चलिए अब मुम्बई की घटना से बाहर निकला जाए, हालांकि ये घटना ऎसी हुई है कि एकाएक तो इससे ध्यान नहीं हटेगा. इस बात का उदाहरण हमारा ब्लॉग संसार रहा है जहाँ अधिक से अधिक पोस्ट मुंबई घटना से सम्बंधित दिखीं. बहरहाल जिस दिन मुंबई की घटना हुई उस दिन सोचा था कि बाल साहित्य को लेकर कुछ लिखा जायेगा किंतु मुंबई में आ धमके आतंकवादियों ने इस तरफ़ लिखने ही नहीं दिया. हमारे देश में साहित्य बहुत पुराने समय से ही लिखा जाता रहा है. आज भी साहित्य में कई महारथी लगे हुए हैं जो साहित्य की हर विधा में अपनी कलम चला रहे हैं.
इधर देखने में आया है कि साहित्य में व्यापक स्तर पर काम होने के बाद भी बाल साहित्य को लेकर काम संतोषजनक नहीं हो रहा है. ब्लॉग की स्थिति भी इससे कुछ अलग नहीं है. ऐसा नही है कि कुछ नहीं लिखा जा रहा है पर ऐसा नहीं है जिसे सार्थक कहा जाए. चूंकि हम भी साहित्य के क्षेत्र में एक छात्र भाव से लगे हैं और इधर-उधर देखने के बाद महसूस किया कि बच्चों की दुनिया को लेकर संवेदनशीलता नहीं दिख रही है. बच्चों के लिए एक समय में चंदामामा, गुडिया, शेर बच्चा, दीवाना जैसी पत्रिकाएं निकलतीं थीं। अब बाल साहित्य के नाम पर कुछ पत्र-पत्रिकाएं एक या दो कालम निकाल कर समापन कर दे रहे हैं. इससे बाल साहित्य का भला नहीं होने वाला.
ये प्रश्न विचारणीय हो सकता है कि क्या अब बाल साहित्य की आवश्यकता हमें नहीं है? क्या बाल साहित्य कि उपयोगिता अब नहीं है? या फ़िर बाल साहित्य लिखने वाले साहित्यकारों को साहित्यकार नहीं माना जा रहा है? प्रश्न जो भी हों पर उनके उत्तर ढूँढना जरूरी हैं. आप सब के सहयोग से इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने का प्रयास कर रहे हैं। यदि आप लोग सहयोग करेंगे तो सम्भव है कि कुछ सफलता हाथ लगे. एक ब्लॉग "बाल मेला" बच्चों के लिए बनाया है. जिसमें आप सबका सहयोग अपेक्षित है.
ब्लॉग संसार में पहले से ही कुछ ब्लॉग बच्चों के लिए बने हैं. हमारा यह प्रयास उनके प्रयासों में एक और कडी जोड़ने जैसा ही होगा, बस आप सबके सहयोग की जरूरत है. आप लोग बच्चों की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए रचनाएं लिख कर हमें प्रेषित करें. या फ़िर बाल मेला के सदस्य बन कर सीधे-सीधे रचनाएं लिखें। हो सकता है कि आप लोगों को हमारे इस प्रयास पर हँसी भी आए क्योंकि आजकल इस विषय पर कोई भी कुछ नहीं लिख रहा है और हम एक पूरा का पूरा ब्लॉग बना दे रहे हैं.
चूंकि बच्चों के लिए लिखना बच्चों का खेल नहीं है, इस कारण भी हर कोई इस विषय पर कलम चलाने से बचता है. बच्चों के लिए कुछ भी लिख देना बाल साहित्य नहीं है और जो बाल साहित्य में आता है वह कुछ भी नहीं है, कोई भी नहीं लिख सकता है. इसके बावजूद हमें मालूम है कि ब्लॉग पर बहुत से लोग हैं लिखने वाले जो पूरे मन से, पूरी क्षमता के साथ लिख रहे हैं। आप सबसे पुनः अनुरोध कि आने वाली पीढी के लिए, साहित्य की विरासत को सुरक्षित रखने के लिए बच्चों का साहित्य-पाठन की रूचि जाग्रत करना अत्यन्त आवश्यक है. आज के बच्चे ही कल के साहित्यकार हैं, पाठक हैं, यदि अज इनको पढने के लिए सार्थक साहित्य नहीं मिला तो ये लोग कल को क्या लिखेंगे, क्या पढेंगे?
तो आइये अपने ही बच्चों के लिए इस कदम के साथ अपने भी कदम मिला दीजिये......बाल मेला को सजाइये.....अपनी रचनाएं भेज कर..... स्वयं इसके सदस्य बनकर।
ब्लॉग का सदस्य बनने के लिए अपना पूर्ण परिचय, पता, फोन नंबर आदि baalmelaa@gmail.com को प्रेषित करें। आप अपनी रचनाएं भी यूनिकोड फॉण्ट में इसी मेल पर प्रेषित कर सकते हैं। आशा है आप सब सहयोग अवश्य करेंगे.....
डाक्टर साहब बच्चो के लिये बहुत अच्छा प्रयास है।
जवाब देंहटाएंशुभ विचार है... जरुर भेजेगे..
जवाब देंहटाएंएक नजर आदि के ब्लोग (http://aadityaranjan.blogspot.com)पर डाले शायद कुछ काम का हो?