20 मई 2009

शान्ति चाहिए तो पत्नी की जी-हुजूरी करें

आज सुबह-सुबह समाचार-पत्र देखा तो चौंक से गये। एकबारगी लगा कि पहली अप्रैल तो निकले एक महीने से ऊपर हो चुका है फिर ऐसी खबर? सोचा शायद समाचार-पत्र वाले भी मजा लेने लग, चुनाव के परिणामों से हतप्रद होकर। .................पर सब गलत, समाचार एकदम सही था।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने साफ-साफ कहा है कि यदि सुखी जीवन व्यतीत करना हो तो पत्नी जो कहे उसे मानो। (यहाँ सम्भव है कि वही शब्द प्रयोग न हो सकें जो कहे गये पर उनका सार यही है) समाचार में आगे कहा गया कि उच्च्तम न्यायालय ने कहा कि यदि पत्नी कहे कि उधर मुँह फेर लो तो मुँह उधर ही फेर लो।
इस तरह का निर्णय न्यायालय ने एक तलाक के मामले में दिया। एकदम से विचार उन लोगों का आया जो महिलाओं को निरीह, अबला और शोषित बताते घूमते हैं। यदि यह बात किसी नेता, समाज सुधारक, साहित्यकार या फिर किसी अन्य ने कही होती तो अभी तक बवाल मच गया होता। (सम्भव है कि इस पर भी टीका-टिप्पणी हो क्योंकि पिछले दिनों एक न्यायाधीश के अपमान का मामला भी सामने आ चुका है)
सत्यता बहुत हद तक आज यह है भी। घरेलू हिंसा के रूप में महिलाओं के ऊपर होती हिंसा दिखती है, वह चाहे शाब्दिक हो, शारीरिक हो, मानसिक हो पर पुरुषों के ऊपर होती हिंसा कतई नहीं दिखती।
ऐसे एक दो नहीं कई घरों और पुरुषों को हम स्वयं व्यक्तिगत रूप से जानते हैं जो अपनी पत्नी और उसके मायके वालों से पीड़ित हैं। कई ऐसे निर्दोष परिवार भी हमारे सम्पर्क में हैं जो बिना किसी प्रकार की हिंसा करने के बाद भी दहेज प्रताड़ना के मुकदमे को झेल रहे हैं।
यह बात तो सौ फीसदी सही है कि समाज पुरुष प्रधान रहा और महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता रहा किन्तु अब भी यही बात लागू नहीं है। अब पुरुष महिलाओं को पूरा साथ दे रहे हैं। घर के कामों में भी हाथ बँटाया जा रहा है, बच्चों को भी सँभाला जा रहा है अन्य दूसरे कामों के द्वारा महिलाओं को सहयोग दिया जा रहा है।
अन्त में एक बात बस इसे विवाद न बनाइयेगा, आज महिला यदि तरक्की नहीं कर पाती है तो पुरुष को दोष देती है किन्तु यदि तरक्की कर जाती है तो उसके लिए पुरुष का बिलकुल भी सहयोग नहीं मानती।

क्या वाकई पुरुष बिलकुल सहयोग नहीं करते? एक पढ़ी-लिखी महिला को क्या उसके पिता ने शिक्षित होने में सहयोग नहीं किया? आज तमाम महिला ब्लागर हैं क्या वे सब बिना सहयोग के ऐसा कर रहीं हैं? आज तमाम सारी महिलायें अनेक क्षेत्रों में हैं क्या इसमें किसी भी पुरुष का बिलकुल भी सहयोग नहीं?
चलिए अब तो उच्चतम न्यायालय ने कह भी दिया नहीं भी कहा होता तो भी हम तो मान ही रहे थे कहना क्योंकि अभी शादी को बहुत वक्त नहीं हुआ और पुलिस से बड़ा डर लगता है। पता चलता लिया-दिया कुछ नहीं और डंडे पड़े सो अलग से.............
भइया मान भी जाओ...........जो कहे सो करो............समझे???

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुखी जीवन व्यतीत करना हो तो पत्नी जो कहे उसे मानो-घर के मेन गेट पर ऐन शादी के दिन से टांगे हुए हैं यही वाक्य!!

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारे यहाँ एक और चुटकी एक छोटे से बॉक्स में लिखी मिली. अंग्रेजी में थी. उसमे कहा गया है की पुरुष स्प्लिट A/C की तरह होता है. बहार का unit चाहे जितना भी हल्ला करे घर के अन्दर का unit silent चलने के लिए ही बना होता है.

    जवाब देंहटाएं
  3. पत्नी की जी-हजूरी करने वाले बीवी के गुलाम होते हैं। बात जी-हजूरी की नहीं, ताल से ताल और हाल से हाल मिलाकर चलने की बात थी। आपको नहीं लगता कि आपने इसे कुछ लंबा ही खींच दिया? वैसे, लिखने का अंदाज पसंद आया।

    जवाब देंहटाएं