एक दो दिन पहले एक पुरस्कार वितरण समारोह में जाने का अवसर मिला। वहाँ शहर के प्रबुद्ध वर्ग के लोग जमा थे, कारण था कि कार्यक्रम एक समाचार-पत्र के द्वारा आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में ऐसे लोगों का भी आना हुआ था जो सिवाय राजनैतिक कार्यक्रमों के कहीं अन्यत्र अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाते हैं।
वहीं बातचीत में चर्चा होने लगी समाज सेवा की, अपनी सोच की, कार्यप्रणाली की। हम दो-चार लोग जो चर्चा कर रहे थे किसी का सोचना था कि कार्य करना चाहिए चाहे उसका परिणाम निकले या नहीं। हमारा सोचना ये है कि काम करना चाहिए और उसको परिणाम तक पहुँचा कर भी आना चाहिए।
शहर के दो-तीन उदाहरण ऐसे दिये जा सकते हैं कि लगने लगा है कि अब व्यक्ति समाजसेवा भी कर रहा है तो सिर्फ अपने लिए।
शहर की एक सामाजिक संस्था के प्रमुख के पिता की खुलेआम हत्या कर दी जाती है और उसके बाद बारह घंटे के अन्दर उसी गाँव में दो अन्य लोगों को भी मौत की नींद सुला दिया जाता है लेकिन कहीं से भी कोई हलचल नहीं। सब ऐसे चलता रहा जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।
यह तो चलिए ऐसा मामला है जो पुलिस और कानून जैसी बातों के साथ जुड़ जाता है। इसके अलावा भी बहुत से मुद्दे ऐसे हैं जिन पर अब कोई कान नहीं देता है।
शहर की विद्युत व्यवस्था का आलम ये है कि पहले दोपहर में तीन बजे से रात को आठ बजे तब की कटौती होती थी, अब दोपहर दो बजे से ऐसा होने लगा। इसके बाद भी बिजली रात को सुचारू रूप से मिले इसकी कोई गारंटी नहीं। पर जनता जनार्दन में कोई हलचल नहीं।
जो अमीर हैं, सक्षम हैं वे जेनरेटर से काम चला रहे हैं; जो थोड़े से सक्षम हैं वे किसी न किसी जेनरेटर वाले से बिजली किराये पर ले रहे हैं; जो इतने भी सक्षम नहीं हैं वे इन्वर्टर से काम चला रहे हैं और जो किसी प्रकार से सक्षम नहीं हैं वे बस सरकार को कोस रहे हैं।
जनप्रतिनिधियों का हाल ये है कि बड़ी लग्जरी कारों के काफिलों के बिना उनको नींद नहीं आती।
कुल मिला कर कहने का आशय यह है कि कमोबेश यही स्थिति सभी जगहों पर है पर कोई सुगबुगाहट होते नहीं दिखती। दिखता है तो बस इस तरह के कार्यक्रमों में भाषणों का होना। उदाहरण दिये जायेंगे बीते काल के जब कि ईमानदारी प्रतीक होती थी मानवता की।
अब आजकल ऐसे प्रतीकों, उदाहरणों का क्या काम जब कि आदमी भी उस प्रकृति का नहीं रह गया है? रिश्तों में ठंडक आ गई है और आदमी के काम करने, सोचने के नजरिये में भयानक बदलाव। यही बदलाव क्या क्रांति लायेगा?
25 सितंबर 2009
आदमी मे अब हलचल क्यों नहीं दिखती?
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ये बदलाव चिंतनीय है..सतर्कता की महती आवश्यक्ता है.
जवाब देंहटाएंआप ने केवल एक पक्ष देखा है। दूसरा पक्ष यह भी है कि जनता के बीच लाखों लोग परिवर्तन की इच्छा से काम कर रहे हैं। जो लोग खुद व्यवस्था से जुड़े हैं या उस से किसी तरह अपना काम निकालना चाहते हैं, उन्हें परिवर्तन से क्या लेना देना। परिवर्तन जो लाना चाहते हैं वे लोग तो जनता के बीच नजर आएँगे। इस तरह के समारोहों में नहीं।
जवाब देंहटाएंbadlaav to aayega,or ise layenge hum,tum or sabhi.
जवाब देंहटाएंkisi lash ko sunte chalte bolte na suna hoga aapne
जवाब देंहटाएंyakin na ho aapko to bhartiy aavaam ko dekhiye.