चुनावी मौसम शुरू,
नेताओं के अपने हथकंडे शुरू, नेताओं द्वारा विरोधी नेताओं को फँसाया जाना शुरू. इसी
कड़ी में आजकल सभी मोदी को घेरने में लगे हैं और इस घेरेबंदी में बार-बार उनके ऊपर
गुजरात दंगों का, मुस्लिम टोपी न पहनने का फंदा फेंका जाता है. ये और बात है कि वे
हर बार इस फंदे से बेदाग़ बाहर निकल आते हैं. इधर जबसे भाजपा समर्थकों द्वारा मोदी
लहर जैसी अवधारणा शुरू की गई है, तब से मोदी के बहाने मुस्लिम टोपी की राजनीति
हावी हो गई है. इसके पीछे मोदी का विभिन्न राज्यों में जाने पर वहाँ के पारम्परिक
परिधान में शामिल साफा/पगड़ी/टोपी को पहनना रहा है, साथ ही मौलाना-मौलवियों से
मिलने पर मुस्लिम टोपी को न पहनना भी समूचे विवाद के केंद्र में है.
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आज मुद्दे में सिर्फ
टोपी ही है, तिलक तो इस देश की राजनीति में सिर्फ गरियाने के समय ही याद आया है.
शायद ही कोई भूला होगा ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ जैसा नारा. जहाँ
तक सवाल मोदी के टोपी न पहनने तथा बाकी राज्यों के परम्परागत वस्त्रों को धारण करना
है तो इस बात को पूर्वाग्रहरहित समझना चाहिए कि टोपी किस राज्य का पारम्परिक
परिधान है? मोदी ने अपने सिर पर जिस पारंपरिक परिधान को धारण किया वो किसी धार्मिक
भावना से नहीं वरन उस राज्य की पारम्परिकता के कारण धारण किया. इस जरा सी बात को
महज इसलिए तूल दिया जा रहा है क्योंकि इस देश की राजनीति में हमेशा से मुस्लिम
तुष्टिकरण हावी और प्रभावी रहा है.
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मोदी का टोपी न
पहनना तो सबको दीखता है किन्तु देश के उप राष्ट्रपति महोदय आरती करने से मना करते
हैं तो वो किसी को नहीं खटकता; किसी मुस्लिम नेता ने आजतक तिलक लगाकर अपने आपको
सामने नहीं रखा किन्तु ये किसी को नहीं खटका; दरगाहों-मस्जिदों-मजारों में जाकर
इबादत करने वाले हिन्दुओं के साथ खड़े होकर इन मुस्लिम नेताओं ने, मौलानानों ने,
मौलवियों ने माँ दुर्गा के पंडाल में भजन नहीं गाए हैं तो ये किसी विवाद की जड़
नहीं बना. दरअसल यहाँ पूरे विवाद में न टोपी है और न ही मोदी वरन पूरे विवाद के
पीछे मुस्लिम वोट-बैंक की राजनीति है. कांग्रेस के हाथों से पारम्परिक मुस्लिम वोट
सरक चुका है यदि ऐसा न होता तो बुखारी से अपील करवाने के लिए सोनिया को सामने न
आना होता. मुस्लिमों की एकमात्र संरक्षक बने होने का दावा करने वाली सपा से भी
मुसलमान छिटकता जा रहा है क्योंकि जिस अयोध्या विवाद, बाबरी मस्जिद का नाम लेकर
सपा मुस्लिमों के वोट झटकती थी, उस जन्मभूमि के सम्बन्ध में इलाहाबाद उच्च
न्यायालय अपना फैसला सुना चुकी है, जो कम से कम बाबरी ढांचे का समर्थन कर रहे मुस्लिमों
के पक्ष में नहीं रहा. इससे अब सपा के पास भी कोई सब्जबाग नहीं है दिखाने को, तभी
उसके मुखिया द्वारा बार-बार कारसेवकों पर चलवाई गोलियों की याद दिलानी पड़ रही है.
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मोदी के
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनते ही गुजरात का विकास इन मुस्लिम रहनुमाओं को याद
आने लगा है, जो इनकी नींद भी हराम किये है. जिस दंगे की बात कर-करके ये टोपी मामला
उछलते रहते हैं वे जानते हैं कि विगत १२ वर्षों से गुजरात अमन-चैन में रह रहा है.
जिस मोदी को सांप्रदायिक बताया जा रहा है उसी के शासन में मुसलमान भी उन्नति कर
रहा है. बिना विकास के तीन-तीन बार जीतना यदि सिर्फ किसी वोट-बैंक के द्वारा संभव
होता तो उत्तर प्रदेश की सत्ता बारम्बार अदल-बदल न करती. टोपी और तिलक का विवाद
खड़ा करने वाले समझ लें कि इस देश में तिलक कभी राजनैतिक वजूद में नहीं रहा सो इसका
कोई विवाद ही नहीं, हाँ जो लोग मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करना चाहते हैं,
साम्प्रदायिकता के नाम पर माहौल बिगाड़ना चाहते हैं, विवाद के सहारे
मंहगाई-भ्रष्टाचार-अपराध के मुद्दों को दबा देना चाहते हैं, टोपी उन्हीं के द्वारा
उत्पन्न विवाद है, टोपी उन्हीं का राजनैतिक वजूद है.
. (चित्र गूगल छवियों से साभार)
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