चिल्ला-चिल्ला कर पूरे आसमान को जो सिर पर उठा लेता हो; कोल्ड ड्रिंक के एक घूँट के लिए जो पर्वतों से भी कूद मार सकता है; किसी फिल्मी हस्ती की एक झलक के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है वह परिवार की जिम्मेवारी को उठाने से डरता है।
आज हालात यह हैं कि युवा वर्ग स्वयं को असहायता की स्थिति में खड़ा पा रहा है। उसके सामने आदर्श पात्रों की कमी है। समस्याओं से दो-चार होने की जगह वह उनसे पलायन करने की सोचता है। इसका उदाहरण हमें प्रत्येक कदम पर अपने आसपास ही मिल जाता है।
बहरहाल युवाओं को बचाने की जिम्मेवारी हमारी ही है। युवाओं को उनके कर्तव्यों को बताना हमारी जिम्मेवारी है। युवाओं के लिए आदर्शों की खोज करना और वास्तविक आदर्शों को सामने लाना भी हमारी जिम्मेवारी है। यह विद्रूप ही है कि अब स्कूली पाठ्यक्रमों में कला की पुस्तकों में बच्चे महापुरुषों के नहीं वरन् फिल्मी सितारों और क्रिकेट खिलाड़ियों के चित्र देख कर कला की बारीकियाँ सीखेंगे। ऐसी हालत में जबकि हम अपने नौनिहालों को वास्तविक आदर्श पात्रों से दूर रखेंगे तो किस आधार पर अपेक्षा करें कि वे स्वामी विवेकानन्द को अथवा किसी अन्य राष्ट्रीय चरित्र को पहचानेगे?
यह भी सम्भव है कि आपका बच्चा आज स्कूल से बापस आने पर पूछे भी कि ये स्वामी विवेकानन्द कौन हैं?
जब भी देश के महान पुरुषों की चर्चा होती है तो हम उनके आदर्श, सिद्धान्त को अपनाने की बात करते हैं। इसके बाद भी हमारा मानना है कि
विवेकानन्द निर्विवाद रूप से सभी युवाओं के आदर्श हैं। इसी के साथ जब भी युवाओं की बात होती है तो मन में एक प्रश्न बहुत ही तीव्रता से उठता है कि क्या देश में युवा हैं?
यह प्रश्न सभी को परेशान और हैरान कर सकता है किन्तु सत्यता यही है कि आज देश में युवाओं की कमी है। आप हमारे कहे पर नहीं स्वयं अपने आसपास की स्थितियों का अवलोकन करिए और फिर स्वयं निर्णय कीजिए कि क्या वाकई हमारे देश में युवा शक्ति शेष है?
किसी भी आन्दोलन की बात हो तो हिंसा करने में सबसे आगे जो चल रहा हो वही युवा है।
शिक्षा केन्द्रों में नेतागीरी के लक्षण सबसे ज्यादा जिसके अन्दर दिख रहे हों वही युवा है।
बेरोजगारी से जूझते हुए आतंक के रास्ते पर जो चला जाये वही युवा है।
देश की समस्याओं से रूबरू हुए बिना सिर्फ और सिर्फ भौतिक सुखों की तलाश में जो भटकते दिखे वही युवा है।
कहने का आशय यह नहीं कि देश में युवा कुछ कर नहीं रहा है पर आज के युववाओं से जो अपेक्षा है वह उस पर खरा नहीं उतर रहा है।
क्रिकेट खिलाड़ियों के ताबड़तोड़ रनों को बटोरने के साथ चिल्ला-चिल्ला कर पूरे आसमान को जो सिर पर उठा लेता हो; कोल्ड ड्रिंक के एक घूँट के लिए जो पर्वतों से भी कूद मार सकता है; किसी फिल्मी हस्ती की एक झलक के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है वह परिवार की जिम्मेवारी को उठाने से डरता है।
आज हालात यह हैं कि युवा वर्ग स्वयं को असहायता की स्थिति में खड़ा पा रहा है। उसके सामने आदर्श पात्रों की कमी है। समस्याओं से दो-चार होने की जगह वह उनसे पलायन करने की सोचता है। इसका उदाहरण हमें प्रत्येक कदम पर अपने आसपास ही मिल जाता है।
बहरहाल युवाओं को बचाने की जिम्मेवारी हमारी ही है। युवाओं को उनके कर्तव्यों को बताना हमारी जिम्मेवारी है। युवाओं के लिए आदर्शों की खोज करना और वास्तविक आदर्शों को सामने लाना भी हमारी जिम्मेवारी है। यह विद्रूप ही है कि अब स्कूली पाठ्यक्रमों में कला की पुस्तकों में बच्चे महापुरुषों के नहीं वरन् फिल्मी सितारों और क्रिकेट खिलाड़ियों के चित्र देख कर कला की बारीकियाँ सीखेंगे। ऐसी हालत में जबकि हम अपने नौनिहालों को वास्तविक आदर्श पात्रों से दूर रखेंगे तो किस आधार पर अपेक्षा करें कि वे स्वामी विवेकानन्द को अथवा किसी अन्य राष्ट्रीय चरित्र को पहचानेगे?
यह भी सम्भव है कि आपका बच्चा आज स्कूल से बापस आने पर पूछे भी कि ये स्वामी विवेकानन्द कौन हैं?
आपकी चिंता शत प्रतिशत सही है |स्वामीजी को याद भी किया जाता है तो रस्म बनकर या फिर कुछ राजनैतिक लोग अपनी पार्टी के लिए उनके उद्गारों का केवल उपयोग करते है |
जवाब देंहटाएंबहुत सी जगह उनके द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों का अक्षरश पालन भी किया जाता है किन्तु हमारे संचार माध्यमो को कहाँ इतनी फुर्सत है कि वो व्यक्ति के मानसिक विकास कि खबरे दे उन्हें तो अपने जो युवा वर्णित किये है उनसे ही वास्ता है |
आज ही मैंने भी स्वामीजी के विषय में पोस्ट डाली है कृपया देखे |