इसमें किसी को कोई संदेह होगा ही नहीं
कि ताजमहल वास्तुकला का एक नायाब नमूना है. उसकी सुन्दरता और कारीगरी के कारण ही
उसे विश्व के सात अजूबों में शामिल किया गया है. ताजमहल अपने निर्माण से लेकर आजतक
बराबर किसी न किसी रूप में चर्चा में बना रहा है. इतिहासकारों के अनुसार ताजमहल
निर्माण के बाद कारीगरों के हाथ कटवा दिए गए थे ताकि वे दोबारा ताजमहल की अनुकृति
का निर्माण न कर सकें. कालचक्र चलता हुआ इतिहास से निकल कर वर्तमान तक आकर खड़े हुए
ताजमहल के साथ सुन्दरता जिस तरह से जुडी रही उसी तरह से उसके साथ विवादों का भी
नाता रहा है. इस विवाद को राजनीति के कदम आये दिन और बढ़ावा दे देते हैं. ताजमहल के
नाम पर कभी विवाद हुआ उसके आसपास कार्यक्रम करवाए जाने को लेकर, कभी किसी निर्माण
को लेकर, कभी उसके आसपास बनी औद्योगिक इकाइयों को लेकर, कभी यमुना नदी में बहते
पानी को लेकर. इन तमाम सारे विवादों बीच ताजमहल के साथ उसका अस्तित्व शिव मंदिर पर
होने का विवाद भी लगातार चलता रहा. हाल ही में इस विवाद को हवा उस समय दी गई जबकि
उत्तर प्रदेश की ताजा प्रकाशित पर्यटन पत्रिका में ताजमहल का जिक्र नहीं किया गया.
हालाँकि पर्यटन मंत्री ने स्पष्ट करते हुए कहा कि पर्यटन विभाग की तरफ से नए पर्यटन
स्थलों को वरीयता दी गई है तथापि इसके बाद भी विवाद बना रहा.
ताजमहल से जुड़े तमाम सारे विवादों में
सबसे बड़ा विवाद उसके शिव मंदिर पर बने होने को लेकर है. हिन्दू धर्मावलम्बी लम्बे
समय से अपनी बात पर अड़े हुए हैं और ताजमहल में शिव मंदिर के अस्तित्व होने के
साक्ष्य भी प्रस्तुत करते रहे हैं. उसके लिए जाँच करवाए जाने की मांग करते रहे
हैं. इस विवाद को प्रदेश में भाजपा सरकार के आने के बाद से और बल मिला. भाजपा से,
हिन्दू संगठनों से जुड़े लोगों ने पुरजोर तरीके से ताजमहल को तेजोमहल बताया वहीं
भाजपा-विरोधी उसे प्रेम का स्मारक बताये जाने पर अड़े हुए हैं. ताजमहल को सदैव से
शाहजहाँ द्वारा अपनी बीवी मुमताज की याद में बनवाए गए प्रेम स्मारक के रूप में
प्रसारित-प्रचारित किया जाता रहा है. इसी बिंदु के आधार पर भाजपा विरोधी, हिन्दू
विरोधी तत्त्व अपनी बात को पुरजोर ढंग से रखने का कथित दावा करते दिखाई देते हैं. वे
सभी लोग इसे प्रेम स्मारक होने के साथ-साथ देश की सांस्कृतिक विरासत बताते नहीं
थकते हैं. एक पल को ताजमहल के सांस्कृतिक स्मारक होने को सच मान लिया जाये तो सवाल
यह उठता है कि उस सांस्कृतिक स्थल पर सिर्फ एक मजहब के लोगों को अपना धार्मिक
कृत्य करने की अनुमति क्यों है? सिर्फ मुसलमानों को वहां प्रति शुक्रवार नमाज पढ़ने
की अनुमति क्यों है? ये सवाल उस दशा में और भी अहम् हो जाता है जबकि ताजमहल परिसर
में दो दिन पहले शिव चालीसा का पाठ करने वाले कुछ युवकों को पकड़ लिया गया. जिन्हें
बाद में माफीनामा लिखवाने के बाद रिहा किया गया. ये अपने आपमें बहुत बड़ा सवाल है
कि सिर्फ दो-चार युवकों द्वारा एक स्थान पर बैठकर शिव चालीसा का पथ करना अवैधानिक
हो गया और प्रति शुक्रवार सैकड़ों की संख्या में मुसलमानों द्वारा नमाज पढ़ना
वैधानिक कैसे हो जाता है?
ताजमहल का निर्माण शिवमंदिर को तोड़कर किया
गया है या नहीं, ये शोध का, जाँच का विषय हो सकता है मगर इसमें किसी को संशय नहीं
होना चाहिए कि मुगलों द्वारा बनवाई गई सभी इमारतों का आधार हिन्दू स्मारक ही रहे
हैं, हिन्दू मंदिर ही रहे हैं, हिन्दुओं के सांस्कृतिक केंद्र रहे हैं. ऐसे में
यदि बार-बार इस बात को उठाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण शिवमंदिर पर किया गया
है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए इस पर. इस बिंदु के सन्दर्भ में एक बात
विचारणीय होनी चाहिए कि ताजमहल को गिराए जाने की बात नहीं की जा रही है. ऐसी बात
होनी भी नहीं चाहिए किन्तु इसके साथ-साथ सबसे अहम् बात जो होनी चाहिए वो यह कि यदि
ताजमहल प्रेम का स्मारक है, यदि ताजमहल सांस्कृतिक स्मारक है तो वहाँ प्रति
शुक्रवार होने वाली मजहबी क्रिया बंद होनी चाहिए. एक तरफ ताजमहल को सभी धर्मों के
लोगों के आकर्षण का केंद्र बताया जाता है, प्रेम स्मारक बताया जाता है तो फिर
विशेष छूट किसी एक धर्म को मिलना सिद्ध करता है कि ताजमहल उसी मजहब विशेष का
स्मारक है. हाँ, यदि किसी कारण से ताजमहल परिसर में नमाज पढ़ने को नहीं रोका जा
सकता तो सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धार्मिक क्रियाकलाप किसी एक दिन संपन्न
करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी को ब्लॉग बुलेटिन का नमन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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