27 जनवरी 2017

संवैधानिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग न होने दें

आज हम सभी के लिए गौरव का दिन है. आज ही के दिन सन 1950 में हमारे संविधान को सम्पूर्ण देश में लागू किया गया. इसके लागू होते ही हमारा देश लोकतान्त्रिक व्यवस्था के साथ-साथ एक गणराज्य के रूप में भी जाना जाने लगा. ये अपने आपमें अद्भुत है कि हमारे देश में केन्द्रीय सत्ता की प्रभुता के साथ-साथ राज्यों की प्रभुता को भी बराबर से स्वीकारा गया है. संविधान निर्माताओं ने केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी पर्याप्त अधिकार दिए. नागरिकों को व्यापक अधिकार प्रदान किये. कर्तव्यों का निर्वहन, मौलिक अधिकारों की रक्षा आदि का सूत्रपात इसी संविधान के द्वारा होना आरम्भ हुआ. संविधान निर्माताओं ने अपने पास असीमित अधिकार होने के बाद भी केंद्र और राज्य के साथ-साथ सामान्य नागरिक को भी पर्याप्त अधिकार, पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान किये जाने की वकालत की थी. वे चाहते तो अधिकारों को सामाजिक रूप से लोकतान्त्रिक न बनाकर उसे भी वंशानुगत अथवा परिवार तक सीमित कर सकते थे. यकीनन उनका उद्देश्य देश के विकास में सभी की भूमिका, सभी नागरिकों की स्वतंत्र भागेदारी करना रहा होगा. इसी कारण से नागरिकों को स्वतंत्रता के साथ जीवन-यापन करने के पर्याप्त अधिकार संविधान निर्माताओं ने संविधान के माध्यम से उपलब्ध कराये हैं.

इधर देखने में आने लगा है कि वर्तमान समय में स्वतन्त्रता, संविधान के नाम पर बहुतेरे नागरिकों द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग होने लगा है. इसके पीछे बहुत से लोग समाज को दोष देना शुरू कर देते हैं. देखा जाये तो समाज समस्याओं से हमेशा से ग्रस्त रहा है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम खुद व्यवस्थाओं के सुचारू रूप से चलने में अपना कितना योगदान दे रहे हैं. गणतन्त्र दिवस के इस अवसर पर बजाय इस बात के कि किसने क्या किया, किसने क्या नहीं किया हम इस बात पर विचार करें कि हमने क्या किया? हम आज जितने अधिक साक्षर हुए हैं, जितने अधिक शक्तिशाली बने हैं उतने ही अधिक वर्ग हमारे आसपास दिख रहे हैं. आज सहज रूप में देखने में आता है कि कोई गाँधी वर्ग में खुद को खड़ा किये हैं, कोई नेहरू वर्ग में, कोई अम्बेडकर वर्ग में. इन वर्गों के द्वारा बजाय सामाजिक चेतना लाने के एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास किये जा रहे हैं. यही कारण है कि आज किसी के लिए हेडगेवार देश तोडने वाले हैं तो किसी को सरदार पटेल की देश भक्ति पर संदेह दिखता है. कोई सरदार भगत सिंह को अपने पाले में शामिल करने की फिराक में दिखता है तो कोई अशफाक को अपने ग्रुप का बताता है. ये स्थिति क्षणिक रूप में किसी को प्रचार भले ही दिला दे किन्तु देश के लिए घातक है. देशवासियों के अलग-अलग गुटों में बंटने का फायदा विरोधियों द्वारा, देश के दुश्मनों द्वारा उठाये जाने की आशंका नजर आती है.


ऐसी स्थिति में हम सभी को विचार करना होगा कि क्या ऐसी स्थिति में वाकई हम संविधान का सम्मान करने की दशा में दिखते हैं? क्या ये स्थितियाँ हमें गणतन्त्र दिवस मनाने की अनुमति देतीं हैं? क्या इस तरह से हम अपनी आजादी दिलाने वाले शहीदों के प्रति सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित कर पाने के अधिकारी हैं? सवाल बहुत से हैं. उनको खोजने के लिए समूचे देश को एक होना पड़ेगा. सभी को वर्ग, जाति, धर्म के तमाम खांचों से बाहर निकल कर देशहित में काम करना होगा. इत्तेफाक से हमारा प्रदेश इस समय चुनावी दौर से गुजर रहा है. किसी भी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के सफल होने के पीछे उसके नागरिकों का, उसके मतदाताओं का बहुत बड़ा योगदान होता है. आइये हम सब मिलजुलकर सकारात्मक रूप से मतदान करने निकलें. लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए, गणतंत्र को सशक्त बनाने के लिए, संविधान के प्रति आस्था को और गहरा करने के लिए स्वच्छ मतदान प्रक्रिया को अपनाएं. एकजुट होकर गणतन्त्र दिवस मनायें. देश को सशक्त बनायें. देशवासियों को सफल बनायें. 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "शेर ए पंजाब की १५२ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत ही बढ़िया article लिखा है आपने। ........Share करने के लिए धन्यवाद। :) :)

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