18 जून 2009

हाँ..हाँ..महिलाएं भी करतीं हैं बलात्कार

इस देश में जहाँ माना जाता है कि हर दो-चार मिनट पर एक महिला बलात्कार का शिकार होती है वहाँ कोई चर्चा नहीं होती और जब एक अभिनेता ऐसा करता है तो सारे देश में चर्चाओं के, बहस के दौर शुरू हो जाते हैं। (यहाँ बलात्कार का दीर्घ अर्थ न निकाल कर उसे शारीरिक सम्बन्ध ‘सेक्स’ के रूप में ही प्रयुक्त किया गया है)

शाब्दिक अर्थों में बलात्कार विस्तृत अर्थ रखता है और यदि इस दृष्टि से देखा जाये तो समाज में हर महिला और पुरुष बलात्कार का शिकार होते हैं। इस समय चर्चा का सन्दर्भ एक वाक्य पर आधारित है और वह है कि ‘बलात्कार केवल पुरुष ही नहीं करते महिलायें भी बलात्कार करतीं हैं।’

यह वाक्य कल मीडिया की सुर्खियों में बना रहा और इसे बलात्कार के दोषी अभिनेता शाइनी आहूजा की पत्नी ने उछाला था। इस पूरे प्रकरण को लेकर कल एनडीटीवी के न्यूज प्वाइंट में अच्छी खासी बहस देखने को मिल रही थी। इस कार्यक्रम के संचालक रवीश ने अनुपम आहूजा के उक्त वाक्य के सन्दर्भ में जानकारी चाही तो वहाँ चर्चा में शामिल तीन लोगों में से एक महोदय ने कानून की दो धाराओं (शायद धारा 356 और 357) का जिक्र करते हुए बताया कि कानून में इस तरह की किसी भी सम्भावना को स्वीकारा नहीं गया है कि एक महिला बलात्कार करे। उन सज्जन का कहना था कि एक महिला न तो किसी महिला से न ही किसी पुरुष से बलात्कार कर सकती है।

इस बात को रवीश ने भी बार-बार दोहराया और इसी बात पर जोर दिया कि कोई भी महिला बलात्कार नहीं कर सकती है। यहाँ हमारा स्पष्ट रूप से मानना है कि एक महिला भी बलात्कार कर सकती है और करती भी है। इस सम्बन्ध में हम पहले भी प्रिंट मीडिया के द्वारा अपनी बात को उदाहरण सहित रख चुके हैं। यहाँ बलात्कार का अर्थ जोर-जबरदस्ती या फिर किसी तरह की शाब्दिक छींटाकशी नहीं वरन् शारीरिक सम्बन्ध से है। हो सकता है कि जिस प्रकार के उदाहरण हमने देखे हैं आप में से बहुतों ने देखे होंगे परन्तु हम कभी-कभी बहुत सी बातों का खुलेआम जिक्र नहीं करना चाहते हैं।

उदाहरण तो कई एक हैं पर बात शुरू करना चाहेंगे उन दिनों से जब हम ग्वालियर से स्नातक की शिक्षा (वर्ष 1990-91) ग्रहण कर रहे थे। ग्वालियर के मेडीकल कालेज के गल्र्स हास्टल के पास से हफ्ते दस दिनों में किसी ताँगे वाले के, किसी मिस्त्री के, किसी अन्य छोटे से कारीगर या फल आदि वाले के अर्द्ध-बेहोशी में, पूर्ण मूच्र्छावस्था में पाये जाने के समाचार मिलते रहते थे। हम लोग इन समाचारों का बड़े ही उन्मुक्त अंदाज में अपना अर्थ निकाला करते थे। हम लोगों का सीधे-सीधे किसी ताँगे वाले या मिस्त्री से कोई सम्पर्क नहीं था इस कारण हम मित्र मंडली में बहुत से लोग इन समाचारों पर कान नहीं दिया करते थे। हालांकि कभी-कभी अपने हास्टल के पास के मिस्त्रियों या अन्य छोटे दुकान वालों से इन समाचारों की चर्चा करते तो वे भी गल्र्स हास्टल के आसपास भी न जाने की बात करते, कान पकड़ते दिखते।

स्नातक के दूसरे वर्ष के अन्त में हमारा पाला इसी तरह की दुर्घटना के शिकार अपने कालेज के एक चपरासी के बेटे से पड़ गया, जो ताँगा चलाता था। उसने जो कहानी बयान की उसे सुन कर लगा कि महिलायें भी एक प्रकार का गैंग रेप करतीं हैं। हास्टल में रहने वालीं लड़कियाँ किसी न किसी बहाने से कभी ताँगे वाले को, कभी किसी मैकेनिक को कभी आटो वाले आदि को हास्टल के अन्दर ले जातीं और फिर वह कितनी-कितनी लड़कियों की शारीरिक भूख मिटाकर स्वयं को बेहोशी में पहुँचा कर बाहर आता।

पहले लगा कि कोई लड़की कैसे ऐसा कर सकती है? क्या उसे अपनी इज्जत की, अपने परिवार की मर्यादा की चिन्ता नहीं? क्या इन लड़कियों को पकड़े जाने का डर नहीं?
ये सवाल सवाल ही बने रहे किन्तु समाज में इस तरह की घटनाओं में और भी बढ़ोत्तरी होती रही। फिर तो आये दिन समाचार सुनने को मिलने लगे कि फलां अमीर औरत अपने पति से संतुष्ट नहीं, वह किशोरों को अपना शिकार बना रही है। इस तरह के समाचार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुनाई पड़ने लगे हैं।

देखा जाये तो शरीर की अपनी एक माँग है और इसी कारण समाज में विवाह जैसी संस्था का निर्माण हुआ था। अब लगता है कि जैसे सेक्स की चाह सिर्फ आदमी को ही रहती है। औरत तो बिना शारीरिक माँग के अपना जीवन निर्वाह करती है।

यह एक सार्वभौम सत्य की तरह से है कि यदि औरत चाह ले तो उसकी मर्जी के बिना कोई भी उसके साथ सेक्स नहीं कर सकता है। औरत यदि चाह ले तो किसी को भी सेक्स के लिए आमंत्रित कर सकती है। कुछ अन्तर्राष्ट्रीय हस्तियों के अपने ड्राइवर, रसोइयों, गार्डों से शारीरिक सम्बन्ध इसी बात का परिचायक हैं जो उनकी मुत्यु के बाद ही सामने आ रहे हैं। इसके ठीक उलट एक क्लिंटन कांड हुआ था जो तुरन्त ही सामने आ गया।

इस विषय पर काफी लम्बा लेखन हो गया। इसे क्रमशः वाली स्थिति में ही रख छोड़ा जाये। अभी बहुत कुछ है कहने को, बस पूर्वाग्रह से ग्रसित न हुआ जाये।

16 टिप्‍पणियां:

  1. यह एक सार्वभौम सत्य की तरह से है कि यदि औरत चाह ले तो उसकी मर्जी के बिना कोई भी उसके साथ सेक्स नहीं कर सकता है।

    ये सही है कि शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा केवल पुरुषों में ही नहीं होती हैं, महिलाओं में भी होती है। ये भी सच है कि इस मामले में हर बार ग़लती पुरुषों की नहीं होती महिला भी किसी पुरुष को संबंधों के लिए उकसा सकती हैं। लेकिन, मुझे आपकी ऊपर लिखी इस लाइन से आपत्ति है। इस लाइन को लिखने से पहले आपको किसी ऐसी महिला के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए था जिसके साथ गैंग रेप हुआ हो या फिर उसका बांधकर पीट-पीटकर अधमरा करने के बाद रेप किया गया हो।

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  2. ismen koi doray nahin ki sharir purush ka ho ya naari ka,dono ko hi tripti ki ichha hoti hai aur ye ichha jab anek logon ki ek saath ho jaati hai tabhi aisee ghatnaayen hoti hain...
    ....vaise naari ka deh bal purush se zyada hota hai ..isliye aap ka kathan sahi hai ki uski marzi ke bina sambanbandh ho hi nahin sakta
    vaise zyada mujhe anubhav nahin hai kyunki abhi tak maine aisaa kuchh karke dekhga nahin hai ...han ye baat toh main zaroor kahoonga ki naari ki sahamati bina uska pati bhi kuchh nahin kar sakta,paraaye aadmi ki toh bisaat hi kya hai...

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  3. भाई ये कौन आहूजा है जिसे कई दिन से सभी पगलाए चैनल दिलीप कुमार के से कद का अभिनेता बनाए पड़े हैं....मैंने तो इसे पहले कभी नहीं देखा...

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  4. ये कैसी बहस है ?महिला की इच्छा के बिना कोई पुरुष बलात्कार नहीं कर सकता ?शायद आप ये कहना चाहते हैं की जितनी भी महिलाओं का रेप किया जाता है ,वो अपनी इच्छा से करवाती होंगी .आपकी माँ , बहिन ,पत्नी और भी जितनी महिलाओं से आप घनिष्ठ होंगे उनसे एक बार पूछ लीजिए ...क्या वे भी इस विषय पर आपसे सहमत हैं ? और ये खत्री जी क्या कह रहे हैं ?महिलाओं का देह बल पुरुषों से ज्यादा होता है ?किस दुनिया में रहते हैं ?कितनी महिअलों पर जोर आजमाइश करके देखा है आपने?
    हाँ इस बात से मैं सहमत हूँ की महिलाऐं भी बलात्कार करती हैं ...पर वो मुठ्ठी भर अभिजात्य वर्ग से सम्बंधित होती हैं ...जिनके लिए शराब ,सिगरेट ,पब आम बात होती है ...
    कुमारेन्द्र जी इस तरह की घटिया पोस्ट लिख तो ली आपने ... एक बलात्कार की शिकार महिला की पीडा आप तब समझेंगे जब आपके किसी अपने के साथ यह घटित होगी ...

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  5. यह एक सार्वभौम सत्य की तरह से है कि यदि औरत चाह ले तो उसकी मर्जी के बिना कोई भी उसके साथ सेक्स नहीं कर सकता है।
    "हायत ही आपत्तिजनक और गैरज़िम्मेदाराना वक्तव्य"

    कुमारेंद्र जी,
    आपने अपने पेशे के परिचय में लिखआ है कि आप सम्पादक हैं...तो आश्चर्यजनक है कि आप अपने लेखों का सम्पादन कर के उनहें प्रकाशित क्यों नहीं करते...यहां मैं आपको आपके पेशए के बारे में कुछ सिखा नहीं रहा हूं..पर आपका ध्यान आपके उस बेहद गैरज़िम्मेदाराना लेखन की ओर आकृष्ट करा रहा हूं जो आपने इस लेख में किया....हो सकता है और होता भी होगा कि महिलाएं बलात्कार करती हों पर ये कहना कि महिला की इच्छा के बिना कोई उससे सेक्स नहीं कर सकता ....शर्मनाक और आप तो नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं....आश्चर्य है...तो बताएं कि किसी स्त्री या पुरुष के माथे पर कोई पिस्तौल रख के बलात्कार करे तो उसे क्या गोली खा लेनी चाहिए...और अपनी लाश को बलात्कार किए जाने के लिए छोड़ देना चाहिए...
    आपसे हिंदी के लोग बहुत ज़िम्मेदार लेकन की उम्मीद करते हैं न कि इस तरह की मध्ययुगीन बकवास के...क्या आप के घर में महिलाएं और लड़कियां नहीं हैं...आपक भी हो सकता है बेटी हो.....एक पिता ऐसी निकृष्ट बात कैसे कर सकता है...क्या संवेदनहीनता अब आप जैसे भद्र लोगों के भीतर भी बस गई है...या फिर ये उस सामंतवादी व्यवस्था के फॉसिल हैं जो हमारे पूर्वज हमारे अंतर्मन में छोड़ गए हैं....रूढ़ियों को तर्क की कसौटी पर कसें....और ऐसा कुछ न कहें जो किसी को भी प्रश्नचिन्ह के नीचे छोड़ दे....
    आपका
    मयंक सक्सेना...

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  6. कुमारेन्द्र जी...
    आपकी इस पोस्ट पर बहुत आश्चर्य हो रहा है.... इससे आपकी वैचारिक शून्यता सामने आ रही है. ये जरुरी है की मसले के हर पहलू को सामने लाया जाये लेकिन आप बेतुके तर्कों के जरिये आप बलात्कार जैसे घृणित और अक्षम्य आपराध की पैरवी करते नज़र आ रहे हैं. आपको अपने ग्वालियर का गर्ल्स हॉस्टल याद है लेकिन प्रियदर्शनी मट्टू, लता रानी, मनोरमा, उडीसा में ननों के साथ हुए बलात्कार के साथ साथ देश भर में रोजाना हो रहे हजारों रेप को तो आप भूल चुके हैं.. चलिए ये भी मान लिया की इन सब ने भी अपनी मर्जी से सम्बन्ध बनाये और मट्टू ने अपनी हत्या भी करवा ली.. लेकिन उन मासूम छोटी बच्चियों के बारे में आपकी क्या राय है जिनको न तो सेक्स के बारे में कुछ पता होता है और न ही अपने साथ हुए खौफनाक हादसे की समझ..
    भाई तारीफ करनी पड़ेगी आपकी सोच और आपकी लेखनी की..

    भुवन
    लूज़ शंटिंग

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. ऐसे सरे मर्दों को धिक्कार है जो ऐसी वाहियात बात का समर्थन करते हैं ......क्युकी उनकी बहु, बेटी ,बहिन सुरक्षित हैं अभी तक .....जिस दिन वे शिकार बनेंगी उस दिन ये बतला पाएँगे की बलात्कार किसकी मर्जी से हुआ था .........
    shastree jee se ye ummeed nahi thi...lekin kya karen ve sab jagah tippanee denee hotee hai unko...kahin bhi kuchh bhi likh

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  9. यह सच है कि न अरि, अर्थात् जिसका कोई शत्रु न हो।
    परन्तु, स्त्री तो अबला ही है।
    अपनी भूल स्वीकार करते हुए,
    बेनामी की बात का समर्थन करता हूँ।
    इसीलिए पहली टिप्पणी हटा दी है।
    सत्य तो सत्य ही है,
    उसे स्वीकार करने में ही भलाई है।

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  10. यहाँ अनचाहे यौन सम्बन्ध का भाव अभिप्रेत है -परिस्थितिओं बस महिला और पुरुष दोनों इसमें लिप्त हो सकते हैं ! मगर शारीरिक बलात्कार एक अप्राकृतिक व्यव्हार है जो पुरुषों में अधिक देखा गया है -हाँ हास्टल वाली घटना की पुनरावृत्तियाँ भी समाजमें आपवादिक रूप से दिख जाती हैं मगर यह अप्राक्रतिक है -नर बलत्कार तो कर ही सकता है ,.हाँ वह सहज यौन सम्बन्ध जोर जबरदस्ती नहीं बना सकता ! यह विशेषज्ञों का मानना है! और इसका कारण अनचाहे यौन सम्बन्ध से बचने की प्राकृतिक संरचनात्मक सुरक्षाएं हैं ! मगर इस समय का चर्चित मामला किसी और घटना को भी संकेत करता है -मर्जी से यौन सम्बन्ध स्थापित करना (परिस्थितियों वश ) और बाद में इच्छित की प्राप्ति न होने पर उसे बलात्कार घोषित करना -क्या यह वाकई बलात्कार है ? मामला कोर्ट में है !

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  11. महिलाओं की शारीरिक संरचना पुरुष के साथ बलात संसर्ग के लिये अनुपयुक्त है, और इस कारण अधिकतर देशों के कानून इस मामले में खामोश हैं.

    लेकिन महिलाओं द्वारा पुरुषों का बलात्कार यदाकदा होता रहता है. इस विषय पर "ओम्नी" नामक अमरीकी वैज्ञानिक पत्रिका ने एक विस्तृत लेख 1990 के आसापास छापा था.

    स्त्रियों द्वारा बलात्कार एक अपवाद है, लेकिन यह होता जरूर है अत: इसका वैज्ञानिक अध्ययन जरूरी है.

    (मैं ग्वालियर मेडीकल कालेज के पास ही रहता था. क्या आप ग्वालियरनिवासी हैं?)

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  12. ये "अनोनिमस" कौन ठेकेदार/ठेकेदारिन है जो बिना अतेपते और नामपते के के बहुत जिम्मेदार सामाजिक पुरुष/स्त्री बनने की कोशिश कर रहा/रही है!!

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  13. डाक्टर साहेब,

    बहुत छिछला लेखन है. बलात्कार जैसे मुद्दे पर इस तरह का सतही और छिछला लेखन किसी डाक्टर साहेब को शोभा नहीं देता. ये मनोहर कहानियां और सत्य कथा की कथाओं जैसा कुछ लिखकर आपने अपने जिस सवाल को सही ठहराने की कोशिश जिस ढंग से की है, वह बहुत दुखद है जी. अब पता तो नहीं है कि आप किस चीज के डाक्टर हैं लेकिन कोशिश करें कि ऐसे मुद्दे पर कुछ विचारणीय लिखें. मनोहर कहानियां जैसा कुछ न लिखें. मानता हूँ कि आपका ब्लॉग है और आप जो चाहें, लिख सकते हैं लेकिन इस तरह का लेखन भी मत कीजिये जिसका स्तर विषय की व्यापकता और गंभीरता से मेल न खाता हो. आखिर ब्लॉग आपका हो सकता है लेकिन मंच तो सार्वजनिक है. ऐसे में कुछ तो जिम्मेदारी बनती है आपकी भी.

    इस मुद्दे पर आप तीन पोस्ट लिख चुके हैं. एक बार, केवल एक बार एक पाठक के स्थान पर खुद को रखकर इन लेखों को पढें. ज़रूर पढें. आपको ज़रूर पता लगेगा कि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर आपके लेख कितने सतही हैं.

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  14. यदि यह मान भी लिया जाय कि महिलाए भी बलात्कार करती हैं तो इससे क्या सिद्ध करना चाहते हैं। यह कि पुरुषों द्वारा किये गये बलात्कार में कोई बड़ी बात नहीं हुई और हिसाब बराबर हो गया? ऐसी बेसिर-पैर की बातें बेमानी हैम। सनसनीखेज मसालेदार आइटम के अतिरिक्त इनका कोई दूसरा मूल्य नहीं है।

    दर‍असल बलात्कार अर्थात्‌ किसी व्यक्ति की स्वाभाविक इच्छा के विरुद्ध जाकर उसके शरीर से किसी प्रकार की यौन तृप्ति का प्रयास करना नितान्त अमानवीय, पाशविक, और निन्दनीय कृत्य है। ऐसा करने वालों के पक्ष में किसी भी तर्क के साथ खड़ा रहने वाला व्यक्ति भी बलात्कारी मानसिकता का परिचय देता है। उसकी बिना किसी लाग-लपेट के निन्दा की जानी चाहिए और सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए। किसी स्त्री या असहाय पुरुष या लैंगिक विकलांग के साथ भी यदि जोर जबरद्स्ती के साथ यौन सम्बन्ध बनाने का कुकृत्य किया जाता है या इसका प्रयास किया जाता है तो उसे निश्चित दण्ड दिया जाना चाहिए।

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  15. बलात्कार जैसे सवेंदनशील विषय पर ऐसी ध्रनित पोस्ट लिखी है जिस का विरोध किया जाना आवश्यक है.जिस गर्ल्स हॉस्टल के लड़कियों पर उन्होंने लांछन लगाये हैं उन के प्रबंधक को यह जानकारी होनी चाहिये कि इस तरह उन्हें बदनाम किया जा रहा है.
    आप के शीर्षक में कहीं १% सच्चाई है तो वह इस विषय से अलग है.आप के अनुसार आप हिसाब बराबर वाली बात कह रहे हैं.आप ने जो विषय वस्तु लिखी वह निंदनीय है-कि औरत की मर्ज़ी से बलात्कार होता है..आप कहते हैं की वह शारीरिक रूप से मर्दों से ज्यादा ताकतवर होती है..यह बिलकुल गलत है..शारीरिक रूप से पुरुष ही स्त्री से बलशाली होते हैं और इसी का लाभ उन्हें अक्सर मिल भी जाता है.
    आप जैसी मानसिकता वाले व्यक्ति शायद किसी की भावनाओं को कभी समझ नहीं सकते न ही ऐसे व्यक्तियों के पास कोई दिल जैसी चीज़ होती है.जो पुरुष ऐसे ख्याल रखते हैं वे कैसे कृत्य कर सकते हैं नारी के खिलाफ जिनके मन में ऐसी भावनाएं हैं वे उनके विरुद्ध क्या सोच सकते हैं..यह बताने की आवश्यकता नहीं है.
    आज कल नैतिकता का स्तर इतना गिर गया है की स्त्री नहीं मिली तप पुरुष पुरुष का ही बलात्कार कर रहा है.हाल ही में एक केस सुना ही होगा आप सब ने.
    संवेदनाएं मर रही हैं.
    भारतियों में सेक्सुअल frustration बढ़ रही है .. समय की जरुरत है कि पश्चिम की तरह यहाँ भी वेश्यालय लीगल कर दिए जाएँ ताकि जिन पुरुषों के अन्दर अतृप्त योन इच्छाएं हैं वे वहां जा कर तसलली पूरी करें .इस तरह बलात्कार कर के बहन ---बेटियों की ज़िन्दगी खराब न करें.
    बलात्कार की सज़ा और कठीण होनी चाहिये.
    कुमारेन्द्र को शायद कभी शारीरिक या मानसिक आघात नहीं लगा है..जिस से उन्हें किसी की आत्मा पर प्रहार का दर्द नहीं मालूम ..एक स्त्री के लिए उस के शील पर चोट उसकी आत्मा को घायल करती है.कभी जा कर मेंटल asylem में ऐसी स्त्रियों की study करें.बहा द्दुख हुआ की एक पढ़ा लिखा इंसान स्त्रियों के बारे ऐसे नीच विचार रखता है.

    इस विषय पर कविता वाचक्नवी जी के विचार जानना जरुर चाहेंगे.

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  16. सौ प्रतिशत सत्य
    कई सहेलियों की स्वीकारोक्ति

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