23 दिसंबर 2009

पढ़ के तो देखो - गद्य और पद्य का अद्भुत साम्य है नयी कविता


समय की स्थिति भी बड़ी अजब है, कभी एकदम पास, बहुत ही आराम से गुजरता लगता है और कभी उसकी रफ्तार को पकड़ पाना सम्भव नहीं होता। कैसे दिन शुरू होकर कब रात के आगोश में आ जाता है इसका अंदाज ही नहीं हो पाता है।
सुबह उठे तो तरोताजा और मन में बहुत कुछ कर गुजरने का जज्बा। दिन का गुजरना शुरू और गुजरना शुरू मन के ख्यालों का। शाम तक आते-आते ख्यालों में थकावट और मन भी चाहने लगता है आराम का पल। इसके साथ ही आने लगता है विचार आने वाली सुबह का और फिर नये सिरे से कुछ नया करने का विचार।
अब देखिये लगता है कि अभी दो-एक दिन पहले ही मनाया था नये वर्ष का उत्सव और अब फिर मनाने को तैयार खड़े हैं। कितनी जल्दी ये समय अपनी सीमा रेखा को पा लेता है पता ही नहीं चल पाता। हमारा सोचा हुआ, मन में विचार किया हुआ सभी कुछ वैसा का वैसा दिखाई पड़ता है।
उत्साह है तो बहुत कुछ न कर पाने का मलाल भी है। सब कुछ भुला कर यह भी ख्याल है कि अब नये वर्ष में ऐसा नहीं होने देंगे। जो कुछ अधूरा रह गया है उसे जल्द से जल्द पूरा करेंगे। फिर वही सपने, फिर वही वादे और फिर वहीं क्रियाकलाप। फिर कुछ काम होंगे पूरे और कुछ रह जायेंगे अधूरे, फिर आयेगा एक और नया वर्ष और देगा हमें कुछ नया करने का संदेश।
हर बार हम कुछ नया पाकर भुला देंगे पुराने को और चल पड़ेंगे फिर कुछ नया पाने को। यही जीवन का क्रम है, यही जीवन का सत्य है। यदि यही सत्य है, यही क्रम है तो फिर विमर्श कैसा, फिर संशय कैसा?
चलिए याद रखते हुए बीते पल हम तैयारी करें आने वाले पल को सँवारने की और मन में विश्वास पैदा करें सोचे हुए कामों को पूरा करने का, जो है अधूरा उसे पूर्ण करने का।

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अब यही सब पढ़िये नयी कविता के अंदाज में---
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समय की स्थिति भी
बड़ी अजब है,
कभी एकदम पास,
बहुत ही आराम से
गुजरता लगता है
और कभी
उसकी रफ्तार को पकड़ पाना
सम्भव नहीं होता।
कैसे दिन शुरू होकर
कब रात के आगोश में आ जाता है
इसका अंदाज ही नहीं हो पाता है।
सुबह उठे तो तरोताजा
और मन में
बहुत कुछ कर गुजरने का जज्बा।
दिन का गुजरना शुरू
और
गुजरना शुरू मन के ख्यालों का।
शाम तक आते-आते
ख्यालों में थकावट और
मन भी चाहने लगता है
आराम का पल।
इसके साथ ही
आने लगता है विचार
आने वाली सुबह का
और फिर
नये सिरे से
कुछ नया करने का विचार।
अब देखिये लगता है कि
अभी दो-एक दिन पहले ही
मनाया था
नये वर्ष का उत्सव
और अब
फिर मनाने को तैयार खड़े हैं।
कितनी जल्दी ये समय
अपनी सीमा रेखा को पा लेता है
पता ही नहीं चल पाता।
हमारा सोचा हुआ,
मन में विचार किया हुआ
सभी कुछ वैसा का वैसा दिखाई पड़ता है।
उत्साह है तो
बहुत कुछ न कर पाने का मलाल भी है।
सब कुछ भुला कर
यह भी ख्याल है कि
अब नये वर्ष में ऐसा नहीं होने देंगे।
जो कुछ अधूरा रह गया है उसे
जल्द से जल्द पूरा करेंगे।
फिर वही सपने,
फिर वही वादे
और फिर वही क्रियाकलाप।
फिर कुछ काम होंगे पूरे
और कुछ रह जायेंगे अधूरे,
फिर आयेगा एक और नया वर्ष
और देगा हमें
कुछ नया करने का संदेश।
हर बार हम कुछ नया पाकर
भुला देंगे पुराने को
और चल पड़ेंगे
फिर कुछ नया पाने को।
यही जीवन का क्रम है,
यही जीवन का सत्य है।
यदि यही सत्य है,
यही क्रम है
तो फिर विमर्श कैसा,
फिर संशय कैसा?
चलिए याद रखते हुए बीते पल
हम तैयारी करें
आने वाले पल को सँवारने की
और मन में विश्वास पैदा करें
सोचे हुए कामों को पूरा करने का,
जो है अधूरा उसे पूर्ण करने का।
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कहिए, नयी कविता कुछ इसी तरह ही तो लिखी जा रही है, है न? पसंद भी इसी तरह की कविता की जा रही है। आपको यह पसंद आई या नहीं?


8 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kah rahe ho bhiji, aajkal aisi hi kavita ki bahar hai. aap khud blog par hi dekh lo.

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  2. यदि यही सत्य है,
    यही क्रम है
    तो फिर विमर्श कैसा,
    फिर संशय कैसा?
    वाकई सत्य पर विमर्श कैसा.
    शीर्षक के अनुरूप निकला

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  3. पसंद तो ऐसी आई कि पहले समझे बिना दो बार पढ़ गये..कभी गद्य में तो कभी पद्य मे..फिर बात समझ में आई और मैं मुस्कराया. आप भी न!!


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    पसंद तो ऐसी आई
    कि
    पहले समझे बिना
    दो बार पढ़ गये..
    कभी गद्य में
    तो
    कभी पद्य मे..
    फिर बात समझ में आई
    और

    मैं मुस्कराया....

    आप भी न!!

    जवाब देंहटाएं
  4. lage raho munna bhai, kya kavita hai nahin-nahin kya gadya hai... ha...ha...ha

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  5. साहित्य से, समाज से कुछ इसी तरह की धारणा को और लेखन को सही करने की दृष्टि से विमर्श दृष्टि का आरम्भ किया है, आप भी सहयोग दें. विमर्श इसी बात पर हो सकता है की कविता क्या हो?
    अच्छा व्यंग्य है, आज के लेखन पर..............बधाई

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  6. फिर कुछ काम होंगे पूरे
    और कुछ रह जायेंगे अधूरे,
    फिर आयेगा एक और नया वर्ष
    और देगा हमें
    कुछ नया करने का संदेश।


    बहुत सही कहा.

    रामराम.

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