चलिये, नंदी महोदय ने
आरक्षण का एक और पहलू सामने रख दिया। उनके बयान के बाद भ्रष्टाचार की वर्गवार
स्थिति पर वर्तमान में भले ही एक अलग प्रकार का माहौल बना दिख रहा हो, वर्ग विशेष में रोष का वातावरण दिख रहा हो किन्तु इस विषय
पर एक प्रकार की बहस की गुंजाइश दिखाई देती है। पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के द्वारा भ्रष्टाचार में लिप्त
होने के बयान के द्वारा प्रख्यात समाजशास्त्री ने समाज की उस नब्ज पर हाथ रख दिया
है जिसे सभी देख-सुन-समझ रहे थे किन्तु किसी न किसी कारण से स्वयं को शान्त रखे
हुए थे। इस ज्वलंत विषय पर बोलने का परिणाम का परिणाम तुरन्त दिखाई भी दिया; आशीष नन्दी पर गैर-जमानती धाराएं लगाई गईं, उनकी गिरफ्तारी की मांग उठने लगी, मायावती सहित तमाम लोगों ने उन पर एस0सी0/एस0टी0 एक्ट लगाने की बात तक कर दी। सोचने वाली बात यह है कि क्या
वाकई नंदी का बयान इस तरह की आपराधिक प्रवृत्ति का है कि उन पर गैर-जमानती धाराएं
लगाई जाती,
उन पर एस0सी0/एस0टी0 एक्ट लगाये जाने की बात उठाई जाती? दरअसल उन्होंने उस वर्ग पर चोट करने का साहस उठाया है जो
विगत कई वर्षों से तमाम सारे कानूनों के सहारे से अपनी निरंकुशता को बढ़ाने में लगा
हुआ है।
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यह बात कई लोगों को नागवार गुजर सकती है पर मीडिया से, सामाजिक क्षेत्र से और अध्यापन कार्य से जुड़े होने के कारण
लेखक को इस वर्ग से सीधे-सीधे जुड़ने का अवसर मिलता रहता है। इसके अलावा कुछ
मित्रों का भी इन वर्गों से आना होता है, जिससे भी उनकी मानसिकता का पता आसानी से चलता रहता है। यहां किसी भी रूप में
यह साबित करने का प्रयास नहीं है कि देश में हो रहे भ्रष्टाचार के लिए सिर्फ और
सिर्फ यही वर्ग दोषी है पर इस बात से खुद इस वर्ग के लोगों को भी गुरेज नहीं होगा
कि भ्रष्टाचार करने में ये वर्ग भी किसी रूप में पीछे नहीं हैं। विगत कुछ वर्षों
में आई जागरूकता,
सामाजिक-राजनैतिक सक्रियता ने इन वर्गों के लोगों को उच्च
पदस्थ रूप में स्थापित भी किया है; इसके अलावा कानूनी रूप से शासन-प्रशासन की सहायता मिलने से इन वर्गों के लोगों
को सामान्यजन से अधिक प्राथमिकता प्राप्त हुई है। शिक्षा, रोजगार, कानूनी सहायता
आदि में इन वर्गों को कहीं अधिक ही प्रदान किया जा रहा है और हर आने वाले पल में
और अधिक देने की बात उच्च सदन से की जाती रही है। समाज में इस तरह की प्राथमिकता
मिलने के कारण कहीं न कहीं इन वर्गों के लोग निरंकुश रूप से अपना व्यवहार करते
दिखने लगे हैं।
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इस बात को यहां तर्क-वितर्क का विषय भले ही बना लिया जाये
पर कोई भी इस बात से इंकार नहीं करेगा कि समाज में प्रतिस्थापित हो चुके दलित/एस0सी0/एस0टी0 वर्ग के अधिसंख्यक लोगों द्वारा विद्वेष की भावना से कार्य
किया जा रहा है। विगत कई वर्षों से गांवों में जिस तरह से एस0सी0/एस0टी0 एक्ट का दुरुपयोग हुआ है, उससे इस बात को आसानी से समझा जा सकता है। लेखक ने स्वयं ही अपनी मित्र-मण्डली
में,
अपने परिचितों में शामिल इन वर्गों के लोगों द्वारा एक
विशेष प्रकार का शक्ति प्रदर्शन आजमाने की अप्रत्यक्ष चुनौती सी देते देखी है।
कानून से मिलने वाली प्राथमिकता, सत्ता, शासन, प्रशासन से
मिलने वाली प्राथमिकता के कारण आये दिन इन वर्गों के अधिसंख्यक लोगों द्वारा कई
तरह से शक्ति प्रदर्शन की चुनौती सी समाज में प्रदर्शित भी की जाती रहती है। ऐसे
शक्ति सम्पन्न,
कानूनी सहायता प्राप्त वर्गों द्वारा अपने पदों का, शक्ति का, सत्ता का
दुरुपयोग भी आसानी से किया जाना क्या सम्भव नहीं दिखता है? इसके अलावा ऐसा भी नहीं है कि देश में भ्रष्टाचार करने का
ठेका सिर्फ और सिर्फ सामान्य वर्ग के लोगों ने ले रखा है। ऐसा भी नहीं है कि
भ्रष्टाचार में पिछड़ा,
एस0सी/एस0टी0 वर्ग के लोगों का कोई हाथ ही नहीं रहा है। इन वर्गों
द्वारा भ्रष्टाचार का सर्वोत्तम उदाहरण गांवों में मिड-डे मील में, मनरेगा में आसानी से देखने को मिलता है।
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समाजशास्त्री की बात को जिस तरह से तूल दिया जा रहा है वह
समाज में तमाम सारी बनी खाइयों के बीच एक और खाई बनाने का कार्य करेगा। अच्छा होता
कि उनके बयान को भले ही आधार न बनाया जाता पर कम से कम इस सम्भावना पर भी विचार
किया जाता। स्वयं इन वर्गों को और इन वर्गों के हिमायतियों को विचार करना चाहिए कि
जो बयान आज एक समाजशास्त्री के द्वारा दिया गया, कल को वह आरोप बनकर समाज के अधिसंख्यक वर्ग के मुंह पर न आ जाये। इस पर विचार
करने के बजाय इन वर्गों के लोग अनर्गल रूप से विवाद को बनाये रखना चाहते हैं
क्योंकि उन्हें भली-भांति ज्ञात है कि उनकी रक्षा के लिए सत्ताधारी हैं, कानून हैं, तमाम सारे
एक्ट हैं,
तमाम सारे आयोग हैं।
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jab samaj ke har ksetra me aareakshan hai to bhrastachar me aarakshan kaise nahi ho sakata is me bura manane ki kya baat hai
जवाब देंहटाएंmanniya a raja madhu koda va bahan ji ke baare me kya kah rahe hai ye log