पोर्ट ब्लेयर में दो दिन की
घूमा-फिरी के बाद समुद्र किनारे सजे-सजाये खड़े तीन जहाजों के अद्भुत दृश्य को
आत्मसात करते हुए देर रात तक बिटिया रानी के जन्मदिन की पार्टी और फिर सुबह-सुबह
हैवलॉक द्वीप को चल देना. अंडमान-निकोबार में जल्दी सूर्योदय होने के कारण सुबह छह
बजने से पहले ही तेज धूप हम सबका स्वागत करने को तैयार हो चुकी थी. छोटे भाई के दो
मित्र अपने परिवार सहित हमारा इंतज़ार करते मिले. औपचारिकतायें जल्दी-जल्दी निपटाने
के साथ ही हम सब शिप में अपनी निर्धारित सीट पर जा बैठे. नियत समय पर शिप ने
समुद्र के सीने पर डोलना शुरू किया. आरम्भिक कुछ मिनटों की यात्रा को शिप के
नियमों के अन्तर्गत अपनी जगह पर बैठे-बैठे करने के बाद यात्रियों को डैक पर आने की
अनुमति दे दी गई. हमारी और परिवार की पहली समुद्री यात्रा होने के कारण एक अलग तरह
का रोमांच भी था. हालाँकि इससे पूर्व कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक पर पहुँचने
के लिए फैरी की यात्रा की जा चुकी थी मगर वो कुछ मिनट की ही यात्रा था. उसके ठीक
उलट पोर्ट ब्लेयर से हैवलॉक दो घंटे से अधिक की यात्रा थी.
डैक पर आने की अनुमति मिलते ही
हम अपना कैमरा संभाल डैक पर आ पहुँचे. हिलते-डुलते, उछलते-लहराते शिप की यात्रा
में कुछ समय तो अपने दिमाग का संतुलन बनाने में लग गया. चक्कर आता सा समझ आ रहा
था. कई यात्रियों को जी मिचलाते, उलटी करते भी देखा मगर ये बात हम तीनों लोगों के
साथ अच्छी रही कि किसी को उलटी जैसी समस्या नहीं हुई. यद्यपि बिटिया रानी को कुछ
उलटी जैसा हुआ मगर वो भी एक-दो बार के बाद सामान्य हो गई. सूरज की किरणें
भिन्न-भिन्न तरीके से समुद्री लहरों का श्रृंगार करने में लगी थीं. शिप अपनी पूरी
ताकत से विशाल समुद्र का सीना चीरकर उत्साह से आगे बढ़ा जा रहा था. जहाज के तल
समुद्री जल को चीरते हुए दूधिया फेन बनाते हुए अनगिनत मनमोहक छवियों का निर्माण
करने में लगा था.
पूरे रास्ते जहाज के रास्ते छोटी-छोटी मछलियाँ, जिनमें डॉल्फिन
भी शामिल थी, उछलकूद मचाते हुए इधर से उधर कूद-फांद करने में लगी थीं. दो घंटे से
अधिक की यात्रा डैक किनारे खड़े-खड़े, समुद्री लहरों को कैमरे में कैद करते-करते कब
हैवलॉक आ गया पता ही नहीं चला. इस दौरान जहाज पर बजते संगीत के बीच यात्रियों की
मस्ती, नाच-गाना भी होता रहा. नवयुगल थिरकते हुए अपना आनंद बटोर रहे थे तो बुजुर्ग
भी किसी से पीछे नहीं थे. सब मस्ती के मूड में एक परिवार सा लग रहे थे. न कोई
छेड़छाड़, न कोई अभद्रता, न कोई अश्लीलता ऐसा लग रहा था जैसे सब अपने परिवार के बीच
नाच-गाना-मस्ती कर रहे हों.
हर्षोल्लास, मस्ती के माहौल
में हैवलॉक आने की सूचना मिली. सब अपनी-अपनी जगह फिर बैठ गए. हैवलॉक उतने के बाद
नैसर्गिक प्राकृतिक सुन्दरता चारों तरफ बिखरी दिखी. चंद किमी के दायरे में समुद्र
किनारे बसी अत्यंत छोटे से मनमोहक हैवलॉक में राधानगर, कालापत्थर और एलिफेंटा सहित
कुल तीन बीच वहाँ के सौन्दर्य को पर्यटकों के सामने बिखेरते हैं. समुद्री जल इस
कदर साफ़ और नीला है कि उसकी गहराई में छिपे सौन्दर्य को भी सहजता से निहारा जा सकता
है.
शाम को राधानगर बीच पर पहुँचकर देखा कि सैकड़ों की संख्या में लोग समुद्री
लहरों के साथ खेलते-कूदते आनंद उठा रहे हैं. इनमें से बहुतायत में नवयुगल थे जो
आसपास की दुनिया से बेखबर सिर्फ अपने में निमग्न थे. मनमोहक सूर्यास्त के बाद वापस
होटल लौटना हुआ. एक अजब सी अनुभूति के बाद महसूस हुआ कि समुद्र कितना भयावह होता
है और कितना मनमोहक भी, बस उसकी स्थिति का अंतर होता है.
अगले दिन वैसे तो एलिफेंटा बीच
जाने का निर्धारित कार्यक्रम था मगर सबने अपने-अपने कारणों से वहाँ जाने से इंकार
कर दिया. चाय-नाश्ते आदि से निपटने के बाद हम सपरिवार कालापत्थर बीच को चल दिए. सामने
विशाल समुद्र और उसके किनारे एक तरफ विशाल काली शिलाखंड, उसके काले छोटे-छोटे
पत्थर उस बीच को कालापत्थर बीच के नाम से प्रसिद्धि दिलाये हुए थे. राधानगर बीच के
मुकाबले यहाँ पर्यटकों की संख्या बहुत कम दिखी. इस बीच पर घोंघे, सीपी, शंख आदि
जीवों का किनारे रेत पर रेंगना अद्भुत लगा. इसके अलावा छोटे-छोटे केंकड़े भी बड़ी
तेजी से इधर से उधर भागते दिख रहे थे. ऐसा दृश्य कहीं और देखने को मिला नहीं था, इसके अलावा इनको कहीं और
देखा भी नहीं था. नई तरह के जीवों को देखने का कौतूहल तो था ही साथ ही एक अदृश्य
भय भी काम कर रहा था.
तीसरे दिन हैवलॉक से वापसी का समय
निर्धारित था. एकदम शांत, निर्मल, स्वच्छ हैवलॉक से इतनी जल्दी जाने का मन भी नहीं
हो रहा था मगर जाना भी था. वापसी शिप का समय दोपहर बाद तीन बजे निर्धारित था. होटल
छोड़ने के पूर्व कुछ देर हैवलॉक टहलकर वहाँ के बारे में कुछ और जानकारी एकत्र करने
निकल पड़े. लगभग पच्चीस-तीस दुकानों का बाज़ार और बाजार के ठीक बीच एक छोटी सी मगर
सजी हुई सब्जीमंडी, इतना सा बहुत छोटा सा बाजार वहाँ की जरूरतें पूरी करता था.
यहाँ की जरूरत का सामान पोर्ट ब्लेयर से ही आता है और यहाँ के लोग भी अपनी
अतिरिक्त जरूरतों के लिए पोर्ट ब्लेयर ही जाते हैं.
पूरे हैवलॉक में ऑटो, कार, बस
खूब हैं मगर एक भी दुकान इनको सुधारने की नहीं है. किसी भी तरह की मरम्मत,
रिपेयरिंग के लिए इनको पोर्ट ब्लेयर जाना होता है. एक तरफ से बहुत अधिक किराया
होने के कारण बस, कार, ऑटो वाले गीली अवस्था में किसी यात्री को बिठाते नहीं हैं.
इसका कारण खारा पानी होने के कारण उनके वाहन का जल्द ख़राब होना रहता है.
दिन में अपनी चहलकदमी के बीच
बाजार के कई दुकानदारों से बातचीत की. वहाँ के एक स्कूल में जाकर उनके प्रिंसिपल
से मुलाकात की. उन्होंने सहर्ष, प्रसन्न भाव से हम सबका स्वागत किया. हैवलॉक के
बारे में, वहाँ की शिक्षा व्यवस्था के बारे में जानकारी दी. प्राथमिक स्तर से लेकर
इंटरमीडिएट तक के कुल सात विद्यालय वहाँ स्थित हैं. इनमें हिन्दी, अंग्रेजी और
बंगला माध्यम से शिक्षा दी जाती है. उन्हीं से पता चला कि वर्तमान में हैवलॉक में
लगभग आठ हजार के आसपास आबादी है, जिसमें से वहाँ के मूल निवासी लगभग दो ढाई हजार
होंगे. शेष सभी व्यापारी, नौकरी आदि के सिलसिले में बाहर से आये हुए हैं. धर्म
सम्बन्धी जानकारी ज्ञात करने पर पता चला कि वहाँ हिन्दू, मुस्लिम, बंगाली, मलयालम,
तमिल आदि निवासी हैं. शिव और दुर्गा को पूजने वाले अधिक हैं और हैवलॉक में पाँच
मंदिर हैं. जिनमें एक दुर्गा जी का और एक शिव जी का मंदिर है, जो वहीं बाजार में
स्थित सब्जीमंडी के किनारे बने हैं. उन्हीं के साथ श्री हरि मंदिर भी है. शेष दो
मंदिर राधानगर बीच जाते समय स्थित हैं.
निर्धारित समय पर शिप हैवलॉक
से वापस पोर्ट ब्लेयर को चल पड़ा. आते समय शिप मेम्बर्स से संपर्क बना लेने के कारण
डैक से शुरू हुई यात्रा डैक पर ही समाप्त की. दिल के साफ नागरिकों के दिल में सहज
स्थापना के कारण पूरी यात्रा हँसते-बतियाते बीत गई.
जाते समय जहाँ सूरज चढ़ते रूप
में समुद्री लहरों संग खेल रहा था वहीं वापसी के समय उसका लौटता हुआ स्वरूप दिखाई
दे रहा था. रंग बदलता सूरज अपने साथ-साथ लहरों के रंग को भी बदल दे रहा था.
समुद्री भयावहता कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही थी. छोटी-छोटी मछलियों की
अटखेलियाँ, लहरों का उछलना-कूदना, समुद्री जल का दूध सा सफ़ेद फेन बनाकर साथ-साथ
भागना, जहाज का अथाह समुद्र के ऊपर पूरी मस्ती से भागना सबकुछ अद्भुत और रोमांचक
लग रहा था. इन सबके बीच हैवलॉक की यादों को दिल में संजोकर, वहाँ के नयनाभिराम
दृश्यों को कैमरे में कैद करके वापस पोर्ट ब्लेयर लौट आये.
बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रों से सजा रोचक विवरण..बिटिया को बधाई !
जवाब देंहटाएंऐसा प्रतीत हुआ जैसे इस यात्र में हम भी शामिल हैं,खूबसूरत शब्दों और तस्वीरों के ज़रिये....लाजवाब लेखन हमेशा की तरह।
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