28 जून 2015

आभासी दुनिया में दोहरा चरित्र


नैतिकता, शालीनता, मर्यादा आदि शब्दों के अनुपालन में इंसान किस कदर दोहरे चरित्र के दर्शन करवाता है ये खुद उस इंसान के लिए ही समझना मुश्किल है. कोई एक ही तरह का कार्य उसके लिए नैतिक होता है और दूसरे के द्वारा करने पर उसे उसमें अनैतिकता दिखाई देने लगती है. घर के भीतर के रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा-पहनावा आदि से लेकर सामाजिक क्रियाकलापों तक के निर्वहन में  इंसान द्वारा दोहरे मापदंडों का प्रयोग किया जाता है. किसी भी कदम के लिए उसके द्वारा निर्धारित वर्जनाएँ एक झटके में स्वयं उसी के द्वारा निष्प्रभावी सी कर स्वयं के लिए स्वीकार्य बना ली जाती हैं. समाज में, घर में महिलाओं-पुरुषों के निर्धारित कार्यों, उनके पहनावे, रहन-सहन, अन्य क्रियाकलापों आदि पर दिखने वाले विभेद को एकपल को नजरअंदाज़ कर भी दिया जाए तो भी बहुत कुछ ऐसा है जो पुरुष-पुरुष के क्रियाकलापों में, महिला-महिला के क्रियाकलापों में दोहरे चरित्र को दर्शाता है.
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इस दोहरे चरित्र-निर्वहन को समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सहजता से देखा जा सकता है. सामाजिक आयोजनों में, कार्यक्षेत्र में, परिवार में इस तरह की मानसिकता के चलते ही वाद-विवाद की स्थितियाँ पैदा होती हैं. सामाजिक पटल पर इस तरह के दोहरे चरित्र के लोग पहले सहजता से चिन्हित नहीं किये जा पाते थे और उनकी पहचान छिपी रहने के कारण बहुधा विभ्रम की स्थिति बनी रहती थी. कालांतर में सामाजिक विकास ने तकनीक को विकसित किया, व्यक्ति को अपने आपको प्रदर्शित करने के विविध आयाम विकसित किये और उसका परिणाम अथवा दुष्परिणाम ये हुआ कि सोशल मीडिया पर दोहरे चरित्र के लोगों की भरमार देखने को मिलने लगी. ऐसा नहीं कि सोशल मीडिया के कारण से दोहरे चरित्र के इंसान जन्म लेने लगे, ये फितरत किसी भी इंसान में पहले से विराजमान थी, बस सोशल मीडिया ने उसे सामने ला दिया. इंसान की जिस दोहरी मानसिकता को समझने में वर्षों लग जाया करते थे वे सोशल मीडिया के चलते एक पल में सामने आने लगे. इस तरह की दोहरी मानसिकता वाले लोग अपनी पोस्ट के सहारे, अपने स्टेटस के सहारे, अपनी विविध मुद्राओं में चिपकाई जाने वाली फोटो के सहारे खुद को महान आदर्शवादी, परम सत्यवादी, सद्चरित्र वाला प्रदर्शित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं और यही लोग परदे के पीछे से अपना निकृष्टम, कुंठित, मानसिक दीवालियेपन का चेहरा प्रदर्शित करने लगते हैं. इनमें से बहुत तो इस मानसिकता के होते हैं जो महिलाओं की दृष्टि में भले बनने के चक्कर में सार्वजानिक रूप से महिलाओं को आदर देने वाली पोस्ट लगाते हैं और देर रात महिलाओं के मैसेज बॉक्स में घुस प्रणय निवेदन करने से भी नहीं चूकते. कुछ इस तरह की स्थितियों का भुक्तभोगी पुरुष वर्ग भी होता है जहाँ उसके साथ इस तरह का दोहरा मापदंड महिलाओं द्वारा अपनाया जाता है. महिला-समर्थक बनी ऐसी महिलाएँ पुरुषों को लम्पट होने का, महिला-शोषक होने के साथ-साथ उनके देह के लालची होने तक का आरोप लगाती देखी जा सकती हैं.
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दरअसल देखा जाये तो इस तरह की दोहरी मानसिकता वाले इंसान खुद में न तो पुरुष कहे जाने योग्य हैं और न ही महिला. ऐसी मानसिकता वाले इंसानों का एकमात्र उद्देश्य किसी न किसी रूप में खुद को सामाजिक प्राणी साबित कर सामने वाले का शोषण करना होता है. क्या घर, क्या बाहर इनके लिए पुरुष-महिला दोनों ही खिलौने सदृश्य होते हैं. ऐसी मानसिकता के इंसान महिलाओं को पुरुष-भोगी, तो पुरुषों को स्त्री-देह का भूखा बताने के अतिरिक्त दोनों को समलैंगिक साबित करने से भी नहीं चूकते हैं. यही वे प्राणी होते हैं जो अपने घरों की मासूम बेटियों, बालकों का यौन शोषण करते हैं; यही वे लोग हैं जो सामाजिक परम्पराओं की दुहाई देते हुए पहनावे, रीति-रिवाजों, रहन-सहन पर उंगली उठाकर सामाजिक वैमनष्यता पैदा करते हैं; यही वे लोग होते हैं जो स्त्री-पुरुष की बराबरी का दम भरते हैं किन्तु मौका मिलते ही दोनों का शोषण करने से नहीं चूकते हैं; यही वे इंसान होते हैं जिनके लिए खुद को ईमानदार, आदर्श, नैतिकता का पुतला साबित किया जाता है और इसी चेहरे की आड़ में काले कारनामे किये जाते हैं. वास्तविकता ये है कि इन दोहरी मानसिकता वाले लोगों ने ही समाज का चाल-चलन बिगाड़ दिया है; सामाजिक सौहार्द्र को ख़राब किया है; इंसान-इंसान के बीच गहरी खाई का निर्माण किया है.
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अब जबकि ऐसे लोगों को सोशल मीडिया के कारण से सहजता से चिन्हित कर लिया जा रहा है; इनको अपनी पहचान छिपाए रखना मुश्किल हो गया है तो लोगों का ये कर्तव्य बनता है कि इनका सामाजिक बहिष्कार किया जाये. समाज में, सोशल मीडिया में ऐसे लोगों के दोहरे चेहरे को सबूत के साथ उन सबके सामने लाना आवश्यक है जिनको ऐसे लोगों के दूसरे चेहरे की जानकारी नहीं है. ये सोचकर कि ऐसे लोग महज सोशल मीडिया में सक्रिय हैं; मैसेज बॉक्स में जबरन घुसकर; हाय-हैल्लो के बहाने से अश्लील सन्देश भेजने के और क्या कर लेंगे, हम स्वयं ही कहीं न कहीं इनके अपराध को बढ़ाने का, इनको प्रोत्साहित करने का काम कर रहे हैं. देखा जाये तो सोशल मीडिया ऐसे लोगों के लिए एक तरह की प्रयोगशाला के रूप में कार्य करती है, जहाँ ये लोग अपनी विकृत मानसिकता का, अपनी कुंठित सोच का, अपने दोहरे चरित्र का प्रयोग कर उसकी सफलता-असफलता की जाँच करते हैं. न केवल समाज के लिए वरन अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों के लिए, समाज में फैलने वाले विद्वेष को रोकने के लिए, आपसी वैमनष्यता को दूर करने के लिए ऐसे लोगों का बेनकाब होना तो आवश्यक है ही, इनको सजा मिलनी भी आवश्यक है. अब महज ‘सब चलता है’, ‘जो होगा देखा जायेगा’ सोचकर शांत बैठने की आवश्यकता नहीं क्योंकि ऐसे इंसान न केवल समाज को वरन हमारे घरों को भी दूषित कर रहे हैं. आइये उठ खड़े हों और ऐसे दोहरे चरित्र वालों के चेहरे से उनका नकली चेहरा निकाल कर वास्तविक कलुषित चेहरे से समाज को परिचित करवाएं, इनको दण्डित करवाएं.

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