इस बार सरकारी स्तर पर प्रयास किये गये थे कि ज्यादा से ज्यादा लोग चुनाव में मतदान को घरों से बाहर निकलें। प्रत्येक जिले में इस तरह के कार्यक्रम भी किये गये। अब ये तो पता नहीं कि मतदान करने वालों की संख्या बढ़ी अथवा नहीं पर इतना समझ में आया था कि सरकार चुनाव में अधिक से अधिक लोगों को मतदान में शामिल करवाना चाहती है।
इधर सरकार मतदान के लिए लोगों को प्रेरित कर रही है और दूसरी ओर सरकार के प्रमुख नुमांइदे हमारे प्रधानमंत्री जी मतदान नहीं करते दिखे हैं। ऐसा बताया गया कि यह उनकी व्यस्तता के कारण हुआ। जब कुछ जागरूक लोगों ने इस पर आपत्ति की तो कांग्रेस का हमेशा की तरह से बेसिर पैर का बयान आया कि एक वोट की कीमत नहीं होती।
समझ नहीं आया कि यदि प्रधानमंत्री के एक वोट की कीमत नहीं है, आवश्यक कार्य होने पर मतदान को प्रधानमंत्री टाल सकते हैं तो आम आदमी पर ही मतदान करने का भार क्यों? इससे यह साबित नहीं होता कि आम आदमी के वोट की कीमत तो है साथ ही आम आदमी बेकार है, उसके पास आवश्यक कार्य नहीं होते हैं?
इस पर विवाद सा हुआ और शान्त सा भी हो गया किन्तु एक सवाल दिमाग में घुमड़ने लगा। देश के सभी राजनैतिक दलों को और नेताओं को सिरे से नकारने वाले, उनको बुरा कहने वाले अन्ना हजारे क्या मतदान करते होंगे?
यदि हां तो बुरे को मतदान क्यों?
और यदि नहीं करते तो क्या उनका इस देश की व्यवस्था पर अविश्वास नहीं?
क्या उन पर भी उंगली नहीं उठनी चाहिए?
और यदि नहीं करते तो क्या उनका इस देश की व्यवस्था पर अविश्वास नहीं?
क्या उन पर भी उंगली नहीं उठनी चाहिए?
चलिए जब प्रधानमंत्री ही मत की अहमियत नहीं समझते तो अन्ना जी का क्या है, वे तो खुलेआम राजनेताओं को गरियाते दिखते भी हैं। उनका मत न देना सहज स्वीकार्य हो सकता है, इस पर बहस होनी भी नहीं चाहिए, बहस तो प्रधानमंत्री के मत न करने पर होनी चाहिए और अवश्य ही होनी चाहिए।
दोनों चित्र गूगल छवियों से साभार
गजब।
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भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?