मुजफ्फरनगर में एक और
ट्रेन हादसा हुआ. इसके बाद वही सरकारी लीपापोती, वही जाँच के
आदेश. हर ट्रेन दुर्घटना के पीछे आतंकवादी कनेक्शन नहीं होता और हर ट्रेन हादसे के
पीछे ऐसे ही कनेक्शन को तलाश करने का अर्थ है कि सरकारी तंत्र अपनी नाकामयाबी को छिपाने
की कोशिश कर रहा है. मुजफ्फरनगर में हुए हालाँकि हालिया कलिंग-उत्कल ट्रेन हादसे में
सरकारी तंत्र की तरफ से न तो आतंकी हाथ होने सम्बन्धी बयान आया और न ही उस दिशा में
जाने जैसे कोई संकेत दिए गए. इस हादसे में प्रथम दृष्टया मानवीय चूक ही नजर आती है
और हादसे के तुरंत बाद फौरी तौर पर कदम उठाते हुए सम्बंधित कर्मियों पर कार्यवाही भी
कर दी गई है. इसके बाद भी कई सवाल हैं कि आखिर सम्बंधित रेलकर्मी अपनी जिम्मेवारी को
समझते क्यों नहीं? आखिर हादसों के बाद निलम्बन, स्थानांतरण आदि के द्वारा कागजी खानापूरी कब तक की जाती रहेगी? रेलवे प्रशासन आखिर अपने यात्रियों की सुरक्षा के प्रति लापरवाह क्यों बना
हुआ है?
ये ट्रेन दुर्घटना कोई
पहली दुर्घटना नहीं है. अभी कुछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश के पुखरायाँ रेलवे स्टेशन के
पास हुए भीषण हादसे में सैकड़ों लोगों की जान गई थी. उसके चंद दिनों बाद कानपूर के नजदीक
रूरा रेलवे स्टेशन के पास भी ट्रेन पटरी से उतर कर पलट गई थी. शुक्र था भगवान का कि
रूरा ट्रेन हादसे में बहुत जान-माल की क्षति नहीं हुई थी. यहाँ पुखरायाँ हादसे की जाँच
में आतंकी कनेक्शन मिलने के सूत्र हासिल हुए हैं. उसके बाद पकडे गए कुछ आतंकियों ने
उस हादसे के बारे में सबूत भी दिए थे लेकिन सभी ट्रेन हादसे आतंकी गतिविधियों के कारण
नहीं हो रहे हैं. वर्तमान कलिंग-उत्कल ट्रेन हादसे में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि ट्रेन
पटरी पर काम चल रहा था, जिसमें घनघोर दर्जे की लापरवाही की गई.
जो कुछ घटनास्थल पर दिखाई दे रहा है उसको और उजागर करने का काम मुजफ्फरनगर ट्रेन हादसे
के बाद सामने आई वो ऑडियो क्लिप है जिसमें दो रेलवे कर्मचारियों की टेलीफोन पर हुई
बातचीत है. इस बातचीत में ट्रेन दुर्घटना में लापरवाही के संकेत मिले हैं. बातचीत के
आधार पर जैसा कि एक रेलवे कर्मचारी दूसरे से कह रहा है कि रेलवे ट्रैक के एक भाग पर
वेल्डिंग का काम चल रहा था. लेकिन मजदूरों ने ट्रैक के टुकड़े को जोड़ा नहीं और इसे
ढीला छोड़ दिया. क्रासिंग के पास गेट बंद था. ट्रैक का एक टुकड़ा लगाया नहीं जा सका
था और जब उत्कल एक्सप्रेस पहुंची तो इसके कई कोच पटरी से उतर गए. इसके साथ ही यह भी
कहा गया कि जिस लाइन पर काम चल रहा था, न तो उसे ठीक किया गया
और न ही कोई झंडा या ट्रेन रोकने को कोई साइनबोर्ड लगाया गया. यह दुर्घटना लापरवाही
की वजह से हुई. ऐसा लगता है कि सभी लोग निलंबित होंगे.
हर हादसे के बाद और सतर्कता
से काम करने के निर्देश जारी कर दिए जाते हैं. जनता को आश्वासन और हताहतों को मुआवजा
दे दिया जाता है. इतनी सी कार्यवाही के बाद रेलवे प्रशासन अपनी जिम्मेवारी को पूर्ण
मान लेता है. ऐसे में क्या ये समझ लिया जाये कि रेलवे प्रशासन मान बैठा है कि ट्रेन
हादसों को रोका नहीं जा सकता? आखिर एक तरफ देश को बुलेट ट्रेन
के सपने दिखाए जा रहे हैं. ट्वीट के जरिये यात्रियों को मदद दिए जाने के रेल मंत्री
सुरेश प्रभु के सकारात्मक कार्यों का बखान किया जा रहा है. रेलवे को सर्वाधिक सक्षम,
संवेदनशील, सक्रिय विभाग माना जा रहा है. तब मानवीय
लापरवाही का दिखाई पड़ना किसी और बात के संकेत देता है. साफ़ सी बात है कि केन्द्रीय
स्तर पर प्रशासनिक नियंत्रण कार्य नहीं कर रहा है. निचले स्तर के कर्मचारी भी कार्य
करने में कोताही बरतने के साथ-साथ मनमानी करने में लगे हुए हैं. यदि ऐसा न होता तो
विगत तीन वर्षों में हुए ट्रेन हादसों में बहुतायत में पटरी का टूटा मिलना बहुत बड़ा
कारण रहा है. मुजफ्फरनगर दुर्घटना में तो टूटी पटरी के टुकड़े को बिना बैल्डिंग जोड़
देना घनघोर लापरवाही ही कही जाएगी.
रेलवे की तरफ से आये
दिन किसी न किसी रूप में यात्रियों पर किराये में भार ही डाला जा रहा है और इसके पीछे
का उद्देश्य सुगम, सुरक्षित यात्रा का होना बताया जा रहा है.
इसके बाद भी ट्रेनों में बादइन्तजामी ज्यों की त्यों है. खाने में गन्दगी, कपड़ों में गन्दगी, ट्रेनों का देरी से चलना, ट्रेनों में आपराधिक घटनाएँ होना आदि ज्यों का त्यों बना हुआ है. वर्तमान मोदी
सरकार का रवैया भी वैसा ही है जैसा कि पूर्ववर्ती सरकारों का होता था. ऐसे में बदलाव
की उम्मीद कैसे की जा सकती है? कैसे उम्मीद की जा सकती है कि
एक दिन इस देश का नागरिक बुलेट ट्रेन में यात्रा करेगा? कैसे
कोई यात्री ट्रेन में चढ़ने पर विश्वास के साथ यात्रा करेगा कि वह अपने गंतव्य पर सही-सलामत
उतरेगा? किसी अधिकारी-कर्मचारी का निलम्बन अथवा अन्य कोई कार्यवाही
दुर्घटनाओं से बचने का अंतिम विकल्प नहीं हैं. अब रेलवे के कर्मियों को अपनी जिम्मेदारी
को समझना होगा. स्वयं रेलमंत्री को अपने कर्तव्यों दायित्वों का एहसास करना होगा. उन्हें
समझना होगा कि उनके ऊपर लाखों यात्रियों की जान-माल की सुरक्षा की जिम्मेवारी है. उनको
भविष्य की कार्ययोजना और आगे की कार्रवाई को और बेहतर बनाने की आवश्यकता है. आखिर कोई
ट्रेन यात्री इतनी अपेक्षा तो कर ही सकता है कि वह उचित किराया देकर ट्रेन में सफ़र
कर रहा है तो अपनी मंजिल पर सुरक्षित पहुँच सके. इस तरह की दुर्घटनाओं से मुँह चुराने
की नहीं वरन इनसे सबक लेते सीखने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ट्रेन हादसों को रोका
जा सके.
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उक्त आलेख आज दिनांक 22-08-2017 के डेली न्यूज़ के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है.
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