12 मई 2009

संभावनाओं को तलाशते-तलाशते

मानव मन कहाँ-कहाँ सम्भावनायें तलाशता घूमता है स्वयं मनुष्य को ही नहीं पता होता है। इसी मानव-मन के वशीभूत हमारे नेतागण भी अपना काम करते दिखाई देते हैं। सम्भावनाओं को तलाशने का काम किसी भी रूप में हो, किसी भी प्रकार से हो। अब देखिए गाँधी परिवार का नाम ले-लेकर एक पुत्र अपनी सम्भावनायें तलाश ही रहा था कि एक और गाँधी परिवारी पुत्र ने अपना कदम राजनीति में रख दिया। अब ये दूसरे पुत्र अपनी सम्भावनायें तलाशते नजर आये।
एक को सम्भावनायें अपने पुरखों के नाम में दिखीं तो एक ने सम्भावनाओं की खोज हिन्दुओं के मुद्दे पर की। दोनों अपने-अपने तरीके से अपना विकास करने में लग गये। हालांकि इस सब के दौरान क्या-क्या हुआ यह हमारी चर्चा का विषय नहीं है। हमारा विषय सम्भावनाओं की तलाश करना-कराना है।
तेज-तर्रार गाँधी परिवार के वारिस ने अपने पिता सा स्वरूप दिखाया तो अन्य लोगों को उन्हीं में अपनी सम्भावनायें दिखाई देने लगीं। आनन-फानन अगले की सम्भावनाओं को रोक कर अपनी सम्भावनाओं के लिए रास्ता तैयार किया गया। रासुका जैसा कठोर कदम उठाकर दिखा दिया कि जहाँ जैसे भी सम्भव होगा हर एक की सम्भावनाओं को रोका जायेगा।
इस भागा-दौड़ी के बीच किसी तरह से अदालत ने छूट दी, एक अन्य ओर से रासुका से छुटकारा मिला तो सुप्रीम-कोर्ट तक में जाने की बात होने लगी। यहीं आकर लगा कि सम्भावनाओं को तलाशते-तलाशते हमारे नेतागण अपने आपसे ही मुँह चुराने लगेंगे। वरुण गाँधी न हो गया जैसे कि कोई विश्व के लिए खतरनाक आतंकवादी हो गया, रासुका नहीं लग पाई तो उच्चतम न्यायालय तक जाना पड़ेगा।
एक ओर अदालत से फाँसी की सजा पाया व्यक्ति है जो सुख-चैन भोग रहा है और दूसरी ओर शब्दों के कारण एक दूसरा व्यक्ति कोपभाजन का शिकार बन रहा है। इसी संदर्भ में देखा जाये तो वरुण को अब विवादास्पद बनाया जायेगा। नसबंदी से सम्बन्धित बयान को आप देख लीजिए। अब सवाल उठता है कि क्या यदि वरुण ने नसबंदी करवाने की बात कही तो क्या ऐसा करना अपराध है? क्या राष्ट्र-हित में कम संतान की अवधारणा सही नहीं है? सही-गलत कुछ भी हो बस चुनाव हों तो वोट-बैंक का भी ख्याल रखना पड़ता है। चाहे कोई देश का ख्याल रखे या न रखे सभी को वोट-बैंक का ख्याल रखना चाहिए। यही आज राष्ट्रधर्म है; इसी में सम्भावनायें छिपी हैं।
चलिए और क्या सम्भावनायें होंगीं ये तो नेता खोज ही लेंगे पर धर्म के नाम पर किसी को साम्प्रदायिक औश्र किसी को धर्मनिरपेक्ष की अवधारणा को तय करने का मानक भी निर्धारित करना होगा। अन्यथा की स्थिति में एक दिन सभी लोग वोट-बैंक बने नजर आयेंगे और हम अपनी-अपनी सम्भावनायें तलाशते दिखाई देंगे।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सही कह रहे है डाक्साब्।क्या करे अपने अपने नेता, अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग्।

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  2. rajneeti ki giravat sakaratmak soch vali janata k liye tamam sambhavnaon par pani pher deti hai.....achhi post k liye badhai

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  3. नेता तो हमेशा ही अपनी अपनी अलग राग अलापते रहते है..यही काम है उनका..

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  4. सही है, सब अपनी अपनी संभावनायें तलाश रहे हैं ।

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