30 अगस्त 2010

इंतज़ार उस गधे की तरह जो नट की लड़की के गिरने के इंतज़ार में है




आज शाम को अपने शहर की सड़कों को नापने के नियमित क्रम में हमारी मुलाकात हमारे एक मित्र से हो गई जो मानदेय प्रवक्ता के रूप में पास के जिले के महाविद्यालय में कार्यरत हैं। (मानदेय प्रवक्ता के बारे में बाद में) उसको देखते ही इधर-उधर की बातों के साथ ही स्वतः मानदेय की चर्चा चल पड़ी।

इधर मानदेय की चर्चा हमने शुरू ही की कि उसने जो खबर दी उसने हमें चौंका दिया। उसने बताया कि वह मानदेय प्रवक्ता पद को छोड़ कर स्थानीय इंटरमीडिएट कॉलेज में एस0टी0 पद पर स्थायी रूप से नियुक्त हो गया है। हमारा चौंकना इस कारण से था क्योंकि वह सरकार द्वारा विनियमितीकरण के लिए बनाये गये नियम के अन्तर्गत अर्हता भी पूरी करता है और उसे मानदेय के रूप में कार्य करते हुए भी लगभग सात-आठ वर्ष होने को गये हैं। ऐसे में महाविद्यालय की नौकरी को छोड़ इंटरमीडिएट कॉलेज में आना, कुछ हजम नहीं हुआ।

हमें लगा कि कहीं वह मजाक तो नहीं कर रहा, सो हमने फिर तसल्ली करनी चाही। उसने पूरी तरह से आश्वस्त करते हुए अपनी नियुक्ति को सही ठहराया। उसने कहा कि मानदेय का विनियमितीकरण एक सपना सा है पता नहीं पूरा भी हो या नहीं, इस कारण से अब नियमित नौकरी पकड़ ली।

(चित्र गूगल छवियों से साभार)

बात भी उसकी सही लगी क्योंकि विगत कुछ वर्षों से शासन की ओर से मानदेय प्रवक्ताओं को विनियमित करने की खबरें आती रहीं हैं किन्तु हुआ कुछ नहीं। मानदेय प्रवक्ताओं ने अपने हर मोर्चे पर लड़ाई भी जीत रखी है पर सरकार के आगे सब बेबस हैं।

यह जानते-समझते हुए कि पता नहीं विनियमितीकरण होता भी है या नहीं क्योंकि अब सरकार उन्हीं पदों को पहले भरने में लगी है जहाँ मानदेय प्रवक्ता कार्य कर रहे हैं। ऐसे में इस पद को छोड़ने की हिम्मत भी नहीं की जा रही है और लगातार काम करना भी संशय खड़ा कर रहा है। मानदेय प्रवक्ताओं की इस बेबसी पर उसी समय एक छोटी सी कहानी याद आई जो अपने उस दोस्त को सुनाई। अब आपको भी सुना रहे हैं। कहानी इस तरह से है कि


दो गधे दोस्त थे। एक गधा कमजोर और दूसरा गधा तन्दुरुस्त। एक दिन तन्दुरुस्त गधे और कमजोर गधे में मुलाकात हो गई। कमजोर ने पूछा-‘‘तुम्हारी सेहत का राज क्या है?’’

सेहतमंद ने बताया कि उसका मालिक धोबी है जो सुबह एक बार उसके ऊपर कपड़े लादकर घाट पर ले जाता है। वहाँ वह गधा खाली समय में हरी घास चरता रहता है। शाम होने पर उसका मालिक उसके ऊपर धुले कपड़े फिर लाद देता है। घर पहुँच कर उसे फिर खाने को दिया जाता है। काम कुछ भी नहीं और खाना दिन भर। बस इसी से सेहत बन रही है।

कमजोर ने बताया कि उसका मालिक एक नट है जो बेचारा बहुत ही गरीब है। किसी तरह से अपने खाने का जुगाड़ करता है और उसी में से एक छोटा हिस्सा उसे भी दे देता है। इसके अलावा सारे दिन उसे अपने ऊपर नट का सारा सामान लादे इधर से उधर घूमना पड़ता है। इसी से वह कमजोर है।

सेहतमंद ने कमजोर से कहा कि वह अपने मालिक की नौकरी छोड़कर उसके साथ आ जाये। अपने मालिक से कह कर वह उसे भी अपने साथ रखवा लेगा।

इस पर कमजोर गधे ने मना कर दिया। जब सेहतमंद ने कारण पूछा तो उसने कहा कि एक लालच है यहाँ। इस कारण से वह नट को छोड़कर जाना नहीं चाहता है।

सेहतमंद ने जब कारण पूछा तो कमजोर गधे ने बताया कि जब नट की लड़की रस्सी पर बिना किसी सहारे के चलती है तो नट उससे कहता है कि होशियारी से चलना, पूरी रस्सी पार करना। यदि बीच में गिर गई तो इसी गधे से तुम्हारी शादी करवा देंगे।

कमजोर गधे ने आगे बताया कि मैं बस इसी इंतजार में हूँ कि कब यह लड़की रस्सी से गिरे और मेरी शादी इस लड़की से हो जाये। आखिर कभी न कभी तो यह लड़की रस्सी से गिरेगी?


कुछ यही स्थिति मानदेय प्रवक्ताओं की है जो नियमितीकरण के चक्कर में कमजोर गधे की तरह बैठे हैं और सरकार का मुँह ताक रहे हैं। पता नहीं कब कुछ गिरे और मानदेय प्रवक्ता विनियमित हो जायें?

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विशेष-


1-हम भी कमजोर गधे की तरह से बैठे सरकार का मुँह ताक रहे हैं।
2-महिला मोर्चा इसको अन्यथा नहीं लेगा कि लड़की की शादी की बात गधे से की जा रही है।
3-मानदेय प्रवक्ता खुद को गधा, वो भी कमजोर गधा कहे जाने को सहजता से स्वीकार करेंगे।



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