पिछले
दो दिन में फिल्म इंडस्ट्री के दो नामचीन और मशहूर चेहरे दुनिया को अलविदा कह गए. पहले
इरफ़ान खान और फिर ऋषि कपूर का जाना अपने-अपने क्षेत्र में एक खालीपन का एहसास अवश्य
कराएगा. ऋषि कपूर के पिता राजकपूर की फिल्म का एक डायलाग है शो मस्ट गो ऑन. ये
सही है. दुनिया किसी के जाने से कभी रुका नहीं करती. किसी के जाने से खाली हुई जगह
भले ही उसी रूप में न भरी जा सके मगर किसी न किसी रूप में उसी की तरह से भरने की
कोशिश अवश्य वहाँ होने लगती है.
कोरोना
महामारी के इस दौर में जबकि सोशल मीडिया पूरी तरह से इसी बीमारी की गिरफ्त में दिख
रहा है, सुबह से लेकर देर रात तक बस कोरोना की चर्चा दिखाई दे रही है तब इन दो
कलाकारों के बारे में बराबर लिखा जाना इनकी शोहरत को दर्शाता है. यहीं सवाल उठता
है कि क्या वाकई इनकी शोहरत या फिर इनके चेहरे का, इनका चमकते परदे पर दिखाई देना?
इसमें कोई दोराय नहीं कि इन दोनों कलाकारों का अभिनय के क्षेत्र में अपना अलग
स्थान है. दोनों ही अपनी तरफ से अलग तरह के अभिनय के लिए जाने जाते रहे हैं. इसमें
एक इरफ़ान खान ने जहाँ अपनी मेहनत से अभिनय जगत में अपनी पहचान बनाई वहीं ऋषि कपूर
खानदानी अभिनय क्षेत्र से जुड़े होने के बाद भी मेहनत करते दिखाई देते थे.
बहरहाल,
चर्चा ये नहीं कि कौन मेहनत कर रहा था, कौन नहीं? कौन किस तरह का अभिनय करता था,
कौन दूसरे तरह का. चर्चा इस बात की कि शोहरत के लिए, नाम के लिए जितना
महत्त्वपूर्ण मेहनत करना, कार्य करना है उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस माध्यम का है
जो आपको जनसामान्य के बीच लेकर जाता है. इसमें दृश्य माध्यम का बहुत बड़ा हाथ है. फिल्मों
ने, टीवी ने फ़िल्मी कलाकारों को घर-घर में लोगों के बीच पहुँचा दिया है. ऐसे में
सर्वसुलभ माध्यम के चलते प्रसिद्धि सहज, सरल हो जाती है. समाज में इन फ़िल्मी
कलाकारों के अलावा भी बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो वास्तविक रूप में जमीनी काम कर
रहे हैं, समाजोपयोगी कार्य कर रहे हैं, सबके हितार्थ कार्य कर रहे हैं मगर उनको
ऐसी प्रसिद्धि नहीं मिल पाती है, जितनी कि किसी फ़िल्मी कलाकार को मिल जाती है.
यहाँ
आकर सवाल उठता है कि आखिर इसका जिम्मेवार कौन? इसका सबसे सरल और सहज जवाब है,
सरकार. है न? आखिर किसी भी स्थिति की जटिलता से बाहर आने का सबसे आसान रास्ता होता
है किसी भी स्थिति के लिए सरकार को जिम्मेवार बता देना. हम अपने आसपास के वास्तविक
नायक-नायिकाओं को सामने लाने के प्रति संकुचित मानसिकता अपनाये होते हैं. उनको
किसी माध्यम से चमकते परदे पर लाये जाने का काम नहीं किया जाता है. सरकारी,
गैर-सरकारी माध्यम, मंच भी ऐसे लोगों को सामने लाने का काम करते हैं जो पहले से
किसी न किसी परदे की शोभा बने हुए हैं.
यहाँ
कहने का आशय यह नहीं कि इन कलाकारों के प्रति सम्मान प्रदर्शित न किया जाये, ऐसा
भी नहीं कि इनको इज्जत न दी जाये मगर इनके साथ-साथ उनको भी सबके सामने लाने का काम
किया जाना चाहिए जो वास्तविक रूप से हमारे रोल मॉडल बन सकते हैं.
बिल्कुल अलग नज़रिया रखा आपने । इस विषय पर मैने इस तरह से नहीं सोचा था कभी । सार्थक चिंतन ।
जवाब देंहटाएंजी, इस पर हमने एक पेपर लिखा था, अपने शहर में एक छोटा सा सर्वे करके। छह, सात सवाल थे जो बुद्धिजीवी वर्ग से आने वालों से पूछे थे। बहुतायत लोग बड़े साहित्यकार को नहीं जान रहे थे मगर सी ग्रेड फिल्म के हीरो हीरोइन को जान रहे थे।
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