19 नवंबर 2023

क्रिकेट को लेकर दिमागी उलझन न पालें

पिछले कई दिनों से बहुसंख्यक भारतीय जनमानस पर चढ़ा क्रिकेट बुखार बिना किसी दवाई के आज उतर गया. विश्वकप के इस फाइनल में यदि भारतीय क्रिकेट टीम की जीत होती तो यह बुखार सिर चढ़कर बहुत दिनों तक समूचे भारत को पागल किये रहता. इस पागलपन से बचने का हाल-फिलहाल तो कोई उपाय नजर आता नहीं है क्योंकि अब वो समय नहीं रहा जबकि क्रिकेट के मैच यदा-कदा हुआ करते थे. अब तो हर दूसरे-चौथे दिन किसी न किसी प्रतियोगिता का आयोजन होता रहता है और लगभग पूरे साल क्रिकेट का पागलपन, बुखार बहुतायत लोगों के सिर चढ़कर बोलता है. इस बुखार में एक जीत जहाँ खिलाड़ी को भगवान बना देती है वहीं अगले ही दिन एक हार उसी खिलाड़ी को राक्षस भी बनाती है. ऐसी स्थिति को सिवाय पागलपन के और कुछ नहीं कहा जा सकता है.




क्रिकेट के इस पागलपन के दौर में एक बात समझने लायक है और जिसे कोई भी क्रिकेट-प्रेमी समझने को तैयार नहीं होता कि क्रिकेट अब महज खेल नहीं रह गया है. क्रिकेट को समझने के लिए उसके गणित को समझना होगा. जिस तरह दस तक पहाड़ा याद कर लेने वाले को, सौ तक की गिनती याद कर लेने वाले को गणितज्ञ नहीं कहा जाता, उसी तरह क्रिकेट के मैच देखने वाले को क्रिकेट का महारथी नहीं कहा जा सकता. आप में से कितने इस तथ्य को जानते हैं कि भारतीय क्रिकेट टीम भारत देश का प्रतिनिधित्व नहीं करती है? यह तमिलनाडु सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत दिसम्बर 1928 में गठित एवं पंजीकृत निकाय (ट्रस्ट) है. सो कम से कम किसी एक ट्रस्ट को देश के नाम से, उसकी प्रतिष्ठा से न जोड़ें.


आये दिन किसी न किसी खिलाड़ी के देवत्व को स्थापित करते हुए बताया जाता है कि उस खिलाड़ी के अति-निकट परिजन की मृत्यु के बाद भी वो देश के लिए मैच खेलने आया. एक बात समझिये, जो टीम ही देश की नहीं बल्कि एक ट्रस्ट की है उसका कोई खिलाड़ी देश के लिए कैसे खेलने आ सकता है? वह देश के लिए नहीं बल्कि उस ट्रस्ट के लिए खेलने आता है. दूसरी बात, वह किसी देश भावना से नहीं बल्कि ट्रस्ट के साथ हुए समझौते, विज्ञापन कंपनियों के साथ हुए करारनामे के बंधन में जकड़े होने के कारण खेलने आता है. एक अनुबंध के बाद करोड़ों की कमाई करने वाले खिलाड़ी का एक मैच न खेलना उसे आर्थिक चोट ही नहीं पहुँचायेगा बल्कि उसके कैरियर को भी बर्बाद कर देगा. (इसे कपोलकल्पना न मानिये. इसी विश्वकप की एक टीम श्रीलंका को ICC ने निलंबित कर दिया है. जानते हैं क्यों? नहीं जानते तो गूगल पर सर्च कर लीजिये, हाल का मामला है, पूरा का पूरा दिया गया है.) जहाँ पूरी की पूरी टीम का कैरियर ख़राब कर दिया गया है वहाँ एक अकेले व्यक्ति/खिलाड़ी की क्या औकात


और भी बहुत सी बातें हैं मगर बुखार उतरने के बाद आराम करने की आवश्यकता होती है, सो आराम करिए. इसी आराम की घड़ी में अपने परिवार के बच्चों को समझाइये कि ये महज खेल है जहाँ एक सट्टे में, एक विज्ञापन में महान से महान खिलाड़ी बिक जाता है. इसी क्रिकेट के तथाकथित भगवान और उनके कथित अवतार भी इस सट्टे के सामने घुटने टेक चुके हैं. इस क्रिकेट का या किसी भी खेल का उसी तरह आनंद लें जैसे कि किसी फिल्म का लेते हैं, गली-मोहल्ले में खेलते बच्चों के साथ लेते हैं. अनावश्यक दिमागी उलझन लेंगे तो आप नहीं आपके परिवार के बच्चों पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा. लिख लीजिये इस बात को. 





 

1 टिप्पणी:

  1. सही बात। समझदार व्यक्ति ये समझता है। पर एक बात ये भी है कि भारतीय खिलाड़ी विश्व स्तर में कहीं ठहरते हैं तो वो क्रिकेट ही है। ऐसे में इसके प्रति दीवानगी होना लाजमी है। यह दीवानगी शायद मनुष्य के डीएनए में है क्योंकि भले ही भारत के लिए इधर हो लेकिन फुटबॉल, बास्केटबॉल, अमेरिकी फुटबॉल इत्यादि के लिए भी यह देखी जा सकती है।

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