14 जून 2015

योग पर दुर्योग

जैसे-जैसे 21 जून नजदीक आ रही है वैसे-वैसे उसके विरोध में तेजी आती जा रही है. देखा जाये तो योग दिवस का विरोध पूरी तरह से अतार्किक, निराधार है. योग किसी धर्म विशेष का धार्मिक क्रियाकलाप नहीं है जिसे जबरन किसी दूसरे धर्म, सम्प्रदाय आदि पर थोपा जा रहा हो. योग तो अनादिकाल से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है, जिसके द्वारा शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने की  प्रवृत्तियों का पालन किया जाता रहा है. मगर जिस तरह से इसका विरोध किया जा रहा है उससे ऐसा लगता है जैसे केंद्र सरकार अथवा स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे जबरन लागू करवाना चाह रहे हैं. विरोध करते भारतीय मुसलमानों को जानकर आश्चर्य होगा कि 40 से अधिक मुस्लिम देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया जिनमें अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, बांग्लादेश, यमन, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, सीरिया आदि जैसे देश शामिल हैं. वास्तविकता ये है कि 27 सितम्बर 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने भाषण के दौरान 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की अपील की और संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनकी अपील को गंभीरता से लेते हुए अपने इतिहास के सबसे कम समय (90 दिन) में प्रस्ताव को पूर्ण बहुमत से पारित करके 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाये जाने की अनुमति प्रदान की.
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योग दिवस का विरोध का एक कारण साथ में होने वाला सूर्य नमस्कार भी है. यदि ओबैसी अथवा किसी अन्य धार्मिक नेता की मानें तो न केवल सूर्य वरन प्रकृति के कण-कण को हिन्दू धर्म में देवतुल्य स्थान प्राप्त है. ऐसे में मुसलमान किस-किस के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित करेंगे? क्या वे उस चाँद की इबादत करना बंद कर देंगे जिसे हिन्दू धर्म में पूज्य स्थान प्राप्त है? क्या वे खुली हवा में साँस लेना बंद कर देंगे जिसे वरुण देवता के रूप में हिन्दुओं ने सदैव पूजा है? क्या उस अग्नि से अपना किनारा कर लेंगे जो हिन्दुओं के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक पवित्र रही है? क्या मुसलमान उन वृक्षों की खाद्य सामग्री को नकारने का काम करेंगे जिन्हें हिन्दू धर्म में भगवान मानकर पूजा जाता है? महज सूर्य-चन्द्र के नाम पर नहीं वरन योग दिवस का विरोध मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर किया जा रहा है. चूँकि इस आयोजन में स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा रुचि दिखाई जा रही है इस कारण यही ऐसा बिंदु है जो सम्पूर्ण विरोध को जन्म देता है. कांग्रेस अथवा अनेक मुस्लिम संगठन मोदी के नाम पर मुस्लिम समाज में एक तरह का भय पैदा करना चाहते हैं. वे इस बात को स्थापित करना चाहते हैं कि योग के द्वारा भाजपा अथवा मोदी सम्पूर्ण राष्ट्र को भगवामय कर देना चाहते हैं. ये समझने का विषय है कि यदि योग के द्वारा भगवाकरण का प्रचार-प्रसार किया जाता तो फिर उसको संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अनुमति कैसे मिलती? कैसे मुस्लिम राष्ट्रों की तरफ से प्रस्ताव को समर्थन मिलता?
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विरोधी मुसलमानों की तरह कांग्रेस, राहुल गाँधी को भी समझना होगा कि महज विरोध के लिए विरोध करते रहने से राजनीति में वापसी नहीं की जा सकती है. योग को हिंदुत्व से जोड़कर उसका विरोध करने से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भले ही की जा सकती हो पर इसके दीर्घकालिक परिणाम उनके विरुद्ध ही रहेंगे. किसी भी आयोजन को अतार्किक रूप से हिंदुत्व से जोड़ देने की कवायद करना, केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री मोदी के किसी भी निर्णय को भगवाकरण के लिए उठाया जाने वाला कदम बता देना कांग्रेस की घटिया राजनीति को ही प्रदर्शित करता है. विपक्ष में होने के नाते सरकार के निर्णयों का विरोध करना कांग्रेस की, राहुल गाँधी की राजनीति हो सकती है, उनकी राजनैतिक सक्रियता हो सकती है किन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्धारित कार्यक्रम का विरोध करना वैश्विक स्तर पर उनका अपनी खिल्ली उड़वाने जैसा ही है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का बेवजह का विरोध और उस पर होने वाली राजनीति से कांग्रेस का, मुसलमानों का किसी भी रूप में भला नहीं होने वाला, हाँ, अंतर्राष्ट्रीय फलक पर अवश्य ही वे अपनी नकारात्मक छवि का निर्माण कर रहे हैं.

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