08 अक्तूबर 2010

माँ के नाम पर कारोबार शुरू


आज से नवरात्रि का पावन पर्व प्रारम्भ हो रहा है। शहर के लगभग हर भाग में मां दुर्गा की झांकी लगाई जा रही है। एक नजरिये से देखा जाये तो यह अच्छी बात है कि लोगों में धर्म के प्रति एक प्रकार की सकारात्मकता का विकास हो रहा है।

चित्र गूगल छवियों से साभार

इस विकास के पीछे की सोच पर दृष्टिपात किया जाता है तो इस धार्मिकता के पीछे की असलियत सामने आती है। हमारे शहर में विगत कई वर्षों से झांकियों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। किसी समय में पूरे शहर में दो-तीन प्रमुख स्थानों पर मां दुर्गा की झांकी लगती थीं जिनकी संख्या आज बढ़कर अर्द्धशतक के आसपास पहुंच रही है।

इन झांकियों के साथ ही एक दूसरे प्रकार की संस्कृति ने भी जन्म ले लिया है। इन झांकियों के रखरखाव और संचालन आदि का पूरा काम युवा वर्ग के लोगों द्वारा किया जा रहा है। जिस युवा वर्ग को किसी न किसी रचनात्मक कार्य में लगे होना चाहिए था वह नौ दिनों तक भजन गाते, प्रसाद बांटते, झालर बांधते और अन्य दूसरी प्रकार की व्यवस्थाओं को सम्पन्न करते दिखाई देते हैं। इन कामों के अलावा एक और काम भी मुख्य रूप से इस युवा वर्ग के द्वारा किया जा रहा है और वह है जोर-जबरदस्ती से, डरा-धमका कर झांकी के नाम पर चंदा बसूल करना।

आज से लगभग छह वर्ष पूर्व हमारे एक परिचित ने तीन स्थानों पर झांकी सजवाई थी। एक दिन उनसे मुलाकात हुई थी तो हमने यूं ही उनकी झांकियों के बारे में पूछ लिया। उस समय उन्होंने जो बताया वह हैरान करने वाला था। उन्होंने बताया कि उनको तीन झांकियां लगवाने से कुल बीस हजार रुपये का लाभ हुआ अर्थात सारे खर्चों को निकाल देने के बाद भी उन्होंने तीन झांकियों से बीस हजार रुपये बना लिये थे। इससे उत्साहित होकर उन्होंने कहा था कि वे आगे आने वाले समय में पूरे शहर में दस-बारह जगह पर झांकियां लगवायेंगे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वे महाशय इस समय शहर की लगभग बीस झांकियों में अपना सकारात्मक हिस्सा रखते हैं।

इस व्यावसायिक दृष्टिकोण के अलावा अन्य युवाओं को भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अच्छा मंच प्राप्त हो जाता है। इसका अर्थ आप समझ ही रहे होंगे, कहने अथवा समझाने की आवश्यकता नहीं है। युवा वर्ग का इस तरह की व्यावसायिक सोच रखने का जानकर दुख तो होता ही है साथ ही कष्ट भी होता है कि हम कैसे धर्म के नाम पर कारोबार करना शुरू कर देते हैं। पावनता के नाम पर किस तरह खिलवाड़ करके लोगों की भावनाओं का मजाक उड़ाया जा रहा है और मां के नाम का कारोबार किया जा रहा है।


11 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसी सोच दुखद तो है...

    या देवी सर्व भूतेषु सर्व रूपेण संस्थिता |
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||

    -नव-रात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं-

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  2. ये भी तो एक खेल है सर जी.
    राकेश कुमार

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  3. ये भी तो एक खेल है सर जी.
    राकेश कुमार

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  4. ऐसी सोच दुखद तो है...

    या देवी सर्व भूतेषु सर्व रूपेण संस्थिता |
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||

    -नव-रात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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  5. आज अभी ये तुम्हारी दूसरी पोस्ट देखि, ये भी सही कहा है. युवाओं को आजकल इस तरह के काम में ज्यादा मजा आने लगा है. सब कुछ मिल जाता है आसानी से. माँ के नाम पर सब क्षमा कर देते हैं.

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  6. आज अभी ये तुम्हारी दूसरी पोस्ट देखि, ये भी सही कहा है. युवाओं को आजकल इस तरह के काम में ज्यादा मजा आने लगा है. सब कुछ मिल जाता है आसानी से. माँ के नाम पर सब क्षमा कर देते हैं.

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  7. sir ji abhi kuchh der pahle aapki khelgaon ki post dekhi aur ab ye, kya khoob kahaa hai.
    aap samajik muddon par apni bebak raay dete hain, ise vistar se kisi blog par diya karen. achcha rahega.
    rakesh kumar

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  8. sir ji abhi kuchh der pahle aapki khelgaon ki post dekhi aur ab ye, kya khoob kahaa hai.
    aap samajik muddon par apni bebak raay dete hain, ise vistar se kisi blog par diya karen. achcha rahega.
    rakesh kumar

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  9. कोई बात नहीं.......... देखो मेहनत से ही तो रुपया कम रहे हैं.

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