फ़िर धमाके, फ़िर मौतें.......................उफ़....क्या कहें? क्या लिखें?.............कितनी बार वही सब लिखें?..........हर बार किसी को आरोपी बताया जाएगा......किसी के बहाने किसी और को ताना दिया जाएगा........किसी की मौत पर कोई रोटी सकेगा.......किसी को वोट बैंक खिसकता दिखेगा........कोई किसी पर निशाना साधेगा..........कोई अपनों के जाने के ग़म में रोयेगा......कोई आतंक के सफल होने पर हंसेगा..............और हम?..........हम सब किसी के आंसू......किसी के दुःख..........किसी की मौत पर कुछ लिखने का रास्ता तलाशेंगे।
क्या वाकई हम सब लोगों के दुःख में लिखते रहने का ही काम करेंगे? हम जब तक दवाब बनाने का काम नहीं करेंगे तब तक वोट बैंक, तुष्टिकरण, क्षेत्रवाद, जातिवाद आदि-आदि के कारण ये दर्द भारी घटनाएँ सामने आती ही रहेंगी.
बहरहाल बिना कुछ कहे आतंकी घटनाओं के शिकार लोगों को विनम्र श्रद्धांजलि.
यह तब तक चलेगा सब, जब तक आम आदमी परस्पर नफरत को अपने सोच से बाहर निकाल कर नहीं फेंक देता. आतंकवादी और नेता नफरत फैलाते हैं और आम आदमी उन का शिकार हो जाते हैं. आम आदमी को इन नफरत के सौदागरों से बचना होगा. इन के बेह्काबे में आना बंद करना होगा. परस्पर प्रेम ही इसका जवाब है.
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है आपने. लिखते रहे.
जवाब देंहटाएंहमारी भी विनम्र श्रद्धांजलि.
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