रिश्ते क्यों आज अपनी गरिमा खोते जा रहे है? ये सवाल आज चैंकाता नहीं है। यह सवाल आज एकाएक एक कार्यक्रम के अवसर पर कार्यक्रम स्थल पर गूँज उठा। एक छोटा सा कार्यक्रम महिला श्रमिकों के लिए आयोजित किया गया था, उस कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। तमाम वक्ताओं द्वारा महिलाओं को उन्नति करने के, आत्मविश्वास पैदा करने के तरीके बताये। सारा कुछ बड़ी ही स्थिरता से, सहजता से चल रहा था किन्तु उसी बीच एक लड़की ने खड़े होकर सवाल दागा कि आज क्यों आपसी सम्बन्धों में शक की गुंजाइश पैदा हो गया है? क्यों कोई माँ-बाप अपनी युवा लड़की को किसी भी रिश्तेदार के घर पर छोड़ने से या उसके साथ जाने देने से हिचकते हैं?
सवाल वाकई गम्भीर था और इससे मुँह फेर लेने से सवाल की चुभन कम नहीं हो जाती। उस समय आयोजकों द्वारा, विषय विशेषज्ञों द्वारा अपनगे स्तर पर इस सवाल का उत्तर दिया गया किन्तु इस सवाल के पीछे छिपी किसी भी लड़की की चिन्ता कम न हो सकी। यह सवाल इस पोस्ट को लिखते समय भी कचोटता सा है कि हम आधुनिकता में किस प्रकार अंधे होकर अपने आप को ही मिटाते जा रहे हैं। आज किसी भी रिश्ते का आधार शरीर क्यों होता जा रहा है, पता नहीं?
बहरहाल समाज में इस कदर से सुसुप्तावस्था इस तरफ से आती जा रही है कि यदि कोई आवाज भी उठाता है तो उसे बेवकूफ कहा जाता है। क्या वाकई अब रिश्तों का मोल कम से कमतर होता जा रहा है?
19 फ़रवरी 2009
रिश्ते क्यों खो रहे हैं गरिमा?
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पता नहीं....इक्कीसवी सदी की हवा है या कुछ और कारण ?
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही आधुनिकता की नासमझ दौड़ कुछ हद तक इस तरह की मानसिकता के लिए जिम्मेदार है.
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