लोगों का राम-राम करते-करते और अल्लाह-अल्लाह करते हुए आज का दिन निकल गया। कल 24 की चिन्ता सभी को खाये जा रही थी, हालातों की बिगड़ने वाली सम्भावना को देखते हुए राशन को भी लोगों द्वारा जमा किया जाने लगा था। इन सब आशंकाओं और शंकाओं के बीच खबर आई कि फैसला 28 तक टाला गया तो लोगों ने राहत की सांस ली।
अब धड़कनें 24 के बजाय 28 के लिए धड़कनी शुरू हो जायेंगीं, राशन उस दिन के हिसाब से जमा होना शुरू हो जायेगा।
अदालत का फैसला क्या होगा इस पर आम राय बनने लगी है पर देखा जाये तो इतने विस्तार से जिन बिन्दुओं का समावेश इस मामले में किया गया है उससे फैसले को पूरी तौर पर देख पाना आम आदमी के लिए सम्भव ही नहीं। उसको तो फैसले के बाद वही पता चलेगा जो मीडिया अपने विश्लेषण के द्वारा पेश करेगा। इस बिन्दु पर आकर ही किसी भी गड़बड़ी, किसी भी हंगामे की, किसी भी प्रकार के दंगे की स्थिति बनती है।
मीडिया के पहलुओं को बताने से पहले एक ताजा उदाहरण आप सभी को याद ही होगा-आरुषि हत्या का मामला। इस पर मीडिया के सभी अंगों ने इस तरह से रिपोर्टिंग की जैसे वे कोई जासूस अथवा किसी खुफिया विभाग के अधिकारी हों। तमाम दृष्टिकोणों के साथ, कैमरे के तमाम सारे कोणों के द्वारा, काल्पनिक रूप से वैसा ही माहौल बनाकर आरुषि मामले में अपनी व्याख्या करने के बाद मीडिया ने जो दिखाया आज मामला उससे कहीं उलट दिख रहा है।
बहरहाल मामला आरुषि कांड का नहीं, मीडिया की जागरूकता का है। जबसे इस बात की चर्चा आई है कि अदालत अयोध्या-बाबरी पर अपना फैसला सुनाने वाली है तबसे हमें सीधे-सीधे जो स्थिति दिखाई दी उसके अनुसार हिन्दू-मुस्लिम भले ही किसी तरह का उत्पात न करें किन्तु मीडिया अवश्य ही दंगा करवा देने की स्थिति में है।
रोज ही इस मुद्दे पर कोई न कोई विश्लेषण, किसी न किसी तरह का शिगूफा पेश करके भावनाओं को भड़काने की हालत पैदा कर देना आदि कुछ मीडिया के द्वारा होता आ रहा है। माना कि इस बदलती और तेज रफ्तार जिन्दगी में मीडिया के पास तेजी से दिखाने के लिए कुछ भी खास नहीं है पर कम से कम देशहित में कुछ तो संयम होना ही चाहिए।
सरकारी प्रयास किये जा रहे हैं कि कोई भी गड़बड़ी की स्थिति न आने पाये। इस विषय पर बात करने वालों को भी पकड़ा जा रहा है, इस बिन्दु पर ऐसे लोगों को भी निरुद्ध किया जा रहा है जिनका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं और न ही वे किसी तरह से भावनाओं को भड़काने का काम करते रहे हैं किन्तु मीडिया एकदम खुला होकर घूम रहा है। सरकारी अमला इनके ऊपर किसी तरह की भी अंकुश नहीं लगा रहा है।
देखा जाये तो आज मीडिया सामाजिक सरोकारों को भुलाकर सिर्फ और सिर्फ व्यवसाय के रूप में काम कर रहा है। सरकारी स्तर पर इस तरह के विषयों पर मीडिया के ऊपर भी अंकुश लगना चाहिए क्योंकि मीडिया तो स्वयं देशहित में विचार करने से रही। उसे तो मालूम ही नहीं कि उसका कौन सा कदम देशहित में है और किस कदम से समाज में नफरत फैल जायेगी।
मुम्बई का हमला और मीडिया की कारस्तानी सभी को याद होगी। ठीक इसी तरह से इस विषय पर भी हाल है। अदालत तो फैसला देगी किन्तु उसको विश्लेषित रूप में मीडिया ही जनता के बीच पहुँचायेगा। इसमें जो तेल-नमक-मिर्च होगा वहीं दंगों को पैदा करने का काम करेगा।
सरकारों को, शासन-प्रशासन को समझना होगा कि दो-चार मैसेज, दो-चार फोन, दो-चार लोगों की बातें कुछ लोगों तक ही सीमित हैं किन्तु मीडिया के द्वारा किया गया (कुतर्की) विश्लेषण समूचा जनमानस एक बार में देखता और आत्मसात करता है।
समूची बात का सार यही है कि मीडिया को इस विषय पर किसी भी तरह की रिपोर्टिंग करने से रोका जाये। कुछ भी दिखाने-छापने से रोका जाये अन्यथा की स्थिति में फैसले के प्रत्युत्तर में हालात बिगड़ते हों अथवा न बिगड़ते हों मीडिया जरूर अपने कदमों से हालात बिगड़वा देगी।
सूत्रवाक्य में कहा जाये तो हिन्दू-मुस्लिम दंगा न भी होता हो किन्तु मीडिया के क्रियाकलाप अवश्य ही दंगा करवा देंगे।
सार्थक पोस्ट ...पहले ही से दंगे का माहौल बनाये दे रहे हैं ..
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा , चारों तरफ यही सुनाई दे रहा है लेकिन कौन क्या कर रहा है या करने वाला है इसकी कोई खबर नहीं है. आज फैसले की तारीख बढ़ने से पहले ही सब लोग खाने पीने की चीजों के संग्रह की बात कर रहे थे. ये दंगा करवाने वाले कौन है? इस हवा को उड़ने वाले कौन है? ये हमको भी पाता है और उनको भी. ऐसे लोगों पर हमेशा दृष्टिरखनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंsir ji inse to ye hi bachayen. media ab wo nahin jo kabhi huaa karta tha.
जवाब देंहटाएंrakesh kumar
sir ji inse to ye hi bachayen. media ab wo nahin jo kabhi huaa karta tha.
जवाब देंहटाएंrakesh kumar
jo na ho sab kam hai. danga to nahin hoga han media ko maja jaroor aayega yadi dangaa ho jaye.
जवाब देंहटाएंहिन्दू-मुस्लिम भले ही किसी तरह का उत्पात न करें किन्तु मीडिया अवश्य ही दंगा करवा देने की स्थिति में है।
जवाब देंहटाएंsach keha hai...
ये मीडिया वाले तो खैर "(असंसदीय शब्द)" हैं ही, हमारे यहाँ के नेता भी "(असंसदीय शब्द)" हैं, अफ़सर तो खैर "(असंसदीय शब्द)" थे ही… अब तो जनता भी "(असंसदीय शब्द)" हो चुकी है… :) :) :)
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने, आखिर उन्हें भी अपनी दुकान चलानी है। :)
जवाब देंहटाएंसही लिखा आपने
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