घटना उत्तर प्रदेश के महोबा की है। यह घटना 8 दिसम्बर 2009 के अमर उजाला में पढ़ने को मिली। समाचार था कि उन्नीस बेटियों के बाद बेटे की मुराद पूरी हुई। समझ नहीं आया कि ऐसे समाचार पर रोया जाये या कि खुश हुआ जाये?
रोना इस कारण से कि
आदमी एक बेटे की चाहत में बेटियों को पैदा करते-करते जनसंख्या में वृद्धि करता जाता है।
आदमी बेटियों को अभी भी बेटों से कम करके आँक रहा है।
एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियों का जन्म और एक स्त्री के शरीर पर एक प्रकार का अत्याचार।
आदमी बेटियों को अभी भी बेटों से कम करके आँक रहा है।
एक बेटे के लिए उन्नीस बेटियों का जन्म और एक स्त्री के शरीर पर एक प्रकार का अत्याचार।
खुश होने का मन इस कारण कर रहा था कि
कुछ स्त्रोतों से ज्ञात हुआ कि उस व्यक्ति ने किसी भी बच्चे के गर्भ में आने पर उल्ट्रासाउंड करवा कर लिंग का पता नहीं किया।
किसी भी कन्या भ्रूण की हत्या करने का प्रयास नहीं किया।
किसी भी बेटी को मारने का प्रयास नहीं किया।
किसी भी कन्या भ्रूण की हत्या करने का प्रयास नहीं किया।
किसी भी बेटी को मारने का प्रयास नहीं किया।
समाचार के अनुसार पनवाड़ी के ग्राम स्योड़ी के चतुर्भुज अहिरवार का विवाह 1985 में लालकुँवर के साथ हुआ था। शादी के दो वर्ष बाद से लेकर अभी तक उसने कुल 20 बच्चों को जन्म दिया। पहली उन्नीस बेटियों में से आठ की मृत्यु हो चुकी है।
बच्चियों के भरण-पोषण के लिए चतुर्भुज ने गाँव छोड़ कर दिल्ली में ढेरा जमा लिया था और वहीं से प्रतिमाह बच्चियों की परवरिश के लिए पैसे भेजता रहता था।
बड़ी बेटी का किसी तरह विवाह करने के बाद भी बेटे की चाहत कम नहीं हुई। परिणामतः बीसवें बच्चे के रूप में उन्हें बेटा प्राप्त हुआ।
सामुदायिक केन्द्र में बेटे के जन्म देने के बाद लालकुँवर को जननी सुरक्षा योजना के अन्तर्गत 1400 रुपये का चेक भी दिया गया।
इस पोस्ट का उद्देश्य समाचार देना नहीं वरन् यह है कि ऐसी घटनाओं पर क्या किया जाये?
खुश हुआ जाये कि किसी भी रूप में इन दम्पत्ति ने कन्याओं की हत्या नहीं की या फिर दुःखी हुआ जाये कि विकास की राह पर चलने के बाद भी बेटे की चाहत बिलकुल कम नहीं हुई है?
खुश हुआ जाये कि किसी भी रूप में इन दम्पत्ति ने कन्याओं की हत्या नहीं की या फिर दुःखी हुआ जाये कि विकास की राह पर चलने के बाद भी बेटे की चाहत बिलकुल कम नहीं हुई है?
कुछ भी हो यह तो स्पष्ट है कि उन्नीस में से शेष बची ग्यारह बेटियों के सामने अभाव तो रहता ही होगा और अपनी शारीरिक विकास की राह में अवरोध तो पाती ही होंगी। शिक्षा, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा आदि का संकट तो रहता ही होगा। इन सबसे बचने का उपाय क्या होगा? यही दुःख होने की बात है।
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चित्र साभार गूगल छवियों से
bete ki chah galat nahi hai, isne kisi ki hatya to nahi ki.
जवाब देंहटाएंek bahut hi jwalant prashn uthaya hai aapne.
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों को देखकर रोना नहीं चाहिए, उन्हें सरे आम पीटा जाना चाहिए।
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छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?
यह अमानवीय तो है ही। पर ऐसे ही लोगो के कारण स्त्री-पुरुष अनुपात कुछ ठीक बना हुआ हैं।
जवाब देंहटाएंइन्हें तो अवार्ड मिलना चाहिए
जवाब देंहटाएंyahaan tak to thik hai jo ho gaya so ho gaya daro us din se jab us bhale dampatti ke man me ye aa jaayegi ki ab to ladke paida honaa shuru ho gaye hain ....kyon na 20-22 bete bhi kar hi daalen------------
जवाब देंहटाएंअफ़सोस जनक ही है यह बात तो।
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