भारतीय राजनैतिक
परिदृश्य में हिन्दुओं को लेकर एक अजीब सा वातावरण लगातार बना रहा है. आज़ादी की
लड़ाई में भले ही हिन्दू-मुस्लिम एकता के गीत गाये जाते रहे हों किन्तु आज़ाद भारत
में तो कोशिश यही की जाती रही है कि हिन्दू-मुस्लिम विभेद पनपता रहे. इस विवाद को
और बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर हिन्दुओं को ज़लील करने का, उनको मानसिक प्रताड़ित
करने का, उन पर शारीरिक अत्याचार करने का काम भी होता रहा है. ऐसे माहौल को विगत
तीन वर्षों से और भी हवा दी जाने लगी है. इसके पीछे केंद्र की राजनीति में भाजपा
का आ जाना रहा है. भाजपा के आने से भी ज्यादा बड़ी घटना ऐसे लोगों के लिए नरेन्द्र
मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने की रही. हिन्दू धर्म के विरोधी राजनैतिक लोगों ने
कभी सोचा भी नहीं होगा कि केंद्र की सत्ता भाजपा इतने विशाल बहुमत से प्राप्त कर
लेगी. राजनैतिक उच्चावचन के क्रम में सभी को इसका आभास बना हुआ था कि देश की शीर्ष
सत्ता में कांग्रेस गठबंधन और भाजपा गठबंधन ही क्रमिक रूप से आते-जाते रहेंगे मगर
किसी भी राजनैतिक विश्लेषक अथवा प्रतिनिधि ने इसका विचार कभी नहीं किया था कि
भाजपा ऐसे प्रचंड बहुमत से आएगी. इसके आगे किसी ने ये भी विचार नहीं किया था कि
कांग्रेस को आँकड़ों के खेल में विपक्ष के नेता पद का मिलना भी दूभर हो जायेगा. कोढ़
में खाज वाली स्थिति उस समय पैदा हो गई जबकि ऐसे प्रचंड बहुमत के चलते पूर्व घोषित
नरेन्द्र मोदी ही प्रधानमंत्री बने. ये स्थिति उन लोगों के लिए अत्यंत कष्टकारी थी
जो नरेन्द्र मोदी के नाम की घोषणा के साथ ही अगले को हत्यारा, खूनी दलाल कार्यालय में चाय बेचने के लिए नियुक्ति आदि
जैसी दो कौड़ी की बात करने लगे थे.
इसके बाद भी इन
राजनैतिक कुंठित लोगों की मनोवृत्ति पर कोई अंतर नहीं देखने को मिला. हिन्दुओं के
प्रति नफरत का भाव और तीव्रता पकड़ने लगा. देश के अनेक इलाकों में संगठित रूप से
हिन्दुओं पर, संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले किये जाने लगे. मुस्लिम तुष्टिकरण और
तेजी से किया जाने लगा. इसके पीछे उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव था. प्रदेश की
दो बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों को लग रहा था कि वे अपने-अपने वोट-बैंक की मदद से
प्रदेश की सत्ता को प्राप्त कर लेंगी. एक काम बोलता है और मुसलमानों के सहारे
सत्ता पाने की चाहत सजाये बैठी थी तो दूसरे दल का हिसाब उसके दलित वोटों पर निर्भर
था. प्रदेश के चुनाव ने दोनों के दिमाग को कई-कई वाट का झटका दिया. मतदाताओं ने
अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करते हुए इन दोनों दलों के तुष्टिकरण हथियार को मोथरा
कर दिया. मतदाताओं के इस संगठित स्वरूप के पीछे भी इन्हीं राजनैतिक लोगों की
हिन्दू विरोधी मानसकिता प्रमुख रही. जाति-वर्ग और मजहब के तुष्टिकरण को साथ लेकर
बढ़ते ऐसे दलों ने सोचा भी नहीं होगा कि हिन्दू-विरोधी मानसिकता दर्शाने के कारण इन
लोगों का ऐसा हाल होगा कि सीटों का आंकड़ा पचास की संख्या भी न छू सकेगा. जिस दल ने
अपने दलित वोट-बैंक के चलते राजनीति में टिकट व्यापार आरम्भ किया उसको तो बीस की
संख्या पाने के लाले लग गए. पाँच साल का काम बोलता है दिखाने की जल्दबाजी में
ट्रेन भी दौड़ाई गई, हाईवे को भी दिखाया गया, हाईवे पर लड़ाकू विमान भी उतारे गए मगर
संगठित हिन्दू मानसिकता ने सबको जमीन पर उतार कर रख दिया.
केंद्र की जबरदस्त
पराजय और हिन्दू मानसिकता की विजय को अभी लोग पचा भी नहीं पाए थे कि उत्तर प्रदेश
की प्रचंड विजय ने सबके दिमाग में असंतुलन पैदा कर दिया. कोई ईवीएम को दोष देने
लगा कोई बड़े स्तर पर देश-प्रदेश में उपद्रव होने की बात करने लगा, किसी को
असहिष्णुता दिखाई देने लगी तो किसी की बीवी को यहाँ रहते हुए डर लगने लगा.
हिन्दू-विरोधी मानसकिता वालों पर अभी एक चोट और लगनी बाकी थी. प्रदेश की ऐतिहासिक
विजय के बीच मुख्यमंत्री के लिए मंथन चलने लगा और कई दिन के समुद्र-मंथन के बाद जो
नाम उभर कर सामने आया उसने हिंदुत्व गरिमा को और प्रकाशवान किया. योगी आदित्यनाथ
का नाम सामने आते ही हिन्दू-विरोधी मानसिकता वालों को धरती घूमती नजर आने लगी. वे
सब हिन्दू धर्म के लिए अनाप-शनाप बकने लगे. इन लोगों को समझ आ गया कि मुस्लिम
तुष्टिकरण अब जीत का आधार नहीं है; दलित वोट-बैंक के सहारे सत्ता हथियाई नहीं जा
सकती है; यादवों अकेले के दम पर काम नहीं बोलता है. दलितों, पिछड़ों की राजनीति के
सहारे अपनी-पानी जेबें भरने वाले इन दलों को अपने आसपास बहुत बड़ा शून्य दिखाई देने
लगा.
इस शून्य का ब्लैक
होल में बदलना अभी जारी था. केंद्र और सबसे बड़े प्रदेश के बाद देश के प्रथम नागरिक
का निर्वाचन शेष था. भाजपा के थिंक टैंक ने दलित कार्ड के साथ-साथ संघ की पसंद का
सम्मान करते हुए जिस व्यक्ति को राष्ट्रपति निर्वाचन के लिए चुना उसने दलित
राजनीति करने वाले तमाम दलों की रीढ़ तोड़कर रख दी. एक झटके में ऐसे सभी दलों को
आईना दिखा दिया गया कि दलित की राजनीति करने वाले कैसे दौलत की राजनीति करने लगे
हैं. लगातार हाथ से निकलती बाजी देखकर बौखलाहट इतनी तेज हो गई कि कोई इस्तीफ़ा देकर
भाग निकला तो कोई भगवानों को शराब के ब्रांड से जोड़ने लगा. असल में ये सिर्फ अपनी
खीझ नहीं वरन भाजपा की रणनीति की काट न खोज पाने की झुंझलाहट है. देखा जाये तो न
सिर्फ भाजपा के प्रति खीझ वरन हिन्दुओं के प्रति भी आक्रोश है. इसी आक्रोश के चलते
वे गाली देने की स्थिति में हैं. ये और बात है कि सदन की गरिमा का ख्याल रखते हुए
वे भाजपा को, मोदी को, हिन्दुओं को माँ-बहिन की गलियां नहीं दे पा रहे हैं तो अपनी
खिसियाहट को किसी और रूप में निकालने में लगे हैं. एक तरह से उनकी ये खिसियाहट
हिन्दू समाज के लिए जागरण का काम कर रही है. कम से कम इन्हीं बातों का जवाब देने
के लिए हिन्दू समाज अब जागृत हो रहा है.
सामयिक पोस्ट और चिंतन,मनन, धर्म को लेकर राजनीति ,लोग समझने तो लगे हैं ,आवाज भी उठाने लगे हैं,कहीं कुछ तो बदला है ....
जवाब देंहटाएंrajniti me kabhi bhi koi masla hal nahi kiya jata hai , bas mudde ko chunaaw ke samay par bhajaya jata hai , par janta ab jagruk hai aur umeed hai aage aur bhi samajhdaar ho jayegi
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