सुबह-सुबह सोकर उठे तो अपने आसपास बहुत ही चहल पहल भरा माहौल पाया। वैसे हमारी दिनचर्या में सुबह छह बजे के आसपास उठने की आदत है पर कभी-कभी मन होता है (जब कोई काम न हो तो) हम देर तक बिस्तर में पड़े रहते हैं। वही हुआ, देरी से उठे तो बड़ी ही खनक सी सुनाई दे रही थी लोगों की बातों में। सोचा कि पड़ोस का कोई युवा किसी अच्छी सी नौकरी में आ गया है या फिर किसी पड़ोसी की बच्ची की शादी तय हो गयी है। आजकल यही दो काम ऐसे हो गये हैं जिनको लेकर आदमी परेशान रहता है और निर्धारित हो जाने के बाद जबरदस्त खुशी का माहौल दिखता है।
चाय वगैरह से निपट कर पता लगाया तो हमारे पड़ोसी ने ऐसे देखा जैसे कि हमारे सामान्य ज्ञान का स्तर बहुत ही नीचे रह गया हो। थोड़ी सी गम्भीर बनने की स्टाइल दिखाते हुए बाले क्या सारा दिन किताबों से सिर खपाते हो कभी टीवी वगैरह भी देख लिया करो, पता है स्लमडाग को आठ आस्कर मिले हैं। पहले तो स्लमडाग का अर्थ ही नहीं निकाल सके बाद में दिमाग ने झटका खाया तब पता लगा कि ये है स्लमडाग मिलेनियम। पूरी तरह से बताया तब हमें मालूम हुआ कि हमारे देश के हिस्से में तो तीन आये हैं, चलो कुछ तो आया सोच हम भी प्रसन्न से हो लिए।
अन्दर आकर विचार किया कि क्या वाकई ये हमारे लिए अतिप्रसन्नता का विषय है? जिस प्रकार से हम लोग पिछले तीन दिनों से गदर काटे पड़े हैं लग रहा है जैसे कि हम विश्वविजेता हो गये हैं। क्या है हमारा इस फिल्म में? क्या गुलजार साहब की योग्यता के सिद्ध होने के लिए एक अदद आस्कर की ही आवश्यकता थी? क्या बिना आस्कर के ए0आर0 रहमान की संगीतज्ञ प्रतिभा पर हमें संदेह था? इसके अलावा इस फिल्म में हमारा क्या है? हाँ, यदि है तो हमारी गरीबी, हमारी झुग्गी झोपड़ियों की असलियत। अब यदि इस असलियत ने आस्कर दिलाया है तो किसी विदेशी निर्देशक को, किसी विदेशी निर्माता को न कि हमें।
क्या कहें हम तो तब ही प्रसन्न होते हैं जब हमारे ऊपर विदेशी ठप्पा लग जाता है। अमर्त्य सेन को तब तक नहीं पूछा जब तक कि वह नोबेल न पा गये, कल्पना चावला को कोई तब तक नहीं जानता था जब तक कि वह विदेशी के रूप में अंतरिक्ष की सैर को नहीं निकलीं। चलो अब हमारी फिल्मों के नाच-गानों को भी प्रामाणिकता मिल जायेगी। अभी तक तो विदेशियों के साथ-साथ कुछ भारतीयों के लिए ये सब तो तमाशा हुआ करता था पर अब आस्कर के बाद तो ये भी सहज स्वीकार्य होगा।
26 फ़रवरी 2009
स्लमडॉग मिलेनियम के बहाने से
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सेंगर साहब हममें ही खोट है कि अपने में से बेस्ट का चुनाव हम नहीं कर पाते और जब कोई बाहरी हमारा सम्मान करता है तो हमारी अरबों की आबादी लाखों की आबादी के सामने कमज़ोर नज़र आती है!
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