25 अगस्त 2009

बेटी जन्मी तो जश्न, बेटा जन्मा तो चूल्हा ठंडा



हो सकता है कि चित्र में दिया गया समाचार स्पष्ट रूप से पढ़ने में न आ रहा हो किन्तु उसका शीर्षक तो स्पष्ट है। हो सकता है कि बहुतों के लिए यह आश्चर्य का भी विषय हो किन्तु यह सत्य है। होना भी चाहिए क्योंकि....कारण सभी को स्पष्ट हैं।
यह पोस्ट बस यह बताने के लिए आज के इस दौर में जहाँ एक पुत्र के लिए कई कई बेटियों की बलि गर्भ में या फिर जिन्दा में दे दी जाती हो वहाँ इस तरह की बिरादरी भी है जो बेटी के जन्म पर उत्सव मनाते हैं और पुत्र के होने पर समूची बस्ती में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
खास बात यह भी है कि लड़की का हाथ माँगने के लिए लड़के वाले अच्छी खासी रकम ही नहीं देते वरन बिरादरी के खानपान का भी खर्चा उठाते हैं।
महिलायें घर का काम करने के साथ साथ परिवार के भरण पोषण के लिए धन का इंतजाम करना होता है। यह समुदाय भीख माँग कर अपना गुजारा करता है। इस समुदाय के पुरूष बच्चों को, मवेशियों को सँभलने का काम करते हैं।
फैजाबाद जनपद में इस समुदाय के लोगों की संख्या चार हजार के आसपास है। अनुसूचित जाति समुदाय के ये लोग बेटी को लक्ष्मी मान कर उसके जन्म पर प्रसन्न होते हैं पर सरकारी योजनाओं को इन पर प्रसन्न होने की फुर्सत नहीं। ये लोग अभी भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
बहरहाल इस समुदाय के लोग पुत्री के जन्म पर खुशियाँ मना कर आज के तथाकथित आधुनिक समाज के मुँह पर एक तमाचा ही जड़ते हैं। क्या हमारे समाज के पुत्र मोह में फँसे लोग इस ओर ध्यान देंगे?
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विशेष --- यह समाचार अमर उजाला दिनांक 25 अगस्त 2009 के अंक में प्रकाशित किया गया है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ye samachar to aapke liye hi bana hai. aapke abhiyan ke liye tonic ka kaam karega.

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  2. भाई ये.............
    समाचार तो सुखद है
    परन्तु स्थिति दुखद है कि अब भी कन्या का जन्म
    आम घरों में जश्न मनाने का कारण नहीं बन रहा.........

    सब जानते हैं कि सृष्टि को जितनी ज़रूरत पुरूष की है
    उतनी ही नारी की भी है
    फ़िर ये अन्याय पूर्ण और मूर्खतापूर्ण भेद-भाव क्यों ?
    कुछ समझ नहीं आता.........

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