इस बार बुद्ध
पूर्णिमा, 10 मई के अगले दिन ही वो गौरवशाली दिन, 11
मई आया जब देश में बुद्ध मुस्कुराये थे. जी हाँ, 11
मई 1998 जब देश में दोबारा बुद्ध
मुस्कुराये थे. इससे पहले वे सन 1974 में मुस्कुराये थे. देश
के परमाणु इतिहास में दो बार भूमिगत परीक्षण किये गए और दोनों ही बार
शांति-अहिंसा के परिचायक महात्मा बुद्ध का नाम इसके गुप्त सन्देश के रूप में उपयोग
किया गया. यह सम्पूर्ण विश्व को यह सन्देश देने के लिए पर्याप्त और स्पष्ट है कि
देश के परमाणु कार्यक्रम का उद्देश्य सिर्फ शांति-अहिंसा के लिए है, शांतिपूर्ण कार्यो
के लिये है और यह परीक्षण भारत को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये है.
पोखरण में 11 और 13 मई 1998 को पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण करने के साथ ही भारत
ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया.
राजस्थान के पोखरण में
पाँच परमाणु विस्फोट होने से समूचे विश्व में तहलका मच गया था. इसका कारण किसी को
भी इस कार्यक्रम की भनक न लग पाना रही. परीक्षण के इन धमाकों से सारा संसार चकित रह
गया. ऑपरेशन शक्ति के रूप में शुरू हुए इस अभियान की भनक विकसित
देशों के उपग्रहों को भी न लगने के पीछे कलाम साहब की बहुत बड़ी
भूमिका रही. चूँकि 1995 में ऐसे कार्यक्रम को अमेरिकी उपग्रह
द्वारा पकड़ लिया गया था, जिसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय दवाब के आगे देश ने अपने उस
कार्यक्रम को टाल दिया था. इस बार कलाम साहब अपनी टीम के साथ किसी भी तरह की
हीलाहवाली के मूड में नहीं थे. उन्होंने गुप्त कोड के ज़रिये अपनी बातचीत को बनाये
रखा. पोखरण में काम उसी समय किया गया जबकि उपग्रहों की नजर में वो जगह नहीं होती
थी. परमाणु परीक्षण से सम्बंधित समस्त उपकरणों को सेब की पेटियों में लाया गया, जिससे
किसी को शक न हो. परीक्षण पूर्व की पूरी तैयारी में कलाम साहब सहित समस्त
वैज्ञानिक सेना की वर्दी में तथा सैन्य अधिकारियों के रूप में ही रहे जिससे यही
लगे कि भारतीय सेना का कोई कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है. परीक्षण क्षेत्र के
आसपास के ग्रामवासियों को भी परीक्षण के दिन तक किसी तरह का आभास नहीं होने दिया
गया था.
तत्कालीन प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी 20 मई को परीक्षण स्थल पहुंचे.
उन्होंने देश को एक नया नारा जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान दिया. सभी
देशवासी प्रधानमंत्री के साथ-साथ गर्व से भर उठे. अमरीका, रूस,
फ्रांस, जापान और चीन आदि देशों ने भारत को आर्थिक
सहायता न देने की धमकी देते हुए प्रतिबन्ध भी लगा दिए किन्तु देश इन धमकियों के सामने
नहीं झुका. देश ने इन्हीं प्रतिबंधों के बीच 13 मई
1998 को पोखरण में फिर से परमाणु परीक्षण करके सम्पूर्ण विश्व को
स्पष्ट जवाब दे दिया था कि वो किसी भी ताकत के आगे झुकने वाला नहीं है. इन परीक्षणों
को करने का मुख्य उद्देश्य विश्व को यह बताना था कि देश किसी भी सामरिक क्षमता का मुँहतोड
जवाब देने में समर्थ है. अपनी सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर है.
आज से लगभग दो दशक
पहले देश ने सम्पूर्ण विश्व को दरकिनार करते हुए, बहुत सारे विकसित देशों के
प्रतिबंधों को नकारते हुए अपनी जीवटता का परिचय दिया था. आज जबकि देश तत्कालीन
स्थितियों से कई गुना अधिक सक्षम है, कई गुना तकनीकी रूप से विकसित है, कई गुना
अधिक वैश्विक समर्थन उसके साथ है उसके बावजूद चंद आतंकी ताकतों के सामने देश की
शीर्ष सत्ता कमजोर नजर आ रही है. पड़ोसी देशों के समर्थन से संचालित आतंकवाद के
सामने कमजोर पड़ती दिख रही है. पड़ोसी सेना के कायराना हरकतों के आगे चुप्पी साधे
बैठी है. माना कि इन सबके लिए परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं किया जा सकता है,
किसी अन्य स्थिति में किया भी नहीं जाना चाहिए मगर देश के विरुद्ध षडयन्त्र कर रहे
लोगों को, देश में हिंसा फैलाते आतंकियों को, देश की सेना के लिए मुश्किल बनती
पड़ोसी सेना-आतंकियों को सबक सिखाने के लिए उसी परमाणु परीक्षण जैसा हौसला, जीवटता
चाहिए जो पहले दिखा था. एक बार फिर से बुद्ध को मुस्कुराना होगा और इस बार
भी उनके मुस्कुराने का उद्देश्य शांति स्थापित करना होगा, सेना का स्वाभिमान
बरक़रार रखना होगा, देश की अखंडता को बनाये रखना होगा.
बहुत खूब....
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