गाय का माँस पकाने की
अफवाह या फिर सत्यता, इसके प्रत्युत्तर में भीड़ का हमलावर हो जाना. हमलावर भीड़ का
एक व्यक्ति के साथ मारपीट करना और अंततः उसे जान से ख़तम कर देना. ये किसी फिल्म का
अथवा धारावाहिक का हिस्सा नहीं, किसी कहानी का कोई हिस्सा नहीं वरन हमारे देश का
ही एक सच है. ऐसी किसी भी घटना के बाद उस पर धर्म-जाति संदर्भित राजनीति शुरू कर
दी जाती है, जो अपने आपमें अत्यंत शर्मनाक है. कुछ ऐसा ही इखलाक वाले मामले में
किया जा रहा है. भीड़ द्वारा उसकी हत्या किये जाने के बाद से सम्पूर्ण घटनाक्रम को
हिन्दू-मुस्लिम विरोधी बताकर, भाजपा-संघ समर्थित बताकर राजनीति की जा रही है. इसी
राजनीति का परिणाम ये हुआ कि मृत व्यक्ति के परिजनों को दस लाख मुआवजे की राशि
बढ़ते-बढ़ते 45 लाख तक पहुँच गई. इसके साथ ही प्रदेश
सरकार द्वारा इसका भी आश्वासन दिया गया कि किसी एक परिजन को नौकरी भी दी जाएगी. संवेदनात्मक
रूप से किसी भी पीड़ित परिवार के लिए कुछ भी करना सहज स्वीकार्य है किन्तु राजनीति
के चलते, वोट-बैंक के चलते सरकारी स्तर पर ऐसा किया जाना किसी भी रूप में सही नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में इस
तरह की ये पहली घटना है; ऐसा भी नहीं है कि ऐसी किसी भी वारदात में मारे गए सभी
व्यक्तियों को इसी तरह की सरकारी मदद मिलती रही है. ऐसे में स्पष्ट है कि खुद
सरकारी स्तर पर नफरत फ़ैलाने का, आपस में द्वेष बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है.
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इस पूरी घटना को सम्बंधित
क्षेत्र के हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिक माहौल बनाने और उनको
प्रताड़ित करने की तरफ मोड़ा जा रहा है. इसको पुष्ट करने के लिए बार-बार इस बात पर
जोर दिया जा रहा है कि गौमाँस की अफवाह महज इसलिए उड़ाई गई ताकि वहाँ के हिन्दू
मुसलमाओं को मार सकें. सोचने वाली बात है कि क्या वाकई ऐसा था? यदि ऐसा ही होता तो
उस गाँव के अन्य मुस्लिम परिवारों के साथ किसी तरह की मारपीट वहाँ के हिन्दुओं
द्वारा क्यों नहीं की गई? यदि गौमाँस उस व्यक्ति के घर में नहीं पकाया जा रहा था
तो फिर उसके द्वारा दिखाने से मना क्यों किया गया? बहरहाल, ये बातें जाँच का विषय
हैं किन्तु जिस तरह से पूरे घटनाक्रम को हिन्दू-मुस्लिम विभेद से जोड़ा गया वो
अत्यंत निंदनीय है. जो भी इस तरह की बात कर रहा है उसे सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में
इस घटना को देखना होगा. प्रदेश सरकार के अनेकानेक क़दमों से स्पष्ट तौर पर
परिलक्षित होता है कि उसके लिए एक जाति विशेष और एक धर्म विशेष ही प्राथमिकता में
रहते हैं. इस कारण से इस जाति और धर्म के लोगों द्वारा लगातार निरंकुशता का
व्यवहार किया जाने लगता है और ये बात किसी से छिपी भी नहीं है. इसके अलावा पूरे
उत्तर भारत की राजनीति में मुस्लिम वर्ग को हमेशा से वोट-बैंक के रूप में देखा
जाता रहा है. इधर लोकसभा चुनावों में विभिन्न गैर-भाजपाई राजनैतिक दलों द्वारा
बखूबी दुष्प्रचार किया गया कि भाजपा के आने से मुसलमानों को खतरा होगा; मोदी के
प्रधानमंत्री बनने से मुसलमानों के खिलाफ वातावरण बन जाएगा; भाजपा के सत्तासीन
होते ही संघ का एजेंडा काम करने लगेगा. ऐसे में ऐसी किसी भी घटना पर शक की सुई
गैर-भाजपाई राजनैतिक दलों पर भी आकर टिकती है. आखिर किसी मुसलमान के साथ ऐसी वारदात
हो जाने पर सभी राजनैतिक दलों के द्वारा उसके घर-परिवार से मिलने-जुलने का, मुआवजा
राशि का, नौकरी देने का, अन्यान्य तरीके से सहायता देने का काम शुरू हो जाता है.
क्या इसी तरह की चहलकदमी किसी हिन्दू व्यक्ति के मारे जाने पर होती है? ऐसे में
स्पष्ट तौर पर लगता है कि गैर-भाजपाई दल ही प्रदेश में, देश में हिन्दू-मुस्लिम
विरोधी माहौल बनाने का कार्य कर रहे हैं.
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ये आम जनमानस को समझना
होगा कि इस तरह के विवाद से किसी भी वर्ग का लाभ होने वाला नहीं है. ये भी समझना
होगा कि राजनैतिक दलों की सम्पूर्ण सत्ता इस तरह के विवादों के साए में ही
पलती-बढ़ती है. यदि प्रदेश में अथवा सम्पूर्ण देश में हिन्दू और गैर-हिन्दू आपस में सिर्फ और सिर्फ
विभेदकारी स्थिति में, वैमनष्यता में रह रहे होते तो इसी देश-प्रदेश में सदभाव के
उदाहरण देखने को नहीं मिलते. इसी प्रदेश में जहाँ एक तरफ गाय के माँस को पकाए जाने
के चलते एक मुस्लिम व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है, वहीं दूसरी तरफ इसी प्रदेश
में एक मुस्लिम युवक कुँए में गिरी गाय को बचाने के लिए अपनी नमाज बीच में छोड़कर
कुँए में उतर जाता है. इसी प्रदेश में जहाँ मुस्लिम समुदाय द्वारा आपत्ति जताने के
कारण मंदिर से लाउडस्पीकर उतारे जाने का विवाद होता है वहीं इसी प्रदेश में मंदिर
में मुस्लिमों को नमाज अता करने दी जाती है, मंदिर में ही एक मुस्लिम महिला का
प्रसव कराया जाता है. ऐसे एक-दो नहीं अनेक उदाहरण हैं जिनके आलोक में समझा जा सकता
है कि राजनैतिक दलों के द्वारा लगातार कुप्रयास के बाद भी प्रदेश में सदभाव जैसी
स्थिति बनी हुई है. इस सन्दर्भ में इसी सजगता को बनाये रखने की आवश्यकता है.
सरकारी रवैया इस तरह का है जिससे पक्षपात की बू स्पष्ट रूप से आती है, ऐसे में
हिन्दू-मुस्लिम, दोनों पक्षों को अत्यंत सजगता से, धैर्य से काम लेने की जरूरत है.
किसी भी तरह से यदि घटनाओं की लगातार पुनरावृत्ति होती है तो फिर इसका नकारात्मक
प्रभाव समाज पर पड़ता है. उग्र गतिविधियाँ, हिंसक आन्दोलन जनमानस की संपत्ति को ही
नुकसान पहुंचाते हैं. स्कूल, बाजार, कार्यालय प्रभावित होने से जनमानस को ही
समस्या उत्पन्न होती है. दंगाई, फिरकापरस्त, लुटेरे आदि सक्रिय होकर अपना हित
सिद्ध करने लगते हैं और इन सब बातों से किसी का भी भला नहीं होता है.
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विगत कुछ समय से प्रदेश
में इस तरह का माहौल बन रहा है जहाँ एक जरा सी बात से बड़ी से बड़ी घटना होने की
आशंका है. ऐसे माहौल के निर्माण में कहीं न कहीं शासन-प्रशासन की महती भूमिका है. किसी
भी पक्ष के उत्पात करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही किये जाने की
आवश्यकता है, जैसा कि कदापि नहीं किया जा रहा है. वास्तविकता की गहन जाँच किये
बिना सरकारी धन को मुआवजे के रूप में लुटा देना भी समाज में अलगाव पैदा कर रहा है.
एक पक्ष को पूर्वाग्रही रूप से दोषी मानकर उसके खिलाफ कार्यवाही करते जाना भी दूसरे
पक्ष के विरुद्ध वातावरण का निर्माण करता है. शासन-प्रशासन को भी इस बारे में सचेत
होने की, पूर्वाग्रह-रहित होने की जरूरत है. किसी धर्म-जाति को महज वोट-बैंक मानने
से, सत्तालोभ की खातिर वैमनष्यता फैलाने से, उत्तेजक बयानों के द्वारा वर्ग-विशेष
की सहानुभूति लेने से, कोई भी घटना देश-प्रदेश के किसी भी भाग में हो उसके लिए
सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं को, भाजपा को, संघ को, मोदी को आरोपी बना देने से भले ही
क्षणिक लाभ मिल जाए किन्तु कालांतर में इस विषबेल के दुष्प्रभाव समाज को ही झेलने
होंगे, हमारे-आपके नौनिहालों को सहने होंगे, हिन्दू-मुस्लिम दोनों वर्गों को उठाने
होंगे. सँभलना आज ही होगा क्योंकि कल तक बहुत देर हो चुकी होगी.
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, उधर मंगल पर पानी, इधर हैरान हिंदुस्तानी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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