06 जुलाई 2010

लड़कियों को देखें तो लोफर-लफंगे और लड़कों को देखें तो समलैंगिक




इन दिनों तो लड़कों को बहुत ही संकट की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे के कारणों को देखा तो उनका लड़का होना ही समझ में आया। किसी समय में महिलाएँ स्वयं को अगले जनम मोहे बिटिया कीजो का सूत्रवाक्य कह कर भगवान से महिला जन्म से मुक्ति पाने की बात कर लिया करतीं थीं, इस जनम में लड़के कह रहे हैं कि अगले जनम मोहे बेटवा कीजो।


(चित्र साभार गूगल छवियों से)

इस कहने का कारण लड़कों का अपनी परेशानी और समाज के अन्य दूसरे त्रस्त लड़कों का परेशान होना भी है। इधर मीडिया ने एक ऑपरेशन के द्वारा दिखाया कि लड़के किस तरह से लड़कियों को घूरा करते हैं। विभिन्न कोण से, विभिन्न मुद्राओं में, विभिन्न स्थलों से लड़कों द्वारा लड़कियों को देखने-घूरने को कैमरे में कैद किया गया।

लड़के तो बस पकड़े जाने के बाद अपना मुँह छिपाते ही घूमे। हाय रे जमाना, हाय रे मीडिया, हाय रे कैमरा, अब लड़के मस्ती में, खुले आम तफरी भी नहीं कर पायेंगे। लड़कियों को घूरने के चक्कर में बेचारे लोफर, बेशर्म, बदतमीज, बेहया, लफंगे आदि-आदि असंवैधानिक शब्दों से विभूषित किये गये।

इतना ही होता तो बेचारे लड़के कुछ न कुछ सब्र कर लेते। सबने मिल कर योजना बनाई कि आज से समाज हित में, स्वयं लड़कों की इज्जत की खातिर, परिवार के हितार्थ लड़कियों को घूरना बन्द। लड़कों ने समवेत स्वर में इस प्रस्ताव को पास करके लड़कियों को कहीं भी घूरना बन्द कर दिया। बाजार, कॉलेज, मॉल, कक्षा, रेलवेस्टेशन, बस स्टेशन अथवा अन्या सभी वे जगहें जहाँ लड़कियाँ दिखाई पड़ी लड़कों ने उन्हें किसी भी तरह से नहीं घूरा और न ही देखा।

लड़के सुधरते नजर आये। लड़को ने सिर्फ अपने दोस्तों को, अपनी मंडली को, लड़कों ने लड़कों को ही देखना, घूरना शुरू कर दिया। अब कोई भी जगह हो, कैसी भी स्थिति हो, कैसी भी मुद्रा हो लड़कों ने बस लड़कों को ही देखा और घूरा। लड़कियाँ इनकी नजरों के वार से बचीं पर बेचारे लड़के। लड़के तो बेचारे ही हैं और सदा से ही रहे हैं सो इस घटनाक्रम के बाद भी लफंगे, लोफर, बेशर्म जैसे आभूषणों से नहीं बच सके।

ये सब आभूषण लड़कों के लिए ही बने थे, बने हैं तो कैसे इनसे वंचित कर दिया जाता? समाज में खलबली मच गई कि लड़कों ने लड़कियों को देखना-घूरना बन्द कर दिया तो लड़कों को कैसे ये आभूषण वितरित किये जायें? समाज में खलबली की स्थिति बहुत दिनों तक नहीं रही, लड़कों ने लड़कों को देखना-घूरना शुरू किया तो लोगों की जुबान पर एक ही गाना उभर कर आया आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।

लड़कों के अस्तित्व पर, इज्जत-आबरू पर फिर संकट आ खड़ा हुआ। अबकी उन्हें संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा। माता-पिता ने बहू आने की संकल्पना को समाप्त होते देखा। लड़कियों के घर-परिवार वालों ने अपने दामाद की कमी को महसूस किया। समलैंगिकों ने अपने समुदाय को और विस्तार मिलने की प्रत्याशा में खुशी का इजहार किया।

इन सबसे हुआ यह कि लड़कों को फिर से उनके लिए प्रचलित और सम्मानित शब्दों-लोफर, लफंगे, बेशर्म, बेहया- के साथ-साथ समलैंगिक जैसे शब्द से भी जाना-पहचाना जाने लगा। बेचारे लड़के अब किसे देखें और घूरें? निगाहों के सामने कोई आ जाये तो क्या करें? लगता है कि अब उन्हें अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर ही निकलना पड़ेगा। यही एक रास्ता है जो उन्हें लोफर, लफंगा, बदमाश, बेशर्म और इससे भी आगे बढ़कर समलैंगिक की शब्दावली से बाहर ला सकता है। मदद करो हे प्रभु, मदद करो- अगले जनम (इस जनम भी बदल सको तो बदल दो) मोहे बेटवा कीजो।


12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद उम्दा व्यंग्य ! पढ़ कर मजा आ गया !

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  2. लड़कों का दर्द समझने वाले बहुत कम हैं ,आपने उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है ,बधाई
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  3. बहुत दिनों बाद तुम्हारी कलम से व्यंग्य की धार देखने को मिली. इसे बराबर लिखा करो, शुरू से ही व्यंग्य पर अच्छी पकड़ थी...लिखते रहो.
    खुश रहो, आशीर्वाद

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  4. बहुत दिनों बाद तुम्हारी कलम से व्यंग्य की धार देखने को मिली. इसे बराबर लिखा करो, शुरू से ही व्यंग्य पर अच्छी पकड़ थी...लिखते रहो.
    खुश रहो, आशीर्वाद

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  5. पुरनियों ने इसी लिए कहा था - नज़रें नीची रखा करो।
    मैं तो उस दिन की कल्पना कर रहा हूँ कि लड़के नज़रें नीची किए गली से गुजर रहे हैं और स्कूटी पर बैठी "लोफर, बेशर्म, बदतमीज, बेहया, लफंगी" छोरियाँ मार सीटी, मार कमेंट दनादन पास किए जा रही हैं।

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  6. chalo, ab fursat hui. na dekho na seeti maro.
    jay-jay

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  7. हा हा हा
    कुमारेंद्र भाइ ये तो एक तरफ़ कुंआ और एक तरफ़ खाई वाली बात हो गयी।

    उम्दा व्यंग है।

    आभार

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  8. bahut sateek baat ki aapne
    aaj ki ladkiyan to baap re baap
    unhen aur unke karyon ko to dekh bade bade lafange sharma jayen

    bahut khoob

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  9. सत्यानाश हो इस ग्लोबलाईजेशन का जो हर कोई समलिंगी,गे, से वाकिफ हो गया................... और हम जो अपने परम मित्रों के साथ हाथों में हाथ डाले या कोई मित्र हमसे कद में लम्बा हुआ तो हमारे काँधे पे हाथ धरे बतियाते चलते थे,>>>>>>>>>> अब चल के बता दो>>>>>>> फट से कोई कह देगा>>>>>>> देखो गे जा रहे................

    बेहद उम्दा व्यंग्य ! पढ़ कर मजा आ गया !

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