09 अक्टूबर 2011

बेटियों के प्रति स्वयं का रवैया बदलना होगा


धर्म, पर्व किसी भी रूप में सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बनाये गये हैं। कहीं न कहीं इनके द्वारा मानव को कुछ न कुछ सीख भी देने का कार्य किया जाता है। इसके बाद भी इंसान कुछ भी सीखने को, समझने को तैयार नहीं है। अभी-अभी हम नव दुर्गा का पावन पर्व मनाकर अपने को देश के सबसे बड़े आस्तिकों में सम्मिलित करवा कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। इन नौ दिनों में हमने मातृ-शक्ति की पूजा की और कन्याओं को भी पूजने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

इसके बाद ही जैसे ही नव दुर्गा पर्व का समापन हुआ, देवी मैया की मूर्तियों का विसर्जन किया गया, इंसान ने भी अपने आसपास की धार्मिक प्रवृत्ति का, मातृ-शक्ति के प्रति आदर भाव का, बच्चियों के प्रति प्रेम-स्नेह का विसर्जन कर दिया। आज ही समाचारों से ज्ञात हुआ कि मध्य प्रदेश में एक जिन्दा बच्ची को दफना दिया गया। ये तो उसके जीवन का बचना था कि उसकी आवाज को एक किसान ने सुन लिया और बचा लिया।

बच्चियों के प्रति भेदभाव की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पूर्व भी इस तरह की घटनायें हमारे समाज में देखने को मिलती रही हैं। आये दिन किसी न किसी रूप में इनसे निपटने के उपायों को खोजा जाता रहा है, आये दिन बच्चियों को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर, गैर-सरकारी स्तर पर प्रयास होते रहे हैं इसके बाद भी बच्चियों के प्रति समाज का क्रूरतम रवैया बना ही रहा। इस घटना के संदर्भ में यह बात याद रखने योग्य है कि मध्य-प्रदेश की सरकार ने इसी पांच अक्टूबर को बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत की है।

कुछ भी हो, सरकार कुछ भी प्रयास करे किन्तु हमें अपनी बेटियों के प्रति स्वयं का रवैया बदलना होगा। अपनी गर्भ में पल रही बच्ची हो अथवा जन्म ले चुकी बच्ची, वे हमारी अपनी ही बच्चियां हैं, इस बात को तो याद रखना ही होगा। बेटों की चाह में, परिवार को बढ़ाने की चाह में, वंश का नाम चलाने वाले पुत्र की चाह रखने की अंधी लालसा में बेटियों को मारने वालों को याद रखना होगा ‘‘यदि बेटी को मारोगे, तो बहू कहां से लाओगे।’’



3 टिप्‍पणियां:

  1. बेटों की चाह में, परिवार को बढ़ाने की चाह में, वंश का नाम चलाने वाले पुत्र की चाह रखने की अंधी लालसा में बेटियों को मारने वालों को याद रखना होगा ‘‘यदि बेटी को मारोगे, तो बहू कहां से लाओगे।’’ एकदम सही…… सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई…

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  2. kash sabhi yaisa soch bana paate!!!!!
    prerak alekh ...

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  3. लोगों की समझ में इस तरह से कुछ नहीं आएगा । ऐसे कृत्यों में लिप्त लोगों को इतनी सख्त सजा दी जाए कि बांकी जो भी ऐसा सोच रहे हैं उनकी रूह कांप उठे । प्यार से कोई समझने समझाने वाला नहीं दिखता ।

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