10 जुलाई 2009

जमाने में और भी ग़म हैं समलैंगिकता के सिवाय

एक निर्णय, समलैंगिकता पर और देश भर में बहस का माहौल। इसके साथ एक और तस्वीर, वह ये कि आज बारिश में भीगते एक बूढ़े को देखा। काँपता बदन, किसी तरह से एक फटे अंगोछे से ढाँकने का असफल प्रयास कर रहा था।
मंदिरों और मस्जिदों के सामने हाथ फैलाये छोटे-छोटे मासूम बच्चों को देखा। एक-एक रोटी के लिए, ये बच्चे वाकई जरूरतमंद थे, वे नहीं जो किसी मार के डर से भीख माँग रहे हों।
आज समाचार देखा कि अस्पताल में अभी भी डायरिया से बच्चे दम तोड़ रहे हैं। डाक्टरों के पास समय नहीं, दवाइयों का टोटा है।
आपने भी सुनी होंगी कुछ इसी तरह की खबरें।
कहीं किसी के लुटने की, कहीं किसी के साथ बलात्कार की, कहीं किसी दहेज हत्या की, कहीं किसी आत्महत्या की।
कहीं कोई जूझ रहा होगा रोटी, पानी, घर, बिजली की समस्या से। कोई जूझ रहा होगा अपने रोजगार के लिए। कोई लड़ रहा है भ्रष्टाचार से। कोई असाध्य बीमारी से जूझ रहा है। किसी के सामने भूख की समस्या है।
देखा जाये तो ये ऐसी समस्याएँ हैं जिनका समाधान चुनावी घोषणा-पत्रों में होता है। अब हम इन समस्याओं से ऊपर उठकर दूसरे प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में लगे हैं। उनमें से एक समस्या समलैंगिकता को कानूनी समर्थन दे देने की है।
चलिए समस्या से निपटा जाये...जी हाँ अभी इसी समस्या से निपटा जाये क्योंकि बाकी समस्यायें तो आदमी के पैदा होने से मरने तक बनी ही रहतीं हैं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये आपकी चौथी पोस्ट है समलैंगिकता पर, अच्छा हुआ आपको और भी कुछ दिख गया लिखने के लिए. :-)

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  2. वो शाश्वत समस्यायें हैं जिनके लोग इम्यून हो गये हैं.

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  3. कलम चलाने के लिए,
    बहुत बढ़िया विषय चुना है, आपने।
    बधाई!

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  4. चलो अच्छा हुआ आप के सर से समलैंगिकता का भुत तो उतरा ........

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  5. बेकार का बवाल मचाया हुआ है। पहले जो अपराध था। लोग छुप कर करते थे। अब अदालत ने उसे विकृति या बीमारी माना है, जिन की चिकित्सा की जानी चाहिए। स्वामी बाबा रामदेव बेकार सुप्रीमकोर्ट जाने की कहते हैं। वे कहते हैं वे योग से इस विकृति/बीमारी को ठीक कर सकते हैं। उन के जिम्मे तो बहुत बड़ा काम आ गया है। उन्हें यह करना चाहिए।

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